ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, इंग्लैंड, घाना, भारत, नीदरलैंड, नाइजीरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित कई विश्वविद्यालय और संगठन टी.आर.ए.सी.ई. ट्रांसबॉर्डर परियोजना में साझेदार हैं. उनकी यह साझेदारी मानविकी पीएच.डी स्नातकों की बेरोजगारी की समस्या को वैश्विक अवसर के रूप में बदल देगी. परियोजना व्यक्तिगत करियर की उन्नति, अंतरराष्ट्रीय संबंध-निर्माण और संस्थागत एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए एक साधन के रूप में पीएच.डी. करियर के कथात्मक ज्ञान को प्रवाहित करेगी. कनाडा के सामाजिक विज्ञान और मानविकी अनुसंधान परिषद और अन्य भागीदारों द्वारा वित्त पोषित तीन वर्षीय टी.आर.ए.सी.ई. ट्रांसबॉर्डर परियोजना नौ अलग-अलग देशों के मानविकी में पीएच.डी. स्नातकों को शैक्षणिक तथा कई शिक्षणेतर क्षेत्रों में अपने और अन्य समाज के कल्याण एवं भलाई के लिए अधिक प्रभावी ढंग से योगदान देने में सक्षम बनाएगी. परियोजना पीएच.डी. स्नातकों और पीएच.डी. छात्रों के परामर्श और नेटवर्किंग से संबंधित एक अंतरराष्ट्रीय समुदाय का निर्माण करेगी और मानविकी डॉक्टरेट शिक्षा में बदलाव लाने के लिए सिफारिशें करने के लिए उस समुदाय के साथ काम करेगी. स्नातक छात्र द्वारा शोधकर्ताओं को सुनाई जाने वाली अपने पीएच.डी कार्यक्रमों की और स्नातक होने के बाद के जीवन संबंधी कहानियाँ ही इस नए समुदाय और हमारे द्वारा किए जाने वाले शोध की प्रेरणा होंगी.
साझेदार • अलबर्टा विश्वविद्यालय (एडमॉन्टन, कनाडा) • ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया) • यूसीएलए (लॉस एंजिल्स, यूएसए) • कैनेडियन एसोसिएशन फॉर ग्रेजुएट स्टडीज (ओटावा, कनाडा) • CRIEVAT (विले डे क्यूबेक, कनाडा) • ग्रेजुएट स्कूलों की परिषद (वाशिंगटन, डीसी, यूएसए) • डेल्टा स्टेट यूनिवर्सिटी (अब्राका, नाइजीरिया) • डरहम विश्वविद्यालय (डरहम, यूके) • घाना विश्वविद्यालय (लेगॉन, अकरा, घाना) • हैदराबाद विश्वविद्यालय (हैदराबाद, तेलंगाना, भारत) • अंतर्राष्ट्रीय और तुलनात्मक शिक्षा संस्थान, बीजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी (बीजिंग, चीन) • मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, एमहर्स्ट (एमहर्स्ट, यूएसए) • मैकगिल विश्वविद्यालय (मॉन्ट्रियल, कनाडा) • ओबाफेमी अवोलोवो विश्वविद्यालय (इले इफे, नाइजीरिया) • क्वीन विश्वविद्यालय (किंग्स्टन, कनाडा) • क्वींसलैंड विश्वविद्यालय (ब्रिस्बेन, ऑस्ट्रेलिया) • यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय (यूट्रेक्ट, नीदरलैंड)
टी.आर.ए.सी.ई. ट्रांसबॉर्डर निम्नलिखित कारणों से हैदराबाद विश्वविद्यालय के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होगी: यह हमें मूल्यवान अंतरराष्ट्रीय सहयोग विकसित करने में सक्षम बनाएगी; अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पीएच.डी. करियर के बारे में नए सबूतों के आलोक में हमारी संस्था को प्रमुख चिंता के मुद्दों को संबोधित करने में सक्षम बनाएगी; पीएच.डी. शोधरत छात्रों को मूल्यवान, प्रयोग करने योग्य करियर कथाएँ प्रदान करेगी, जो उन्हें स्नातक से पारिश्रमिक और पूर्ण करियर के रूप में आसानी से परिवर्तित करने में मदद करेगी; पीएच.डी. निर्देशकों और नेटवर्किंग के एक अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सलाह पीएच.डी शोधरत छात्रों को प्रदान करेगी; हमारे डॉक्टरेट कार्यक्रमों में अत्यधिक सक्षम युवाओं को आकर्षित करने में हमारी सहायता करेगी, विशेष रूप से ऐसे युवा जो आमतौर पर पीएच.डी. करने पर विचार नहीं करते हैं; हमारे पीएच.डी. कार्यक्रमों की रूपरेखा को विकसित करने में हमारी मदद करेगी, विशेष रूप से शिक्षणेतर के क्षेत्रों में; हमें पीएच.डी. कार्यक्रमों का पुनर्विचार और पुनर्निर्माण करने में सक्षम बनाएगी; आदि.
टी.आर.ए.सी.ई. अंतरराष्ट्रीय छात्रों और है.वि.वि. के छात्रों के बीच शैक्षणिक आदान-प्रदान को पर्याप्त बढ़ावा देगा और हमें सक्षम बनाएगा. हैदराबाद विश्वविद्यालय के मानविकी, समाज विज्ञान और एस.एन. संकाय में शोधरत पीएच.डी छात्रों के करियर को ध्यान में रखते हुए एक तुलनात्मक वैश्विक परियोजना में भाग लेने का यह एक अद्वितीय अवसर है. यह अंतरराष्ट्रीय छात्रों की गतिशीलता को समझने की पहली परियोजना है. यह हमारे छात्रों के लिए डेटा एकत्र करने और अपने पूर्वानुमानित शैक्षणिक भविष्य की सपना को साकार बनाने का एक अवसर है. एक प्रतिष्ठित संस्थान (IoE) के रूप में, यह प्रतिष्ठित संस्थान छात्र प्रोत्साहन योजना के अधीन पीएच.डी. कार्यक्रमों का डेटा एकत्र करने का एक बेजोड़ तरीका हो सकता है. इस साझेदारी से संयुक्त प्रकाशनों के साथ-साथ अन्य सहयोगी संस्थानों के साथ शैक्षणिक संबंध स्थापित करने की अवसर मिलने की संभावना है. प्रत्येक भागीदार विश्वविद्यालय में परियोजना के संगठनात्मक और अनुसंधान कार्य में भाग लेने के लिए सहमति बनी है. हमारी ओर से हमें अनुसंधान सहायता और प्रतिलेखन कार्य के लिए हमारे प्रतिष्ठित संस्थान से 600000 रुपये का अनुदान मिला है, जिससे हमारे पीएच.डी. विद्वानों को नियुक्त किया जाएगा. प्रो. अपर्णा रायप्रोल इस परियोजना की समन्वयक हैं, जिसे अंतर्राष्ट्रीय मामलों के निदेशक कार्यालय, प्रो. शिव कुमार के माध्यम से प्राप्त किया गया था.