हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिंदी कक्ष द्वारा दिनांक 20.06.2014 को हैदराबाद विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित प्रशासनिक भवन में विश्वविद्यालय में कार्यरत अधिकारी समूह के लिए एक-दिवसीय हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के समकुलपति प्रो. ई. हरिबाबू ने उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष का भार संभाला। हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वी. कृष्णा और प्रो. आर.एस. सर्राजु भी इस अवसर पर उपस्थित थे। हिंदी अधिकारी डॉ. (श्रीमती) श्री ज्ञानमोटे ने इस सत्र का संचालन किया।
प्रो. वी. कृष्णा ने अपने स्वागत भाषण में विश्वविद्यालय में हिंदी कार्यान्वयन के प्रति हिंदी कक्ष द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। उन्होंने सभी अधिकारियों से आग्रह किया कि वे अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को बल दें और हिंदी में भी शासकीय कार्य करने का प्रयास करें। उन्होंने इस संबंध में महान कवि भारतेंदु और धूमिल की कविताओं का उल्लेख करते हुए प्रतिभागियों को प्रेरित किया।
प्रो. वी. कृष्णा ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस तरह की कार्यशालाओं के आयोजन से हिंदी में काम करने की प्रेरणा कर्मचारियों और अधिकारियों को मिलती है। हिंदी विभाग में सेवारत प्रो. आर.एस. सर्राजु ने व्यावहारिक हिंदी को स्वीकार करने पर बल दिया तथा छोटी-छोटी टिप्पण्णियाँ हिंदी में लिखने से शुरुआत करने का आग्रह किया।
प्रो. ई. हरिबाबू ने अपने अध्यक्षीय भाषण में सरल और व्यावहारिक हिंदी को अपने काम-काज में प्रयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया।
हिंदी शिक्षण योजना के प्राध्यापक श्री. जयशंकर प्रसाद तिवारी अतिथि वक्ता के रूप में राजभाषा नियमों की जानकारी देते हुए हिंदी में कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
दूसरे सत्र में राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान में कार्यरत हिंदी अधिकारी श्री. सीएच.वी. सुब्बा राव ने यूनिकोड प्रयोग की जानकारी दी और अधिकारियों को तिमाही प्रगति रिपोर्ट का महत्व समझाया।
श्री. के. साई जवाहर, श्री. सी. प्रदीप, डॉ. वी. उमा, श्री. बी. श्रीनिवास, श्री. पी. वीरशेखर, श्री. मो. अली बेग, श्री.आर. पोमल राव तथा मो. यूसुफुद्दीन आदि अधिकारियों ने कार्यशाला में सक्रिय रूप से भाग लिया।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. आई. रामब्रह्मम ने कार्यशाला में उपस्थित सभी प्रशिक्षार्थियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए और उन्हें काम-काज में हिंदी करने के लिए प्रेरित किया। इस कार्यशाला में ‘हिंदी कक्ष’ में सेवारत श्री. जे.जे. प्रसन्ना सिंह, हिंदी शिक्षक श्री. ए. जीवन और हिंदी टंकक श्री. एस. अरुण कुमार ने बहुमूल्य योगदान किया.