हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा दिनांक 10 जनवरी 2021 को ‘विश्व हिंदी दिवस’ समारोह का आयोजन किया गया. विभाग द्वारा आयोजित इस समारोह में “हिंदी का वैश्विक परिदृश्य” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता के रूप में हिंदी के सुपरिचित लेखक, चिंतक एवं भारतीय राजस्व सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. राकेश कुमार पालीवाल ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया. डॉ. पालीवाल ने कहा कि हिंदी को वैश्विक स्तर पर प्रचारित-प्रसारित करने का काम हिंदी को देश में सम्मानित किये बिना नहीं हो सकता. हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा का गौरव प्रदान करके ही यह काम संभव है. विश्व में हिंदी की स्वीकृति से अधिक महत्वपूर्ण देश में हिंदी की स्वीकृति है और ऐसा तब होगा जब हिंदी सरल, सहज रूप में लोकमानस से जुड़ेगी. हिंदी के अकादमिक जगत और लोक वृत्त दोनों से संतुलन का आह्वान करते हुए उन्होंने यह विश्वास व्यक्त किया कि अपने दायरे को व्यापक बनाते हुए गंगा और ब्रह्मपुत्र की तरह भारत की अन्य भाषाओं के साथ सम्मानपूर्वक आदान-प्रदान करते हुए हिंदी अपनी अन्य जनपदीय बोलियों और हिंदीतर भाषाओं से जुड़ते हुए निश्चित रूप से गाँधी के सपनों के अनुरूप देश की सर्वमान्य भाषा बनेगी.
डॉ. पालीवाल ने अपने वक्तव्य में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में हिंदी के योगदान पर भी चर्चा की और हिंदी के प्रचार-प्रसार में गाँधी की ऐतिहासिक भूमिका पर प्रकाश डाला. लेखक के तौर पर उन्होंने अपने उपन्यास में चित्रित गैर-हिंदी प्रदेशों के नायकों की चर्चा की और इसे हिंदी की सहज राष्ट्रीय स्वीकृति के लिए आवश्यक बताया. भारत, फिजी, न्यूज़ीलैण्ड, सिंगापुर, जमैका, त्रिनिदाद और टोबागो, मॉरिशस सहित अमेरिका और अन्य देशों में बसे प्रवासी लेखकों की चर्चा करते हुए उन्होंने इसे हिंदी की भूमि और भूमिका का विस्तार बताया .
कार्यक्रम की अध्यक्षता विभाग के अध्यक्ष प्रो. गजेन्द्र पाठक ने की. उन्होंने अपने वक्तव्य में गाँधी और भवानी दयाल सन्यासी के दक्षिण अफ्रीकी प्रवास की चर्चा करते हुए इस बात की तरफ ध्यान आकृष्ट किया कि हिंदी की सामासिक संस्कृति और सम्पर्क शक्ति का पता गाँधी को दक्षिण अफ्रीका के प्रवास के दौरान ही मिल गया था. ‘इन्डियन ओपिनियन’ के हिंदी संस्करण की जरुरत और उसके संपादक के रूप में भवानी दयाल संन्यासी का चुनाव भावी भविष्य की भूमिका थी. प्रोफेसर पाठक ने भवानी दयाल संन्यासी द्वारा संपादित अपने समय में पूरे अफ़्रीकी महादेश में प्रचारित-प्रसारित लोकप्रिय साप्ताहिक पत्रिका ‘हिंदी’ का उल्लेख करते हुए इस पत्रिका के प्रकाशन के शताब्दी वर्ष में ‘विश्व हिंदी दिवस’ को ऐतिहासिक संकल्प का एक अवसर बताया. गाँधी ने हिंदी की जिस शक्ति को दक्षिण अफ्रीका में अलग-अलग प्रदेशों के मजदूरों के बीच देखा वही ताकत उन्हें अपने भारत भ्रमण के दौरान भी दिखी. हिंदी और गाँधी के सम्बन्ध को पहचानने वाले लोगों की अगली कतार में खड़े लेखकों, विचारकों की श्रेणी में पालीवाल जी की चर्चा करते हुए उन्होंने उनकी रचना ‘कस्तूरबा’ को गाँधी जी की डेढ़ सौवीं वर्षगाँठ पर एक मार्मिक श्रद्धांजलि बताया.
डॉक्टर भीम सिंह, डॉक्टर रविकांत (सी.एस.डी. एस, दिल्ली), भावना कौशिक ,अभिमन्यु आनंद, गुलाब सिंह, अभिषेक उपाध्याय, अजित आर्या, सोनल नारायण सरीखे प्राध्यापकों,अतिथियों और शोधार्थियों ने अपने सवाल और संवाद से इस आयोजन को सफल और सार्थक बनाया.
कार्यक्रम का कुशल संचालन और धन्यवाद ज्ञापन शोधछात्र प्रतिनिधि सेतु कुमार वर्मा ने किया. यह कार्यक्रम ‘गूगल मीट’ के माध्यम से ऑनलाइन संपन्न हुआ जिसमें प्रोफेसर सी. अन्नपूर्णा, प्रोफेसर विष्णु सर्वदे, डॉक्टर भीम सिंह जैसे प्राध्यापकों के अतिरिक्त विश्वविद्यालय के जन संपर्क अधिकारी श्री टी.थॉमस सहित बड़ी संख्या में शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया.
विदित हो कि हिंदी दिवस’ का आयोजन हिंदी के वैश्विक प्रचार, प्रसार और हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने के उद्देश्य किया जाता है. विश्व भर में भारतीय दूतावासों तथा अन्य केन्द्रों के द्वारा ‘विश्व हिंदी दिवस’ के दिन हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
10 जनवरी 1975 को नागपुर में हुए पहले ‘विश्व हिंदी सम्मलेन’ को याद करते हुए इस दिन को भारत सरकार के द्वारा 2006 से वैश्विक स्तर पर आयोजित करने का फैसला लिया गया था.