हैदराबाद विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास का एक महत्वपूर्ण कारण इसके कुलपतियों की असाधारण नेतृत्व क्षमता भी है। इन दूरदर्शी नायकों ने संस्थान को अकादमिक उत्कृष्टता का एक प्रमुख केंद्र बनाने में महती भूमिका निभाई है। उनके कुशल मार्गदर्शन की बदौलत, हैदराबाद विश्वविद्यालय (है.वि.वि.) भारत के उच्च शिक्षा परिदृश्य में एक प्रमुख संस्थान के रूप में उभरा है। प्रस्तुत श्रृंखला, ‘है.वि.वि. के कुलपतियों को जानें’ में, हम इन अग्रणी नेताओं के जीवन और योगदान पर गहराई से चर्चा करेंगे।

प्रसिद्ध रसायनविज्ञानी और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर गुरबख्श सिंह ने हैदराबाद विश्वविद्यालय को शीर्ष संस्थान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1974 से 1979 तक इसके संस्थापक कुलपति के रूप में, आपने अकादमिक उत्कृष्टता, नवाचार और समावेशिता के एक ऐसे मार्ग को प्रशस्त किया जो छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों को आज भी आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहा है।

प्रोफेसर गुरबख्श सिंह

27 मार्च, 1920 को मुल्तान (अब पाकिस्तान में) में जन्मे प्रोफेसर सिंह ने लाहौर विश्वविद्यालय से एम.एससी. की डिग्री प्राप्त की, उसके बाद उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर आर.बी. वुडवर्ड (रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार विजेता, 1965) के मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की पढ़ाई की। उन्होंने 1949 में पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की और पीएच.डी. छात्र के रूप में प्रोफेसर वुडवर्ड के साथ चार उच्च गुणवत्ता वाले शोधपत्र प्रकाशित किए।

1950 के दशक के आरंभ में प्रोफेसर सिंह भारत लौट आए और दिल्ली में राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल) में शोध वैज्ञानिक के रूप में दाखिल हो गए। बाद में उन्होंने होशियारपुर में काम किया और उत्कृष्ट शोधपत्र प्रकाशित किए, जिसके कारण उन्हें 1959 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) वाराणसी में रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया।

भारत की पूर्व माननीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी 1974 में गोल्डन थ्रेशोल्ड भवन में हैदराबाद विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति प्रो. गुरबख्श सिंह के साथ।

हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति के रूप में प्रोफेसर सिंह ने सभी क्षेत्रों के सर्वश्रेष्ठ संकाय की नियुक्ति करके संस्था की मजबूत नींव रखी। उनका सपना साकार हुआ और अब यह विश्वविद्यालय भारत और विश्व के शीर्ष अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों में से एक बन गया है।

कुलपति के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, प्रोफेसर सिंह अपने मूल संस्थान (रसायन विज्ञान विभाग, बीएचयू) लौट गए और वहाँ कार्बनिक रसायन विज्ञान पढ़ाने लगे। बाद में उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया, जहाँ वे अपनी सेवानिवृत्ति तक कार्यरत रहे। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी असाधारण सेवाओं के लिए आपको 1985 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

अपने शानदार करियर के दौरान, प्रोफेसर सिंह अकादमिक उत्कृष्टता के प्रति अपने जुनून और विश्व स्तरीय संस्थानों के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध रहे। उनकी विरासत केवल हैदराबाद विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है तथा छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

प्रोफेसर डी. बसवय्या, आईएनएसए वरिष्ठ वैज्ञानिक, रसायन विज्ञान संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय के इनपुट्स के साथ सुश्री माही शर्मा, एम.ए. संचार (मीडिया अध्ययन)

हिंदी संस्करण: राजभाषा कक्ष