आज़ादी के अमृत महोत्सव के सिलसिले में विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) के सहयोग से गुरुवार, दि. 27 अक्तूबर, 2022 को एक विशिष्ट व्याख्यान ‘स्वतंत्रता संग्राम में अनुसूचित जनजाति के नेताओं की भूमिका’ का आयोजन किया. अब तक 125 से अधिक विश्वविद्यालयों ने इस व्याख्यान शृंखला में भाग लिया है.
यह विशिष्ट व्याख्यान देने हेतु प्रो. टंका बहादुर सुब्बा को आमंत्रित किया गया था. डॉ. सुब्बा सिक्किम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा संप्रति टेलर्स विश्वविद्यालय, मलेशिया में अतिथि प्रोफेसर हैं. आपको होमी भाभा फेलशिप (मुंबई) प्राप्त हुई है. डॉ. सुब्बा ने 18 पुस्तकें लिखी हैं और पूर्वी हिमालय से संबंधित विविध मुद्दों पर 75 लेख भी प्रकाशित किए हैं.
इस कार्यक्रम में एनसीएसटी के प्रतिनिधि के रूप में डॉ. सीमा सिंह, एनसीएसटी की मानद सलाहकार के साथ मध्य प्रदेश के माननीय मुख्य मंत्री के उप सचिव श्री. लक्ष्मण सिंह मरकम भी उपस्थित थे. इनके अलावा मंच पर हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. बी.जे. राव; डॉ. देवेश निगम, कुलसचिव तथा प्रभारी परीक्षा नियंत्रक; सहायक प्रोफेसर डॉ. वीरबाबू और अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे.
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. सीमा ने कहा, “व्याख्यान का यह विषय अब तक शिक्षाविदों और सामान्य जनता द्वारा भी लगभग अछूता रहा है. इस प्रकार के व्याख्यान आयोजित करने का उद्देश्य है कि हमारे युवा साथी अपने इतिहास को जानें और जनजातीय सांस्कृतिक मॉडल, पहचान और पारंपरिक ज्ञान में शोध करने के लिए प्रेरित हों.”
इसके उपरांत एनसीएसटी के कार्यकलापों से संबंधित एक वीडियो दिखाया गया. श्री. लक्ष्मण सिंह मरकम ने हिंदी फिल्मों में चित्रित आदिवासियों और लोगों की धारणा के परिप्रेक्ष्य में जनजातियों के यथार्थ की बात की. आपने रानी दुर्गावती, कोमरम भीम और बिरसा मुंडा और अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का आदरपूर्वक उल्लेख किया. श्रोताओं ने भाषा संरक्षण और जनजातियों की स्थिति जैसे विषयों पर वक्ताओं से विचार विमर्श किया.
डॉ. सुब्बा के व्याख्यान ने कई प्रश्नों का उत्तर दिया और श्रोताओं के समक्ष कई सवाल खड़े भी किए. उन्होंने कहा कि जनजातियों ने अपने अधिकारों की एक लंबी लड़ाई लड़ी और वे अंग्रेजों के अत्यधिक कर व्यवस्था के खिलाफ थे. जनजातीय लोग मैदानी इलाकों में रहनेवाले लोगों पर विश्वास नहीं करते थे और यह सिलसिला स्वतंत्रता के बाद भी चलता रहा. डॉ. सुब्बा ने प्रचलित भेदभावों की बात की, यह भी बताया कि पूर्वोत्तर के लोगों के प्रति अन्य लोगों का मन पूर्वग्रह से ग्रसित होता है.
आपने टिप्पणी की, कि स्वतंत्रता और राष्ट्रीयता के संदेश का प्रसार समस्त भारत में एक-सा नहीं हुआ. स्वाधीनता संग्राम में जनजातीय लोगों को भी शामिल करने के पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए. जनजाति के लोगों की कम संख्या भी एक और कारण रहा कि वे आज़ादी के आंदोलन से पूरी तरह नहीं जुड़ पाए. हालांकि डॉ. सुब्बा ने कुछ जननायकों का ज़िक्र किया – पूर्वोत्तर से यू. टिरोट सिंह, रानी गायदिनलिउ और मध्य भारत से अल्लूरि सीतारामराजू. आपने यह कह कर अपनी बात समाप्त की कि जनजातीय लोगों को पता था कि यह लड़ाई कठिन होगी, फिर भी उन्होंने शक्तिशाली ब्रिटिश सेना से दो हाथ किए.
डॉ. बी.जे. राव ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि हमें लोगों के अलग-अलग विचारों से आत्ममंथन कर ज्ञान की प्राप्ति करनी चाहिए. जनजातीय लोगों ने अन्याय को खिलाफ आवाज़ उठाई.
तदुपरांत, सभी गणमान्य अतिथियों का कुलपति महोदय ने सम्मान किया.