दूरद्रष्टा और प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर बी.एस. रामकृष्णा ने हैदराबाद विश्वविद्यालय और अकादमिक समुदाय पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। छह दशकों से अधिक समय तक चली उनकी उल्लेखनीय यात्रा शिक्षा, शोध और नवाचार के प्रति उनके अटूट समर्पण का प्रतीक है।
1921 में आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में जन्मे प्रो. रामकृष्णा की शैक्षणिक क्षमता कम उम्र से ही स्पष्ट हो गई थी। उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री और काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से भौतिकी में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। ज्ञान की उनकी तलाश ने उन्हें 1949 में इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, शिकागो, यूएसए से ध्वनिकी में पीएच.डी. करने के लिए प्रेरित किया।

प्रोफेसर बी.एस. रामकृष्णा
प्रो. रामकृष्णा ने अपने शैक्षणिक जीवन में अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की। वे बेंगलुरू में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (ECE) विभाग में व्याख्याता के रूप में दाखिल हुए और बाद में ECE विभाग के अध्यक्ष भी बने। ध्वनिकी, कंपन और ध्वनि प्रणालियों में अभूतपूर्व कार्य के साथ उनका शोध योगदान महत्वपूर्ण था।
हैदराबाद विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति के रूप में आपने 1980 से 1986 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की. प्रो. रामकृष्णा ने कई परिवर्तन लागू किए, जिसने संस्थान नई ऊँचाइयों पर पहुँच गया। उन्होंने अनुसंधान के बुनियादी ढाँचे को मजबूत किया, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी को बढ़ावा दिया और नए शैक्षणिक पाठ्यक्रम शुरू किए। उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक विश्वविद्यालय के विज्ञान परिसर, प्रशासनिक भवन और अन्य प्रमुख बुनियादी ढाँचे की योजना, डिजाइन और निर्माण था।

विश्वविद्यालय में प्रथम राष्ट्रीय संगोष्ठी – ‘पोषण और मस्तिष्क’। कुलपति प्रो. बी.एस. रामकृष्णा प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए।
उनके नेतृत्व में हैदराबाद विश्वविद्यालय ने विकास और वृद्धि के नए कीर्तिमान स्थापित किए। प्रो. रामकृष्णा ने केंद्रीय पुस्तकालय में पत्रिकाओं को प्रदर्शित करने के लिए लकड़ी की अलमारियों को डिजाइन करने में गहरी रुचि दिखाई। उन्होंने एक खुली प्रतियोगिता के माध्यम से विश्वविद्यालय के प्रतीक चिन्ह के चयन को भी अंजाम दिया। उनके कार्यकाल के दौरान 6 अप्रैल, 1985 को विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया, जिसमें 1253 छात्रों को उनकी डिग्री प्रदान की गई।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी परिसर में आयोजित भारतीय दार्शनिक हीरक जयंती सत्र में
1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री. राजीव गांधी का विश्वविद्यालय परिसर का दौरा आपके कार्यकाल की एक उल्लेखनीय घटना थी। श्री. राजीव गांधी ने भारतीय दार्शनिक कांग्रेस के हीरक जयंती सत्र का उद्घाटन किया, जो विश्वविद्यालय के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी की यात्रा के बाद यह विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री का दूसरा दौरा था।
विश्वस्तरीय संस्थान के लिए प्रो. रामकृष्णा की दूरदृष्टि ने उन्हें विश्वविद्यालय को अकादमिक उत्कृष्टता और शोध नवाचार के केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रयासों को अकादमिक समुदाय द्वारा मान्यता दी गई, और हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्रों और विद्वानों के लिए एक पसंदीदा संस्थान बन गया।
प्रो. रामकृष्णा की धरोहर कुलपति के रूप में उनकी उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। वे कई प्रतिष्ठित संस्थानों के फैलो थे, जिनमें भारतीय विज्ञान अकादमी, अकाउस्टिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका और भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार इंजीनियर्स संस्थान शामिल हैं। उन्हें भगवंतम पुरस्कार और रामन शताब्दी स्वर्ण पदक सहित कई पुरस्कार मिले।
प्रोफेसर के.डी. सेन, आईएनएसए मानद वैज्ञानिक, रसायन विज्ञान संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय के इनपुट्स के साथ सुश्री माही शर्मा, एम.ए. संचार (मीडिया अध्ययन)
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