मानविकी व्याख्यान शृंखला के क्रम में दि. 10 मार्च, 2014 को मानविकी संकाय के सभागार में प्रो. रमा नाथ शर्मा, संस्कृत के सम्माननीय प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई, यू.एस.ए. ने ‘नियम प्रणाली के रूप में पाणिनि का अष्टाध्यायी’ विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया. अष्टाध्यायी की व्यवस्था को समझाते हुए उन्होंने नियमों की दो तरह की संरचनाओं की बात की – एक, जो अध्याय, पद और सूत्र पर आधारित है और दूसरी जो प्रकरणों पर आधारित है. प्रो. शर्मा ने बताया कि किस तरह तकनीकी पदों को परिभाषित करनेवाले संज्ञा सूत्र किसी पाठ का ‘मस्तिष्क’ होते हैं. उनका कहना था कि पारंपरिक शिक्षा पद्धतियाँ मुख्यत: ‘लक्षणा’ पर केंद्रित होती हैं, अर्थात् व्याकरण के सूत्र, उनके अर्थ की व्याख्या और उनका प्रयोग. किंतु तीन मुनियों – पाणिनि, कात्यायन एवं पतंजलि – के विचार में व्याकरण वर्णनात्मक होने के कारण लक्ष्य (भाषा) से लक्षणा (व्याकरण) की ओर बढ़ना उचित होता है. यह दृष्टिकोण अष्टाध्यायी का मर्म समझने में सहायक सिद्ध होता है और कंप्यूटर में उसके निरुपण को तार्किक और संगत बनाता है. इसके उपरांत व्याख्यान से संबंधित विषयों और अर्थ विचलन जैसे अन्य विषयों पर प्रश्नोत्तरों का सत्र चला.
अष्टाध्यायी पर कार्यशाला
दि. 10–11 मार्च, 2014 को ‘अष्टाध्यायी’ पर प्रो. रमा नाथ शर्मा ने दो दिवसीय कार्यशाला का संचालन किया. उन्होंने सार वाक्यात्मक संरचना, अनिवार्य डोमेन, नियंत्रक डोमेन आदि; संदर्भ सूचकांक; पुनरावृत्ति और विविध डोमेन और सूत्रों को चलानेवाले ‘ट्रिगर्स’ की संकल्पनाओं को विशद किया. इस कार्यशाला में अष्टाध्यायी का मर्म समझाने के साथ ही उसके कारण शब्द रूपों की व्युत्पत्ति की प्रक्रिया में कैसे नियंत्रण अग्रेषित होता है यह विश्लेषित किया गया. इसके अलावा पदैकवाक्यता, वाक्यैकवाक्यता, यथोद्देश्यपक्ष तथा कार्यकालपक्ष, कौमुदी एवं अष्टाध्यायी में अंतर आदि विषयों पर सारगर्भित चर्चा की गई. अपनी तरह की पहली इस कार्यशाला का संचालन प्रो. शर्मा ने किया. प्रतिभागियों ने यह विचार रखा कि इस विषय पर कार्याशाला के स्थान पर एक/दो महीने का कोई कोर्स चलाया जाना चाहिए.