श्री. जी. किरण कुमार, पीएच.डी. शोधार्थी, राजनीति विज्ञान विभाग ने अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक नीति संघ (आईपीपीए) द्वारा बुडापेस्ट, हंगरी में सार्वजनिक नीति पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में एक शोध-पत्र प्रस्तुत किया है. वे वर्तमान में प्रो. अरुण कुमार पटनायक के कुशल शोध निर्देशन में शोधरत हैं. सामाजिक विज्ञान केंद्र और कोर्विनस यूनिवर्सिटी, हंगरी द्वारा संयुक्त रूप से कार्यशाला आयोजित की गई थी. कार्यशाला के लिए 54 देशों के 345 पंजीकृत प्रतिभागियों को 24 हाइब्रिड कार्यशालाओं में विभाजित किया गया, जिसमें 224 प्रतिभागियों ने ऑनसाइट और 121 ने ऑनलाइन हिस्सा लिया. 24 विभिन्न पैनलों में नीति रचना और निर्माण, नीति संरचना, कार्यान्वयन, मूल्यांकन, नीतिगत शिक्षा, नीति की सफलता और विफलता, नवाचारों और साक्ष्य आधारित नीति निर्माण आदि पर गहन चर्चा और विचार-विमर्श किया गया. श्री. किरण ने आईपीपीए अनुदान प्राप्त किया तथा पंजीकरण शुल्क सहित हंगरी में अपने प्रवास के दौरान सभी खर्चों का भुगतान किया.
श्री. किरण ने ‘Policy Implementation in the Global South’ पर संपन्न हुए पैनल सत्र में ‘Food Security and Global South: Policy learnings from the Indian Food Security Policy’ शीर्षक से शोध-पत्र प्रस्तुत किया. सत्र की अध्यक्षता इंस्टीट्यूट दि’एथ्यूद्स पॉलिटीक, साइंसेज पीओ, लियोन, फ्रांस के लोरेना टोरेस बर्नार्डिनो ने की और कैरोल फेयोल कोर्टेस तथा अमाल एन्नाबीह ने सह-अध्यक्षता की. इस कार्यशाला पैनल में ब्राजील, बांग्लादेश, चिली, इक्वाडोर, भारत, मोरक्को, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान के लगभग 15 विद्वानों ने भाग लिया और इसे कार्यशाला का सबसे विविधांगी पैनल माना गया.
शोध-पत्र को दो भागों में विभाजित किया गया है, पहला भाग वैश्विक दक्षिण देशों में खाद्य सुरक्षा नीतियों के कार्यान्वयन पर केंद्रित है और दूसरा भाग भारत की खाद्य सुरक्षा से नीतिगत शिक्षा पर प्रकाश डालता है. वैश्विक दक्षिण दीर्घकालीन विकास लक्ष्यों (SDGs) और विशेष रूप से एसडीजी2 वर्ष 2030 तक क्षुधा उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक दक्षिण देशों के प्रयास काफी प्रभावित हुए हैं. खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने दुनिया को आगाह किया है कि लगभग 79-82 करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं और उनमें लगभग 20 करोड़ भारत में ही होंगे. एफएओ ने वैश्विक भूख को एक ‘विशाल’ वैश्विक चुनौती माना है. शोध-पत्र ने चार सुरक्षा मानकों के अधीन वर्गीकृत लगभग 12 देशों की विभिन्न खाद्य सुरक्षा नीतियों की तुलना की. 2017 में विद्वानों द्वारा मानक विकसित किए गए थे. देशों की तुलना वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक के संकेतकों पर की गई थी जैसे कि वहनीयता, उपलब्धता, गुणवत्ता, सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधन और लचीलापन आदि. सार्वजनिक नीतियों को अधिक प्रभावी और दक्षतापूर्ण बनाने के लिए तुलनात्मक नीतिगत विश्लेषण का उपयोग प्रमुख नीतिगत शिक्षा को समझने के लिए कार्यप्रणाली के रूप में किया जाता है.
शोध-पत्र ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और कोविड-19 महामारी के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, आत्म निर्भर भारत तथा खुले बाजार की बिक्री योजना को उदार बनाने जैसी विभिन्न नीतियों के माध्यम से भूख के आँकड़ों को कम करने के लिए भारत के प्रयासों पर प्रकाश डाला और नीतिगत शिक्षा के ढाँचे से उनका विश्लेषण किया है. आधार सीडिंग जैसे तकनीकी नवाचारों को लागू करने और वास्तविक समय की जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में रखने के बावजूद सार्वजनिक वितरण प्रणाली अभी भी बहिष्करण और समावेशन जैसी त्रुटियों का सामना कर रही है. शोध-पत्र ने क्षेत्रीय कार्य के आधार पर छत्तीसगढ़ और तेलंगाना राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) कार्यान्वयन का आलोचनात्मक विश्लेषण किया.
विभिन्न देशों में काम करने वाले विद्वानों के विचार-विमर्श और सुझाव प्रमुख पत्रिका में शोध-पत्र को प्रकाशित करने के लिए उपयुक्त जानकारी प्रदान करेंगे. पैनल के प्रतिभागियों ने सार्वजनिक नीति और शासन के क्षेत्र में काम कर रहे युवा विद्वानों का वैश्विक दक्षिण नेटवर्क शुरू करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है.