हैदराबाद विश्वविद्यालय की एक शोध टीम ने राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लि. के सहयोग से उत्तरी आंध्र प्रदेश की पूर्व दिशा में बार-बार सक्रिय होने वाली एक खंडित रेखा (फ्रैक्चर लाइन – जिसे भूगर्भ विज्ञान में फॉल्ट लाइन भी कहा जाता है) का पता लगाया है, जिसकी अत्यधिक सक्रियता विशाखापट्टनम तटवर्ती क्षेत्र के निकट है. साथ ही, शोधकर्ताओं का मानना है कि भविष्य में यह खंडित रेखा फिर से सक्रिय हो सकती है, जिससे उत्तरी आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम के आसपास के क्षेत्र में भूकंप और सुनामी जैसे बड़े तटीय खतरों की संभावना है.
पिछले 20 करोड़ वर्षों में गोंडवाना और लौरेशिया नामक दो महाखंड कई महाद्वीपीय खंडों में बँट गए और पृथ्वी की सतह पर वर्तमान स्थिति में स्थित हो गए. इस प्रक्रिया में दो प्रकार की महाद्वीपीय सीमाएँ पाई जाने लगीं: निष्क्रिय और सक्रिय सीमाएँ. निष्क्रिय सीमाएँ विवर्तनिक रूप से क्रियाशील नहीं होतीं और अधिकतर अटलांटिक और हिंद महासागर की परिधि में पाई जाती हैं. इसी तरह, सक्रिय सीमाएँ प्रशांत महासागर के किनारों से जुड़ी होती हैं. 13 करोड़ वर्ष पहले भारत का पूर्वी हिस्सा पूर्वी अंटार्कटिका से अलग हो गया था और वर्तमान में अपने पश्चिमी भाग से बंगाल की खाड़ी से सटा हुआ यह हिस्सा स्थिर निष्क्रिय महाद्वीपीय सीमा माना जाता है. इस पारंपारिक मान्यता के विपरीत, भौगोलिक रूप से उत्तर आंध्र प्रदेश को घेरने वाले भारत की पूर्वी सीमा के हिस्से में भूकंप और सुनामी के कारक पार्श्व संचलन देखे गए हैं.
भारत और एशिया के बीच करीब 4 करोड़ वर्ष पहले हुए महाद्वीपीय टकराव के कारण विश्व की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला – हिमालय – की रचना हुई, जिसके कारण इस क्षेत्र के साथ-साथ विश्व की जलवायु की स्थिति में भी बहुत परिवर्तन हुआ. हिमालयीन पर्वत शृंखला और एशियाई जलवायु की परस्पर क्रिया के कारण हिमालयीन और तिब्बती क्षेत्रों में कटाव की प्रक्रिया आरंभ हुई. इसके परिणामस्वरूप उपमहाद्वीप की नदी प्रणालियों से बंगाल की खाड़ी में प्रचुर मात्रा में भूमि-जनित सामग्री आती है, जो तटवर्ती बंगाल तक आते-आते 22 कि.मी. मोटी हो जाती है. इस गाद के अत्यधिक भार का स्वाभाविक प्रभाव भारत के पूर्वी हिस्से में विजातीय चट्टानों के जुड़ाव के रूप में देखा जा सकता है.
हैदराबाद विश्वविद्यालय से प्रो. के.एस. कृष्णा और डॉ. एम. इस्माईल; राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान से डॉ. के. श्रीनिवास और तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लि. से डॉ. डी. साहा के शोध-दल ने भूकंपीय परावर्तीय डेटा का विश्लेषण किया, जिससे बंगाल की खाड़ी में गाद के भार और अग्निज चट्टानों के बीच के कारण-प्रभाव संबंध को समझा जा सके. इस दल ने तटीय सीमा से लगभग 100 कि.मी. की दूरी पर तटवर्ती उत्तरी आंध्र प्रदेश के क्षेत्र में 300 कि.मी. लंबी खंडित रेखा का पता लगाया. इसका भौगोलिक अर्थ यह है कि यह खंडित रेखा दक्षिण में प्राणहिता-गोदावरी ग्राबेन और उत्तर में नागवल्ली-वंशधारा कटाव क्षेत्र के बीच बस्तर क्रेटन के दक्षिणी हिस्से के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित है.
गाद सीमा से बोअर-छेद परिणामों का सह-संबंध जोड़कर शोधकर्ताओं ने खंडित रेखा के सीधे प्रक्षेपण/विस्थापन का अनुमान लगाया और भूवैज्ञानिक इतिहास में बार-बार घटित गतिविधियों की समयावधि को निर्धारित किया. अध्ययन से पता चला है कि अग्निज भू-तल और 1.6 करोड़ पुराने गाद क्षेत्र के बीच स्थित भारत के पूर्वी हिस्से की खंडित रेखा का कुल विस्थापन ~900 मीटर है. 68 लाख वर्ष पूर्व यह खंडित रेखा पुन: सक्रिय हुई, जो 3 लाख वर्ष पूर्व तक निरंतर सक्रिय बनी रही और अंतत: निष्क्रिय हो गई.
इस अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि कृष्णा-गोदावरी तटवर्ती बेसिन में खंडित रेखा की गतिविधियों की स्थिति परिवर्तनीय है. 1.6 करोड़ वर्ष पहले इनका आरंभ हुआ, 68 लाख वर्ष पूर्व पुन:प्रारंभ हुआ जो कि लगातार 3 लाख वर्ष पहले तक जारी रहा. 1.6 करोड़ और 68 लाख वर्ष पूर्व की अवधि में तटवर्ती उत्तरी आंध्र प्रदेश में 300 कि.मी. दूरी तक हुए अत्यधिक सीधे विस्थापनों (106 और 342 मी.) के कारण भूकंपन और सुनामी जैसी स्थितियाँ बनी होंगी. अभी यह खंडित रेखा निष्क्रिय है और इस बात की संभावना है कि इस रेखा के दोनों तरफ के अंतर का दबाव अंतिम स्तर तक पहुँचने पर यह फिर से सक्रिय बन जाए और भविष्य में भौगोलिक खतरे का कारण बने. भविष्य की इस गतिविधि के समय के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना यद्यपि आसान नहीं है, तथापि भूवैज्ञानिक दृष्टि से यह अवश्य शीघ्र ही पुन: घटित होगी.
अलगाव के बाद की अवधि की विवर्तनिक रूप से शांत निष्क्रिय महाद्वीपीय सीमा की धारणा भारत के पूर्वी समुद्री क्षेत्र, विशेषकर उत्तरी आंध्र प्रदेश के क्षेत्र के लिए अब वैध नहीं है. अत: इस विशिष्ट अध्ययन द्वारा किए गए शोध से निकले एक प्रश्न पर विचार होना चाहिए: क्या ‘निष्क्रिय सीमाएँ’ वास्तव में निष्क्रिय होती हैं. इससे इस पुरानी धारणा पर भी सवाल उठता है कि गाद के भार से उपजे दबाव के झुकाव में कमी ही भूकंपनों के न होने का कारण है.
इस अध्ययन की रिपोर्ट हाल ही में भारतीय विज्ञान अकादमी द्वारा प्रकाशित अर्थ सिस्टम साइंस जर्नल में छपी है.
https://link.springer.com/article/10.1007/s12040-020-01436-7