‘नृत्य और संबद्ध कलाएँ – एक प्रतीकात्मक संबंध’ विषय पर सुश्री चित्रा विश्वेश्वरन द्वारा 21 मार्च 2022 को नृत्य विभाग, सरोजिनी नायडू कला एवं संचार संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा नटराज रामकृष्ण स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया. हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.जे. राव और संकायाध्यक्ष प्रो. वासुकि बेलवाड़ि ने इस व्याख्यान की अध्यक्षता की जिसमें शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों ने भाग लिया.

सुश्री चित्रा विश्वेश्वरन, भारतीय नृत्य के क्षेत्र में एक किंवदंती, विचारक और साधक हैं, जिन्होंने नृत्य और संगीत में गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया है. ज्ञान के लिए उनकी आंतरिक तृष्णा, पश्चिमी बैले, मणिपुरी, कथक, रवींद्रनृत्य, रवींद्रसंगीत और रंगमंच में उनकी उदार पृष्ठभूमि ने श्रीमती चित्रा को नृत्य के क्षेत्र में प्रधान नृत्यांगना के रूप में स्थापित किया. वे अपने विशिष्ट शैली के लिए जानी जाती हैं, जो भरतनाट्यम की तकनीक को अगले स्तर पर ले जाती हैं, जो दर्शकों में एक अद्वितीय सौंदर्य और आध्यात्मिक अनुभव जागृत करती है. 1974 में उनके द्वारा स्थापित की गई चिदम्बरम अभिनय कला अकादमी के माध्यम से आपने कई कलाकारों को तैयार किया है और नृत्य प्रशिक्षण को एक समग्र दृष्टिकोण से परिचित कराया. सुश्री विश्वेश्वरन ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतिष्ठित स्थानों और समारोहों में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, जिनमें संयुक्त राष्ट्र में यूनेस्को और संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ समाजवादी गणराज्य, स्पेन में भारतीय उत्सवों में और भारत के 50वीं आजादी के वर्ष के लिए बीबीसी अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण सम्मिलित हैं. वे दुनिया भर के प्रतिष्ठित सांस्कृतिक मंचों और विश्वविद्यालयों में एक बहुप्रतीक्षित वक्ता के रूप में अपने प्रपत्र, व्याख्यान, व्याख्यान प्रदर्शनों का योगदान कर चुकी हैं. उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें से कुछ नाम – पद्म श्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, नृत्यचूड़ामणि और सिटी ऑफ बोर्जेस, फ्रांस और जापान फाउंडेशन अवार्ड प्रमुख हैं.

         

व्याख्यान में सुश्री विश्वेश्वरन ने अपने शोध प्रक्रिया का विवरण दिया कि नृत्य और नर्तक/नर्तकी को बनाने में संप्रेषण एक प्रभावी साधन है. श्रीमती चित्रा ने कहा कि वे मानती हैं कि नर्तक/नर्तकी का उस अवस्था को पाने के लिए कला के प्रति दृष्टिकोण समग्र और समावेशी होना चाहिए. इस तरह उनके वक्तव्य ने संगीत, साहित्य, रंगमंच, शिल्पकला, प्रकाश और चित्रकारी की संबद्ध कलाओं से उनकी असंख्य खोज और प्रेरणाओं में तल्लीन उनके रचनात्मक नाट्यनिर्देशक कलाकृति का परिचय दिया. अपने अनुभवों को याद करते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे कला के प्रति प्रतिक्रिया ने उन्हें शारीरिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और बौद्धिक संचार के एक उपकरण के रूप में पूरे शरीर का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जिससे समकालीन समय के लिए यह प्रासंगिक बन गया. अंत में श्रीमती चित्रा ने बताया कि नृत्य और नर्तक अलगाव में विकसित नहीं होते हैं. इससे पहले दिन में श्रीमती चित्रा ने नृत्य विभाग का दौरा किया और छात्रों के साथ अनौपचारिक बातचीत में समय बिताया और उन्हें अपने व्यावहारिक कलात्मक अनुभवों से अवगत कराया.

कार्यक्रम में बोलते हुए प्रो. बी.जे. राव ने सुश्री विश्वेश्वरन की व्याख्यात्मक वार्ता के लिए उनकी सराहना की, जिससे उन्हें उम्मीद है कि कला में संश्लेषण के महत्व को सीखकर, छात्र अपनी कलात्मक यात्रा को समृद्ध करने के लिए प्रेरित होंगे.

प्रो. बेलवाड़ि द्वारा धन्यवाद ज्ञापन दिया गया.