हैदराबाद विश्वविद्यालय, सामाजिक विज्ञान संकाय के क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष डॉ. वी. श्रीनिवास राव, सह-प्रोफेसर की चौथी पुस्तक Disadvantaged Tribes of India: Regional Concerns का प्रकाशन रावत प्रकाशन ने किया है.

यह पुस्तक एक संपादित अंक है, जिसमें चार अलग-अलग विषय शीर्षों के अंतर्गत 19 अध्याय हैं. भारत सरकार और आंध्र प्रदेश सरकार के आदिवासी कल्याण विभाग के वित्तीय सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी, ‘Tribal Policies and Programmes in India: Regional Reflections in the Context of Globalization’ के निष्कर्षों के आधार पर प्रकाशित होनेवाले 4 पुस्तकों में से यह पहली पुस्तक है. इस पुस्तक का विमोचन 9 अगस्त, 2020 को आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा ‘विश्व स्वदेशी दिवस‘ के अवसर पर किया जाएगा. शेष तीन पुस्तकों के प्रकाशन से संबंधित काम चल रहा है.

पुस्तक के बारे में

भारत में उद्योगधंधों के बढ़ने के साथ ही आदिवासियों को अपने घरों और आजिविका को गैर-आदिवासियों की विकास परियोजनाओं, बांधों, खानों आदि के लिए छोड़ना पड़ा. भारतीय आदिवासी क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं, पर इन्हें गैर-आदिवासी विकास के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. बारीकी से देखने से यह पता चलता है कि सरकार, बाजार और समाज भी आदिवासियों के अहित का कारण बने हैं.

इस पुस्तक के अधिकतर अध्याय किसी विशेष क्षेत्र या जनजाति से संबद्ध विषय पर किए गए सूक्ष्म अध्ययन पर आधारित हैं. हालांकि, इस शृंखला के पहले भाग के सभी अध्याय राष्ट्रीय स्तर पर बननेवाली नीतियों के संदर्भ में हैं. आदिवासियों के संदर्भ में विशिष्ट क्षेत्र या जनजाति के जिन मुद्दों की चर्चा इस भाग में की गई है, वह हैं – संस्कृति, विकास, वैश्वीकरण, स्वास्थ्य, पहचान की राजनीति, भाषा, नीति, गरीबी, हिंसा और स्त्रियाँ. इन मुद्दों पर विमर्श करते हुए यह बात सामने आती है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार-बाज़ार-मीडिया की इनमें महती भूमिका है, जिनकी चर्चा भारतीय संदर्भ में अवश्य होनी चाहिए. यह पुस्तक भारतीय आदिवासी बहिष्करण के कारणों की व्यापक समीक्षा करती है.

डॉ. वी. श्रीनिवास राव

 संपादक के बारे में

डॉ. वी. श्रीनिवास राव, सह-प्रोफेसर, हैदराबाद विश्वविद्यालय, सामाजिक विज्ञान संकाय के क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष हैं. इससे पहले वे सामाजिक बहिष्कार और समावेशी नीति अध्ययन केंद्र, हैदराबाद विश्वविद्यालय में 2009 से 2017 तक और मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी में 2007 से 2009 तक कार्यरत रहे. शिक्षा और शोध के क्षेत्र में आने से पहले वे केयर-इंडिया में 2002 से 2007 तक सेवारत थे, जहाँ उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और उत्तरी आंध्र प्रदेश के आदिवासी इलाकों में जीवनमान आदि विषयों पर ‘Sustainable Tribal Empowerment Project’ नामक परियोजना में काम किया. यूरोपियन यूनियन ने इस परियोजना को वित्तपोषित किया था. आपने ‘Adivasi Rights and Exclusion in India’ नामक पुस्तक (2019) का संपादन किया है, जिसे रूटलेज, लंडन ने प्रकाशित किया. आपने अन्य दो पुस्तकों का लेखन भी किया है, जिनमें से एक का प्रकाशन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने किया है. डॉ. राव ने अपने शोध-निष्कर्ष पीयर समीक्षित जर्नल्स – इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली, जर्नल ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन और जर्नल ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन – में प्रकाशित किए हैं.