तेलंगाना राज्य सरकार की माननीय अनु.जन.जा.कल्याण, महिला और बाल कल्याण मंत्री श्रीमती सत्यवती राठौड़ ने ‘लोकतंत्र, विकास और जनजाति का अल्पविकास’ नामक पुस्तक का विमोचन किया, जिसे प्रो. रामदास रूपावत, अध्यक्ष – मानवाधिकार केंद्र, राजनीति विज्ञान विभाग, समाज विज्ञान संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय ने लिखा है.

इस पुस्तक में कई संबंधित मामलों को शामिल किया गया है, जैसे कि लोकतंत्र, विकास और जनजाति का अल्पविकास, श्रम के दमनात्मक के रूप इत्यादि. भारत का संविधान देश के 574 जनजाति समूहों की आबादी की विशेष स्थिति और जरूरतों को स्पष्ट रूप से स्वीकार करता है. देश के शैक्षिक संकेतकों में सुधार और जनजाति के बच्चों के लिए शैक्षिक बाधाओं को कम करने के लिए आवश्यक स्थानीय व्यवसाय में केंद्र और राज्य के सहायता तंत्र महत्वपूर्ण हैं. इस प्रकार, 1980 में और विशेष रूप से 1990 के दशक के दौरान भारत की एक विशाल संघीय गणराज्य के रूप पहचान की गई. केंद्रीय नियमों और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अलावा, उपयुक्त शैक्षिक संरचनाओं और प्रणालियों को वितरित करने की कई प्रक्रियाओं को विविध और स्थानीय रूप से समायोजित करने की आवश्यकता है. जनसांख्यिकीय वास्तविकताओं को दर्शाते हुए, कुछ भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जनजाति विकास की दिशा में दूसरों से अधिक काम करना है, क्योंकि क्षेत्रीय और स्थानीय राजनीति और शिक्षा की प्रथा पूरे देश में भिन्न होती है. कुल मिलाकर, जहाँ कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं, वहीं कुछ विशिष्ट चुनौतियाँ भी हैं, जो आगे विचार और कार्रवाई की माँग करती हैं. यह नई किताब आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और भारत के कई अन्य हिस्सों में जनजाति के बच्चों और सामुदायिक स्कूलों के लिए विशेष सुरक्षात्मक प्रावधानों की निरंतर आवश्यकता को रेखांकित करती है.

 

प्रो. रामदास रूपावत, मानवाधिकार केंद्र, राजनीति विज्ञान विभाग, समाज विज्ञान संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय के अध्यक्ष का कार्यभार संभाल रहे हैं. उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्रों में भारतीय राजनीतिक प्रक्रियाएँ, लोकतंत्र, विकास, जनजातीय राजनीति, शिक्षा और राजनीति, बहुलवाद और आवास की राजनीति और स्वदेशी समाजों में तुलनात्मक राजनीति शामिल हैं. उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.), नई दिल्ली से एम.ए., एम.फिल. और पीएच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त की हैं. दक्षिण भारत के तेलंगाना में छोटे से गाँव में 1970 में पैदा हुए और 80 के दशक में उपनिवेशवादी तेलंगाना में पली-बढ़ी पहली पीढ़ी के सदस्य हैं. स्वतंत्रता के 74 वर्षों के बाद भी भारत में गाँवों में समूल परिवर्तन नहीं हुआ है. उन्होंने चार पुस्तकें प्रकाशित की हैं – Tribal Land Alienation and Political Movements: Socio-Economic Patterns from South India, Cambridge Scholars Publishing, United Kingdom, 2009; Democracy, Development and Tribes in India: Reality and Rhetoric, New Delhi, 2015; Democracy, Governance and Tribes in the Age of Globalized India: Reality and Rhetoric, New Delhi, 2015; Democracy of the Oppressed: Adivasi Poverty, Hunger (2020), Cambridge Scholars Publishing, United Kingdom; Telanagaloo Girijanulu Tirugubatllu, Nava Chetana Publishing House, Hyderabad. उनके कई लेख राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने वर्ष 2009 में सरकार विभाग, उप्पसाला विश्वविद्यालय, स्वीडन में एक अल्पावधिक शोधकार्य किया था.