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राजनीति विज्ञान विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय के सेमिनार हॉल में 02-04 दिसंबर, 2016 के दौरान विश्व बौद्ध संस्कृति ट्रस्ट, नोएडा ने संस्कृत अध्ययन विभाग, बौद्ध अध्ययन केंद्र, हैदराबाद विश्वविद्यालय तथा ड्रेपिंग लोसेलिंग मोनेस्ट्री, मुंडगोड, कर्नाटक के सहयोग से ‘बौद्ध पूर्व दर्शन’ पर एक तीन दिवसीय पाठ्यक्रम का आयोजन किया.

ड्रेपिंग लोसेलिंग मोनेस्ट्री से चयनित बीस भिक्षुओं ने इस पाठ्यक्रम में भाग लिया. उनमें से कुछ तिब्बती बौद्ध धर्म की उच्चतम डिग्री ‘गेशे’ के धारक हैं. इन तीन दिनों के पाठ्यक्रम के विभिन्न सत्रों के व्याख्यान विषय इस प्रकार थे –
• उपनिषदों में दर्शन का परिचय
• भारतीय दर्शन में मुक्ति के चार रास्ते
• भारतीय दर्शन की छह प्रणालियाँ
• उपनिषदों में भारतीय दर्शन की छह प्रणालियों की उत्पत्ति
• योग दर्शन
• न्याय दर्शन और तर्क
• वैशेषिक दर्शन और तर्क

इस अवसर पर संस्कृत विभाग, उस्मानिया विश्वविद्यालय की (सेवानिवृत्त) प्रो. पी. शशि रेखा ने बीज व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि, बौद्ध दर्शन और वेदांत विचारधारा के बीच ज्यादा अंतर नहीं है. इसे स्पष्ट करते हुए उन्होंने धम्मपद, बुद्ध चरित ग्रंथों में समाहित नैतिकता और नैतिकता परक अवधारणाओं के उद्धरण प्रस्तुत किए साथ में मिलिंडा पनह और जातक कथाओं के उदाहरण भी पेश किए. इसके अलावा, अश्वघोष, बिम्बिसार और अशोक आदि द्वारा अपनाए गए दर्शन के बारे में भी चर्चा की.

Prof. Panchanan Mohanty

इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता मानविकी संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. पंचानन मोहंती ने की. इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि, तिब्बती साहित्य ने भारतीय दार्शनिक साहित्य के लिए बहुत योगदान दिया है. उड़ीसा राज्य में स्थित धर्मशाला ने भी हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध धर्मशाला को प्रेरणा प्रदान की है. आगे उन्होंने कहा कि हिंदू दर्शन के अनुसार विष्णु के दस अवतारों में से बुद्ध अवतार को सर्वोच्च आत्म दर्शन प्रदान करने वाला अवतार माना गया है. इससे पूर्व संस्कृत अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डॉ. जे.एस.आर.ए. प्रसाद ने आमंत्रित प्रतिनिधियों का स्वागत किया.

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कंप्यूटर और सूचना विज्ञान संकाय के प्रो. के. नारायण मूर्ति ने योग दर्शन पर अतिथि व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए योग के अष्टांगिक मार्ग की अवधारणा को सरलीकृत ढंग से समझाया. इसी तरह, ‘प्राणायाम’ के बारे में बताया कि, सांस लेने की स्वैच्छिक और अनैच्छिक प्रक्रियाओं का नियंत्रण ही ‘प्राणायाम’ है.

समापन सत्र के दौरान डॉ. डोबूम टुल्कु रिनपोछे ने विश्व बौद्ध संस्कृति ट्रस्ट के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के बारे में बताया. अपने व्याख्यान के दौरान उन्होंने बताया कि यह न्यास अंतर-धार्मिक और अंतर-सांस्कृतिक परंपराओं के सामंजस्य के लिए प्रयास कर रहा है. इस संदर्भ में उन्होंने बताया कि यह विचार परमपूज्य दलाई लामा से प्रेरित होकर अपनाया गया है. डॉ. टुल्कु ने कहा कि यह पाठ्यक्रम उसा दिशा में कार्य करने की पहला कदम है. मठ के दो भिक्षुओं ने तिब्बती दार्शनिकता पर विचार-विमर्श करते हुए आत्मा और पुनर्जन्म से संबंधित बातों पर अपने-अपने विचार अभिव्यक्त किए.

इस अवसर पर तिब्बती अध्ययन केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सारनाथ के लेक्चरर श्री. त्सेरिंग संदूप ने आदरणीय भिक्षुओं के लाभ हेतु सभी व्याख्यानों का अनुवाद तिब्बती भाषा में किया. सभी प्रतिभागियों ने इस कार्यक्रम में भाग लेने पर अपनी खुशी जताते हुए आदरणीय रिनपोछे से निवेदन किया कि आगामी समय में इस तरह के और अधिक कार्यक्रमों का आयोजन करें. कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को ट्रस्ट द्वारा ‘अंगवस्त्र’ भेंट किया गया. इस तीन दिवसीय पाठ्यक्रम में डॉ. जे.एस.आर.ए. प्रसाद ने नेतृत्व प्रशिक्षक के रूप में कार्य किया.