हैदराबाद विश्वविद्यालय के सामाजिक बहिष्करण एवं समावेशी नीति अध्ययन केन्द्र (CSSEIP) ने दि. 8 अप्रैल, 2014 को ‘Identity and the Idea of India: An experience from North-East’ विषय पर पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी और ‘On a Clear Day You Can See India’ नामक पुस्तक के लेखक श्री. सी. बालगोपाल का विशेष व्याख्यान आयोजित किया था. सत्र की अध्यक्षता हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय श्री. रामकृष्ण रामस्वामी ने की.
प्रो. रामस्वामी ने अपने विद्यार्थी दिनों के दौरान मद्रास विश्वविद्यालय के लोयोला कॉलेज में श्री. बालगोपाल के साथ अपने संबंधों को याद किया.
अपने व्याख्यान में श्री. बालगोपाल ने कहा कि बहुत पहले 600 से अधिक स्वतंत्र निकायों से मिलकर स्वाधीन भारत की रचना हुई थी. भारत की इसी अनेकता को देखकर कई देशों ने सोचा कि स्वतंत्रता के बाद बहुत समय तक भारत अपना अस्तित्व बनाए नहीं रख पाएगा. उन्होंने आगे कहा कि भारत चीन के मुकाबले छोटा देश है, किंतु अपनी विविधता के चलते इसे उप-महाद्वीप कहा जाता है. भारतीय कई भाषाएँ बोलते हैं, पर किसी भी नागरिक को संघ की सभी भाषाओं का ज्ञान नहीं होता.
श्री. बालगोपाल का कहना था कि भारत की अलग-अलग सरकारों ने भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा पूर्वी राज्यों की ओर कम ध्यान दिया. पूर्वोत्तर क्षेत्र की तरफ सरकारों का रवैया भारत के शेष राज्यों की तरह नहीं था. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व अविभाजित असम के प्रथम प्रधानमंत्री और बाद में भारतीय राज्य असम के मुख्य मंत्री श्री. गोपीनाथ बोरदोलोई ने असम को भारत से जोड़कर रखने में महती भूमिका निभाई.
श्री. बालगोपाल के अनुसार आज विश्व के सामने पहचान, प्रवास और शासन महत्वपूर्ण मुद्दे बनकर उभरे हैं. पहचान और प्रवास के कारण शासन के समक्ष कई चुनौतियाँ पेश आती हैं. उन्होंने कहा कि मीडिया को शासन में एक सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए, न कि घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना चाहिए. भारत सुशासन के लिए पूरी तरह से सक्षम है. अन्य जनतांत्रिक देशों की तुलना में भारत पहचान और प्रवास से उपजे मुद्दों का समाधान करने में अधिक समर्थ है. भारतीय शासन पद्धाति की तरह अमेरिकी पद्धति पहचान और प्रवास के मुद्दों के पहले से ताड़ने के लिए प्रशिक्षित नहीं है.
श्री. बालगोपाल ने यह कहते हुए अपना वक्तव्य संपन्न किया कि पहचान, प्रवास और शासन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.