हरित क्रांति ने आज से पचास वर्ष पहले खाद्य सामग्री में भारत को आत्मनिर्भर बनाया. आज बढ़ती आबादी की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए फसल पौधों की उपज को बढ़ाने के लिए एक और हरित क्रांति की ज़रूरत है. जीनोम अनुक्रमण जैसी तकनीक को अपनाने के कारण टमाटर, आलू और चावल जैसी फसलों में अधिक उत्पादन, बेहतर पोषण और रोग/कीट प्रतिरोध में सुधार के नए रास्ते खुले. जीनोम टेक्नोलॉजी के फलस्वरूप अब आनुवंशिक विविधताओं की प्रक्रिया और तेज़ हो रही है.
पहले फसल की पैदावार में सुधार के लिए लाभकारी आनुवंशिक विविधता का चयन किया जाता था. इसी के फलस्वरूप साठ के दशक में गेहूँ और चावल की फसलों में वांछनीय रूपों का चयन कर शास्त्रीय कृषि पद्धति से पैदावार में वृद्धि की गई थी. अब जीनोमिक्स की सहायता से चयनित जीन में बदलाव लाकर फसल की उपज को बढ़ाकर बेहतर गुणों के साथ पाया जा सकता है.
हाल ही में हैदराबाद विश्वविद्यालय भी जीनोमिक्स तकनीक TILLING (Targeting Induced Local Lesions IN Genomes) का प्रयोग कर टमाटर जीनोमिक्स संसाधन भंडार में श्री वृद्धि कर रहा है. यह तकनीक फसलों में आनुवंशिक विविधताओं की पहचान कर फसल की उपज में सुधार करने के लिए अपार क्षमताएँ उत्पन्न करती है. TILLING तकनीक कई देशों में मकई, टमाटर, गेहूँ, आलू और चावल जैसी फसलों के अधिक उत्पादन के लिए प्रयोग की जा रही है.
अन्य फसलों में TILLING तकनीक के व्यापक प्रसार के लिए हैदराबाद विश्वविद्यालय और जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने 24 अप्रैल 2015 तक विश्वविद्यालय परिसर में TILLING (Targeting Induced Local Lesions IN Genomes) पर 12 दिनों की राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन कर रहा है. इस कार्यशाला का उद्घाटन हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ई. हरिबाबू ने किया. इस अवसर पर प्रतिष्ठित प्लांट बायोटेक्नोलॉजिस्ट एवं योगी वेमना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. ए.आर. रेड्डी ने आण्विक प्रजनन के साथ जीनोमिक्स के संयोजन से कैसे अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक फसलों में सुधार लाया जाता है, उदाहरण सहित बताया.
कार्यशाला के संयोजक प्रो. आर.पी शर्मा ने TILLING की सहायता से किस प्रकार टमाटर की गुणवत्ता तथा इसकी उपरी सतह में सुधार लाया गया है, इसका विवरण सोदाहरण दिया. तदुपरांत उन्होंने कार्यशाला में उपस्थित वैज्ञानिकों से अन्य फसलों में भी इस तकनीक का प्रयोग करने का आग्रह किया. आगे उन्होंने बताया कि आगामी दो वर्षों में TILLING की सहायता से शोधकर्ता एक नई सक्षम गुणों से युक्त फसल विकसित कर सकते हैं. हैदराबाद विश्वविद्यालय में टमाटर पर अपनाई गई इस तकनीक को अब भारत में गेहूँ और चावल में भी अपनाया जा रहा है. डीबीटी, नई दिल्ली की निदेशिका डॉ. मीनाक्षी मुंशी ने बताया कि डीबीटी पादप जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है.