हैदराबाद विश्वविद्यालय में सावित्रीबाई फुले स्मारक वार्षिक व्याख्यान के अंतर्गत पर्यावरण और सामाजिक सरोकार केंद्र, अहमदाबाद की वरिष्ठ नीति विश्लेषक डॉ. मीरा वेलायुधन ने ‘कंटेम्पररी दलित वीमेन्स मूवमेंट : डिस्कोर्स एंड प्रैक्टिस’ विषय पर एक व्याख्यान प्रस्तुत किया. जिसमें उन्होंने बदलते संदर्भ के अनुसार दलित आंदोलनों को समझने, उभरती चुनौतियों का सामना करने तथा नये आयामों को स्थापित करने के लिए स्थानीय इतिहास को समझने की आवश्यकता पर बल दिया.

अपने व्याख्यान में उन्होंने केरल की पहली दलित महिला स्नातक अपनी माँ का उदाहरण देते हुए पुलया महासभा के विकास की चर्चा की जिसकी स्थापना सन्‌ 1913 के दौरान हुई थी. तदुपरांत 90 के दशक में देश में गठित विविध दलित महिला आंदोलन, भूमि सुधार आंदोलन और सार्वजनिक वितरण प्रणाली, पंचायत लोकतांत्रिक सत्र और राज्य की नीतियाँ तथा दलित अध्ययन आदि के कारण समाज में आए बदलावों और सुधारों पर प्रकाश डाला.

आगे डॉ. मीरा ने दलित जातियों के बीच पनप रही भेद भावना पर चिंता अभिव्यक्त करते हुए कहा कि इसके कारण दलित आंदोलन कमजोर पड़ रहें हैं. अंतर्राष्ट्रीयकरण और नेटवर्क आंदोलनों ने स्थानीय समूहों को एकजुट होकर कार्य करने में मदद की. अंत में उन्होंने दलित आंदोलनों को कमज़ोर बनानेवाले विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक ताकतों का सामना करने के लिए स्थानीय इतिहास को समझने और नए आयामों को स्थापित करने पर ज़ोर दिया.

इस सावित्रीबाई फुले स्मारक वार्षिक व्याख्यान को हैदराबाद विश्वविद्यालय स्त्री अध्ययन केंद्र ने आयोजित किया था. सांस्कृतिक अध्ययन विभाग, अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद के संकाय सदस्य डॉ के. सत्यनारायण ने इस सत्र की अध्यक्षता की. स्त्री अध्ययन केंद्र की विभागाध्यक्षा प्रो. सुनीता रानी ने वार्षिक व्याख्यान सत्र की अध्यक्षता की.