10.04.2019, हैदराबाद विश्वविद्यालय में “बिल्डिंग पॉजिटिव एटीट्यूड” पर साइकोथेरेपी की विशेषज्ञ जीनत भारद्वाज ने मानविकी परिषद के कॉन्फ्रेंस हॉल में छात्रों से बातचीत की| डीन स्टूडेंट वेलफेयर और हिंदी-विभाग के सहयोग से यह परिचर्चा आयोजित की गई| विशिष्ट अतिथि का स्वागत फल एवं शाल के साथ डीन डी.एस.डब्ल्यू, विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सच्चिदानंद चतुर्वेदी और प्रोफेसर आलोक पांडे ने किया| इस दौरान हिंदी-विभाग के प्रोफेसर सच्चिदानंद चतुर्वेदी, प्रोफेसर आलोक पांडे, डॉ भीम सिंह एवं स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज के भी शिक्षक उपस्थित थे| छात्रों ने कई तरह की समस्याएं खुलकर रखी जैसे-एकाग्र चित्त कैसे हो, अपने भीतर के डर से कैसे लड़े, नकारात्मक विचारों से कैसे बचे, सही-गलत का चुनाव कैसे करें, सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग आदि कई तरह के प्रश्न सामने आए| संवाद की इस प्रक्रिया ने विद्यार्थियों और शिक्षकों के मध्य एक अदृश्य संवाद-सेतु का निर्माण किया| तीन प्रमुख बिंदु चर्चा के केंद्र में थे- ‘अपेक्षाएं’/ ‘उम्मीद’, ‘स्वीकार्यता बोध’ और ‘वर्तमान में जीना’| ज़ीनत भारद्वाज ने एक सफल व्यक्तित्व के पीछे इन तीन बिंदुओं के संतुलन को उत्तरदाई माना| एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हुए छात्रों की समस्याओं को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत कर एक सहज माहौल प्रोफेसर आलोक पांडे ने निर्मित किया| प्रोफेसर सच्चिदानंद चतुर्वेदी और प्रोफेसर आलोक पांडे ने निरंतर छात्रों का मनोबल बढ़ाया और उन्हें अधिक से अधिक प्रश्न करने के लिए प्रेरित किया| परिचर्चा का मूल उत्स इस प्रकार है- ‘अपेक्षाएं’ किससे और कितनी रखनी है, ‘स्वीकार्यता बोध’- अपनी सकारात्मक और नकारात्मक बिंदुओं की ओर, उनमें आवश्यक सुधार और अंततः ‘वर्तमान में जीना’, एक-एक पल को महसूस करने का बोध- यह सभी व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं| इस प्रकार व्यक्ति एक सफल, संतुलित और ‘पॉजिटिव एटीट्यूड’ से अपना जीवन निर्वाह कर सकता है|

आज जब विद्यार्थी तमाम तरीके की परेशानियों से घिरा हुआ है, प्रतिपल एक नई चुनौती है उसके सम्मुख है ऐसे में यह संवाद-सत्र किसी औषधि से कम नहीं| इस उद्देश्य पूर्ण एवं सार्थक सत्र के लिए सभा में उपस्थित सभी शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के साथ-साथ ज़ीनत भारद्वाज का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रोफेसर आलोक पांडे ने परिचर्चा का समापन किया|