प्राणी जैविकी विभाग, जीव विज्ञान संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय में DST INSPIRE संकाय सदस्य डॉ. पल्लबी मित्रा ने कहा, “विज्ञान में कई विफलताएँ शामिल हैं, इनसे गुजरना ही वास्तविक चुनौती है.” डॉ. मित्रा को युवा महिला वैज्ञानिक के रूप में जैव चिकित्सा अनुसंधान और चालीस से भी कम आयु में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए श्रीमती कुसुम शर्मा पुरस्कार के लिए चुना गया है. इन पुरस्कारों का आयोजन भारतीय जैव चिकित्सा विज्ञान अकादमी (IABS) द्वारा किया जाता है. पुरस्कार का चयन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों और चिकित्सकों द्वारा विस्तृत जाँच के बाद चयन समिति की सिफारिश के आधार पर किया गया.

डॉ. पल्लबी मित्रा

डॉ. मित्रा की विज्ञान में रुचि ने उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक और स्नातकोत्तर करने के लिए और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आणविक परजीवी विज्ञान में पीएच.डी. करने के लिए प्रेरित किया. अनुसंधान के लिए उनका अंतःविषयक दृष्टिकोण मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम फैल्सिपेरम और बाद में टोक्सोप्लाज़मा गोंडी ने शोधकर्ताओं और पत्रिकाओं का समान रूप से ध्यान आकर्षित किया. डॉ. मित्रा ने प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रपत्र प्रकाशित किए, जैसे BBA (2021) और the Annual Review of Microbiology (2017) और उनके काम के लिए कई बार उन्हे उद्धरित किया गया.

डॉ. मित्रा ने प्रतिष्ठित संस्थानों में विभिन्न पदों पर कार्य किया और कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए, जिनमें SERB – Early career research awards, DST INSPIRE Faculty award और BIOCARE पुरस्कार शामिल हैं.

विज्ञान में महिलाओं की समस्याओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने समझाया कि विज्ञान में सार्थक योगदान देने के लिए कार्य-जीवन संतुलन खोजना आवश्यक है, विशेषतः जब महिलाओं से घर और कार्यालय में दोहरी भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है. दोनों मोर्चों पर लचीलापन होने से दूरगामी परिणाम मिलते हैं. “ऐसा नहीं है कि पुरुषों पर दबाव नहीं होता है, परंतु महिलाओं की समस्याएँ विशिष्ट होती हैं.” उन्होंने समझाया.