हैदराबाद विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय छात्र संघ 2014-15 ने 19 से 21 फरवरी 2015 तक प्रथम अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव ‘हेटिरोग्लॉशिया’ का आयोजन किया.
तुलनात्मक साहित्य विभाग की सहायक प्रोफेसर एवं इस फिल्म महोत्सव की संकाय समन्वयक डॉ. सौम्या देचम्मा ने इस फिल्म महोत्सव के अवसर पर बात करते हुए कहा कि मैं फिल्मों की शौकीन नहीं हूँ परंतु ये फिल्में आज दुनिया में घटित हो रही अनेक समसामयिक समस्याओं एवं मुद्दों को हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं. जो लोग पुस्तक पठन के शौकीन नहीं हैं, वे भी इन फिल्मों के माध्यम से आज की स्थितियों को बखूबी समझ सकते हैं.
हेटिरोग्लॉशिया शब्द का प्रयोग रूस के प्रमुख लेखक एवं विचारक मिखाइल बाख़्तिन द्वारा किया गया था. जिसका अर्थ है – विभिन्न परिदृश्यों में रहने वाले लोगों की भिन्न प्रकार की आवाज़ें. इस महोत्सव का उद्देश्य है विभिन्न प्रदेशों के लोगों की मानसिक एवं समसामयिक समस्याओं एवं मुद्दों को समझना.
विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों के ब्यूरो सदस्य एवं जय बोलो तेलंगाना, राम, आयुधम्, जयं मनदेरा, एनकाउंटर जैसी तेलुगु हिट फिल्मों के प्रसिद्ध निर्देशक एन. शंकर ने इस महोत्सव का उद्घाटन किया.
छात्र कल्याण के डीन प्रो. प्रकाश बाबू ने इस महोत्सव को आयोजित करने के लिए छात्र संघ की प्रशंसा करते हुए कहा कि आप वास्तविकता को तब तक समझ नहीं पाएँगे, जब तक कि आप उसकी मूलभूत प्रकृति को और उसके तथ्यों को बखूबी न जानेंगे. इसके लिए आपको दुनिया की को समझना चिहिए. ऐसा करने में फिल्में आप की काफी सहायक बन सकती हैं, जो दुनिया के कोने-कोने में बसे अलग-अलग लोगों की भावनाओं को और इस विश्वभर के भिन्न सांस्कृतिक वातावरण को समझने में सहायक बनतीं हैं. अंत में उन्होंने कहा कि फिल्में स्वर्ग में नहीं बनतीं हैं, बल्कि लोगों के रोज़मर्रा के जीवन में से ही उभरती हैं.