नागराजू कोप्पुला ने पत्रकार बनने के लक्ष्य से जीवन संघर्ष को जीता….

नागराजू कोप्पुला का जन्म 25 मई, 1980 को तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले के एक छोटे से गाँव में एक अत्यंत गरीब और सामाजिक रूप से पिछड़े परिवार में हुआ था. उन्हें अपने जीवन में तीव्र कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उनके जीवन का लक्ष्य था एक कर्मठ पत्रकार बनना. अपने इस जीवन लक्ष्य तक पहुँचने के लिए निरंतर परिश्रम करते रहे. जीवन में आई कठिनाइयों से कभी हार नहीं मानी. अंत में अपने जीवन लक्ष्य को पाया और हैदराबाद के विख्यात एक अंग्रेज़ी समाचार पत्र के एक होनहार पत्रकार बन गए. पर यह उस विधाता को ठीक न लगा. अपने 35 वें जन्मदिन से कुछ हफ्तों पहले ही अर्थात 12 अप्रैल, 2015 को कैंसर से संघर्ष करते-करते अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी. संसार ने एक वीर सेनानी को खो दिया.

नागराजू कोप्पुला का परिवार प्रवासी मजदूरों के रूप में गोदावरी नदी के तट पर स्थित सरपाका नामक गाँव में भवन निर्माण मज़दूरों के रूप में आया था. वे एक दलित समुदाय जाति के थे. उनका परिवार पेपर मिल के निर्माण में काम करता था.

पाँच भाई-बहनों में आप सबसे छोटे थे. मिट्टी और फूस से बनी एक छोटी-सी झुग्गी में रहते थे. आपकी चार वर्ष की आयु में आपके पिता स्वर्ग सिधार गए. परिवार निर्वाह के लिए अपने परिवार सदस्यों के साथ आप भी काम करते थे. आप एक स्थानीय मंदिर के समीप बर्फ बेचा करते थे और समय मिलने पर कभी-कभी साइन बोर्ड भी बनाते थे. इस बीच अपने जीवन लक्ष्य को पाने की लालासा को पूरा करने के लिए निरंतर अध्ययन भी करते थे. इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हैदराबाद विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की. साथ में जन संचार पाठ्यक्रम में डिप्लोमा भी हासिल किया.

अपने जीवन की छोटी सी अवधि में नाग राजू ने यह साबित कर दिखाया कि यदि बुलंद इच्छा को लिए कोई भी व्यक्ति अगर अपने रास्ते पर निकलता है तो वह एक न एक दिन अपनी मंज़िल ज़रूर पहुँचता है. उनके दुःखद निधन पर हैदराबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ ने अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की और आपकी स्मृति में एक फैलोशिप गठित की है जिसके द्वारा आगामी समय में प्रति वर्ष एक दलित पत्रकार को इस फैलोशिप से सम्मानित किया जाएगा. नागराजू ने शायद दुनिया को छोड़ दिया पर वे अपने परिवार, दोस्तों और शुभचिंतकों की स्मृति में सदा रहेंगे. वह मरा नहीं अमर हुआ है.