पिछले कुछ वर्षों से दक्षिण भारत के शहरों में कई बार भारी वर्षा की स्थिति देखी गई है. इनमें चेन्नई और आसपास के इलाकों में दिसंबर, 2015 में हुई बारिश से हुई भारी तबाही; हैदराबाद और तेलंगाना के अन्य क्षेत्रों में सितंबर, 2016 में हुई तेज़ बरसात और अगस्त, 2018 में केरल में हुई भीषण वर्षा शामिल है. इन तीनों राज्यों की भौगोलिक स्थिति और बरसात का मौसम भी भिन्न-भिन्न है. अरब सागर के दक्षिण-पश्चिमी भारतीय तट पर स्थित केरल में ग्रीष्म मॉन्सून के दौरान जून-सितंबर में भारी बारिश होती है. बंगाल की खाड़ी के तमिल नाड़ू में मुख्यत: ईशान्य मॉन्सून (अक्तूबर-दिसंबर) में वर्षा होती है. भूमि से घिरे तेलंगाना राज्य में वार्षिक वर्षा का अधिकतम हिस्सा ग्रीष्म मॉन्सून में ही बरसता है. हैदराबाद विश्वविद्यालय के पृथ्वी, महासागर और वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र के प्रो. करुमूरि अशोक और उनके दल ने इस बात का अध्ययन किया कि क्या इन भारी बारिशों के पीछे भूमि के प्रयोजन में बदलाव जैसा कोई सामान्य कारक हो सकता है. उनके शोध को 18 मई, 2020 को ‘Quarterly Journal of Royal Meteorological Society’ जर्नल में रिपोर्ट किया गया. https://rmets.onlinelibrary.wiley.com/doi/abs/10.1002/qj.3826

 

आपके अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2000 से 2017 तक इन राज्यों में भारी बारिश की घटनाएँ बढ़ गई हैं. भूमि प्रयोजन के परिवर्तन (LULC) डाटा को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सतह के तापमान में काफी बढ़ोतरी हुई है और सीमावर्ती परत अधिक गहरी और नम हो गई है. इसके कारण उपलब्ध संवहन संभावित ऊर्जा बढ़ गई और परिणामस्वरूप भारी वर्षा हुई. इस अध्ययन का यह भी मानना है कि तेलंगाना और तमिल नाड़ु राज्यों में शहरीकरण बढ़ने के साथ ही भारी वर्षा की घटनाएँ 20% से 25% तक बढ़ेंगी. प्रो. अशोक मानते हैं कि अवलोकन वर्षा का घनत्व सुधारना और मौसम के अन्य मानकों से हम शहरों में होनेवाली भारी वर्षा की पूर्वसूचना दे सकते हैं.

प्रो. के. अशोक और शोध के प्रथम लेखक – उनके पीएच.डी. शोध-छात्र श्री. ए. बोयज, दोनों ही हैदराबाद विश्वविद्यालय के पृथ्वी, महासागर और वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र से हैं. यह कार्य किंग अब्दुल्लाह यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, सऊदी अरब के प्रो. इब्राहिम होतेत और डॉ. हरि प्रसाद दासरि के सहयोग से संपन्न हुआ.