हैदराबाद विश्वविद्यालय एकीकृत अध्ययन केंद्र द्वारा 23 जुलाई 2014 को आयोजित एक चर्चा-गोष्ठी में सेंटर फॉर पब्लिक अफेयर्स एंड क्रिटिकल थ्योरी के वरिष्ठ फेलो एवं हिंदू पत्रिका के पूर्व संपादक श्री. सिद्‌धार्थ वरदराजन ने ‘भारतीय मीडिया में संकट’ नामक विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया.

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छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों से खचाखच भरे सभागार में दर्शकों को संबोधित करते हुए श्री. वरदराजन ने बताया कि वर्तमान समय में भारतीय मीडिया के संकट पर बहुत से लोग अपने अलग-अलग विचार प्रस्तुत कर रहें हैं. आगे उन्होंने बताया कि लोकतांत्रिक ढाँचे में पत्रकारिता का महत्वपूर्ण असर रहता है. आजकल भारत में पत्रकारिता को और भी संकटों का सामना करना पड़ रहा है. आगे उन्होंने दावे के साथ कहा कि इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता. उन्होंने मीडिया से जुड़े वभिन्न आँकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि आज भारत के सभी भाषाओं में 200 से अधिक टेलीविजन समाचार चैनल हैं इनके साथ अंग्रेजी, हिंदी, तेलुगु और अन्य भारतीय भाषाओं में 24 घंटे प्रसारित होनेवाले व्यापार समाचार के चैनल हैं. प्रिंट मीडिया का हवाला देते हुए कहा कि फिलहाल भारत में कुल 8000 से अधिक पंजीकृत पत्रिकाएँ हैं और हर दिन 150 से अधिक दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित किए जा रहें हैं. हिन्दी के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण 60 से 70 लाख प्रतियों का प्रकाशन कर रहें हैं. अंग्रेजी अखबारों में टाइम्स ऑफ इंडिया 20-30 लाख प्रतियाँ प्रकाशित कर रहा है. परंतु इंटरनेट के मास मीडिया में प्रवेश करने से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.

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आगे वरदराजन जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं का उल्लेख करते हुए कहा कि अखबारों के मालिक धन के लिए पेड न्यूज का सहारा ले रहे हैं. इसके अलावा मीडिया घरानों के मालिकों धन प्राप्ति के लिए अन्य व्यवसाय में रुचि विकसित कर रहे हैं. पत्रकारिता के लिए रीढ़ माने जाने वाले समाचार एकत्र करनेवाले पत्रकारों को पर्याप्त मज़दूरी भी नहीं दे रहे हैं जिसकी वजह से कर्मठ पत्रिकाओं की संख्या घटती जा रही है, जो पत्रकारिता के लिए गंभीर समस्या ही नहीं बल्कि घातक भी सिद्‌ध हो सकती है.

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अपने व्याख्यान के अंत में उन्होंने कहा कि समाज में मीडिया को एक अच्छी भूमिका निभानी चाहिए. पत्रकारिता के लिए ‘जीवन रक्त’ सुशासन है. उसे बनाए रखने के लिए जिम्मेदारी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. पत्रकारिता की स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए पेड न्यूज पर और ऑनलाइन प्रतिस्पर्धा पर तथा विज्ञापनदाताओं के वित्तीय पोषण आदि कारकों पर सामंजस्य स्थापित कर पत्रकारिता को नई दिशा देनी चाहिए. अंत में उन्होंने कहा कि पेशेवर और नैतिक मीडिया के लिए पाठकों को भी अपनी पत्रिका के लिए सही मूल्य देना चाहिए. तभी हम उत्तम पत्रिका की आशा कर सकते हैं.