सुरिंदर एस. जोधका द्वारा लिखित और Routledge India द्वारा प्रकाशित ‘Caste in contemporary India’ नामक पुस्तक की पॅनल चर्चा के अवसर पर यह विचार मुख्य रूप से उभर कर सामने आया. यह चर्चा दि. 23 फरवरी को समाज विज्ञान संकाय के क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र द्वारा आयोजित की गई थी.
क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष डॉ. अरविंद एस. सुसार्ला ने पुस्तक और लेखक का परिचय प्रस्तुत किया. प्रो. शशीज हेगड़े, समाजशास्त्र विभाग, डॉ. पी. तिरुमल, संचार विभाग और डॉ. के. सत्यनारायणा, सांस्कृतिक अध्ययन विभाग – अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय ने पुस्तक के संबंध में अपने विचार प्रकट किए. सामाजिक व्यवस्था अध्ययन केन्द्र, जे.एन.यू. के प्रो. सुरिंदर एस. जोधका उपस्थितों की आलोचनाओं और प्रश्नों का उत्तर दिया.
पुस्तक के केन्द्र में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों की जाति संबंधी समस्याएँ हैं. यह पुस्तक जाति को समझने के लिए मुख्यत: तीन कारणों की ओर संकेत करती हैं – परंपरा के रूप में जाति, शक्ति के रूप में जाति और अवमानना के रूप में जाति. सभी पॅनल सदस्यों ने इस बात को स्वीकार किया कि ‘अवमानना के रूप में जाति’ की पहचान इस पुस्तक ने की है, जो असमानता का मूल कारण है.
प्रो. शशीज हेगड़े ने कहा कि जाति के अध्ययन को नई शब्दावली की दरकार है और वर्तमान सिद्धांतों में प्रमाण जोड़ने की आवश्यकता है ताकि उनकी प्रासंगिकता बनी रहे. आपने एक आलोचनात्मक टिप्पणी भी की, कि प्राय: जाति को कारण के रूप में देखा जाता है, परिणाम के रूप में नहीं.
डॉ. तिरुमल ने लेखक को बधाई दी कि उन्होंने अपनी पुस्तक में सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों के साथ दार्शनिक पहलुओं को जोड़ा है. उन्होंने कहा कि स्वातंत्र्योत्तर भारत में जाति का स्वरूप दार्शनिक कम और राजनीतिक अधिक रहा है.
डॉ. सत्यनारायणा ने लेखक के साथ अपनी सहकर्मिता को याद करते हुए कहा कि पूंजीवाद जाति प्रथा का सफाया नहीं कर सकता और आधुनिकता के साथ जाति नित नया रूप धारण कर रही है.
आलोचनाओं और प्रश्नों का जवाब देते हुए लेखक ने इस बात पर विस्तार से प्रकाश डाला कि सिर्फ आधुनिकता से जाति नहीं जाएगी.