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1857 की क्रांति को भारत में पहला स्वाधीनता संग्राम भी माना जाता है, जिसमें सत्ता रूढ़ इस्ट इंडिया कंपनी के विरोध में भारतीय सिपाहियों ने बगावत की थी ।

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यह श्रृंखला भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उन दिनों में घटित घटनाओं को बयान करती है, जिसमें 1857 की क्रांति की शुरूआत, स्वाधीनता संग्राम से जुड़े विभिन्न आंदोलन तथा आज़ादी  तक के विषय इसमें समाहित हैं ।  उस काल में घटित विभिन्न घटनाओं को भारतीय एवं अंग्रेज़ दोनों ने अपने-अपने नज़रिये से देखा । इस संग्राह में 19वीं सदी से लेकर 20 वीं शताब्दी के आरंभ तक लिखे गए विभिन्न विद्रोही उपन्यासों का संकलन है । इस विद्रोही उपन्यास श्रृंखला का उद्घाटन हैदराबाद की ब्रिटिश लाइब्रेरी में आयोजित एक समारोह में 17 अगस्त, 2013 को हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामाकृष्ण रामस्वामी ने किया । इस विद्रोही उपन्यास श्रृंखला में तत्कालीन नायाब ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक घटनाओं से जुडे छह उपन्यास हैं । यह संग्रह भारतीय साहित्यिक पाठकों के मानस पटल पर अत्यंत नाटकीय, आक्रामक, उत्तेजक एवं चिंतनशील राजनीतिक पक्षों को उजागर करता है ।  इस समारोह में हैदराबाद विश्वविद्यालय के सामाजिक मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. अमिताभ दास गुप्ता ने भी अपने विचार अभिव्यक्त किए थे ।

हैदराबाद विश्वविद्यालय अंग्रेजी विभाग के शिक्षक डॉ. प्रमोद के नायर द्वारा संपादित तथा डी.सी. बुक्स द्वारा प्रकाशित इस संग्रह में एलिस एफ जौक्सन का एक बहादुर लड़की, लुईस फ्रांसिस फील्ड़ का ब्रैडा, आर.ई.फॉरेस्ट का आठ दिन, मौक्सवेल ग्रे का तूफ़ान के दिल में, अगस्ता मौरियट का जंगल में खो गया और लुई ट्रेसी द्वारा रचित लाल वर्ष उपन्यास हैं ।