हैदराबाद विश्वविद्‌यालय के सामाजिक बहिष्कार और समावेशी नीति अध्ययन केन्द्र (CSSEIP) ने अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच (AIDMAM) तथा नॅशनल कॅम्पेन फॉर दलित ह्‌यूमन राइट्‌स (NCDHR) के सहयोग से
‘Caste and Patriarchy: Narratives of Dalit women’ विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया.

जातिभेद के सामाजिक यथार्थ को लैंगिक दुराचार की पृष्ठ्भूमि में रखकर देखने की आवश्यकता को इस कार्यशाला में रेखांकित किया गया. है.वि.वि. के कुलपति महोदय प्रो. ई. हरिबाबू ने उद्‌घाटन सत्र की अध्यक्षता की. दुराचार के शिकार व्यक्तियों ने इस मंच से अपने अनुभव साझा किए.

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इस अवसर पर बोलते हुए लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद्‌ डॉ. एम.एम. विनोदिनी ने कहा के दलित महिलाओं पर हुए अत्याचारों को उच्च वर्ण की महिलाओं पर हुए अत्याचारों की अपेक्षा अलग दृष्टि से देखा जाता है. उन्होंने कहा के दलित महिलाओं की हिंसा और भेदभाव संबंधी समस्याएँ औरों के मुकाबले अधिक गंभीर हैं.

उच्च न्यायालय के अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. ए. रघु कुमार ने शिक्षाविदों से संविधान के मूल्यों को बनाए रखने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि न्यायालय भी जातिवाद से अछूते नहीं हैं. अधिक सामाजिक दबाव होने के बावजूद निचले न्यायालय बेहतर काम कर रहे हैं. संविधान हमारे लिए एक सामाजिक करार है, जिसका पालन करना आवश्यक है.

इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता गड्डम झांसी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि दलितों को आसानी निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि वे अक्सर विरोध नहीं करते. उन्होंने कहा कि मीडिया भी दलित महिलाओं पर किए गए अत्याचारों की रिपोर्टिंग में भेदभाव करता है. उन्होंने छात्रों से कहा कि वे कॅम्पस में किसी भी असामनता को स्वीकार न करें और उसके खिलाफ आवाज उठाएँ.

मानवाधिकार फोरम के कार्तिक नव्यन ने भारत में महिलाओं की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘सभी महिलाएँ समान नहीं होतीं.” उन्होंने समाज द्‌वारा दलितों को दिए जा दोयम दर्जे पर प्रकाश डाला.

सत्र के अवसान के बाद कई शिक्षकों और छात्रों ने जाति और लिंग आधारित हिंसा संबंधी महत्वपूर्ण मुद्‌दे उठाए.