आज मैं जहाँ तक (बीजिंग, चीन) पहूँचा हूँ उसमें हैदराबाद विश्वविद्यालय का बहुत बड़ा योगदान है। स्पष्ट है कि यहाँ से मेरे जीवन का एक नया मोड़ शुरू हुआ। वह समय था जब मैं हैदराबाद विश्वविद्यालय में 2003 को स्नातकोत्तर अध्ययन हेतु आया था। विशुध्द देहाती था और आज भी हूँ। किसी चीज़ के बारे में उतनी जानकारी नहीं थी जितनी अन्य लोगों को थी। हैदराबाद का नाम सुना था पर उसी हैदराबाद विश्वविद्यालय में अपने जीवन के लगभग दस साल बिताउंगा यह सोचा न था। जीवन के दस साल बहुत मायने रखते हैं पर वहां रहते हुए ये दस साल कैसे गुजर गये पता नहीं चला।
हर्ष इस बात का है कि मुझे इस विश्वविद्यालय ने बहुत कुछ सिखाया। अपने स्नातकोत्तर (एम.ए.) अध्ययन के दौरान मुझे हिन्दी के ही नहीं बल्कि अन्य विषयों के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विद्वानों को बहुत करीब से देखने को और सुनने का मौका मिला। नई जगह और नये लोगों को देखने और मिलने का बचपन से शौक होने के कारण मैंने कुछ दोस्त बनाये और हैदराबाद पर हल्ला बोल दिया। मेरे परास्नातक (एम.ए.) के दौरान हिन्दी विभाग के आचार्यों से बहुत कुछ सीखने को मिला। वे केवल हमें किताब की बातें या ज्ञान नहीं पढ़ाते बल्कि वे हमें देश-विदेश के ज्ञान की सैर कराते थे। मुझे याद है कि हमारे अध्यापक गण कहते थे “हम आपको किताब में क्या कहा गया है यह तो पढायेंगे ही पर अहम बात तो यह है कि जो किताब में नहीं है वह भी आपको पढायेंगे|” यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। इसी के बदौलत मुझे आज दुनिया के बारे मे कमोबेश जानकारी है। हैदराबाद विश्वविद्यालय शिक्षा के रुप में मेरे लिए गेटवे था। पहली बार घर से दूर आया था और विश्वविद्यालय में आरंभिक दिनों में मुझे विश्वविद्यालय से भाग जाने का मन करता था, बहुत अजीब लगता था। उसी उदासी के कारण मैंने अपने मित्र को यहाँ से वापस आने से संबंधित पत्र भी लिखा था, पर सौभाग्यवश वह पत्र मेरे मित्र को नहीं मिला। कारण यह था कि मैंने वह पत्र डाक के एक ऐसे डिब्बे में डाला था जिसका डाकबाबू प्रयोग नहीं करते थे। खैर अच्छा ही रहा नहीं तो पता नहीं आज मैं कहाँ होता।
खैर स्नातकोत्तर की पढ़ाई खत्म हुई। उसके बाद बी. एड. करने की इच्छा थी ताकि मास्टर की नौकरी के लिए तो काबिल बन सकूं पर हो नहीं सका। मैं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की पूर्वपरीक्षा में उतीर्ण नहीं हो पाया। ‘फिर वही दिल लाया’ जैसे स्थिति हुई। अन्तत: दोबारा हैदराबाद विश्वविद्यालय में एम. फिल में दाखिला लिया। नई चीजों के बारे में जानने समझने का शौक होने के कारण अन्वेषण की जिज्ञासा मन में थी ताकि कुछ नया सोचे और समझे। एम. फिल के दौरान प्रो. सुवास कुमार जी के शोध निर्देशन में कार्य करने का अवसर मिला। सर ने बहुत ही अच्छे ढंग से मुझे शोध का मार्गदर्शन किया था जिसके बदौलत मैंने ‘कनुप्रिया’ और ‘बाँस का टुकड़ा’ इन दो मिथकीय काव्यसंग्रहों पर अपना शोध कार्य संपन्न किया और इसमें मुझे स्वर्ण पदक से नवाज़ा गया।
डॉक्टर बाबू बनने का भूत चढ़ा था उसके कारण ही फिर पीएचडी में दाखिला लिया। पीएचडी में शोध कार्य करने का सौभाग्य प्रो. गरिमा श्रीवास्तव जी के निर्देशन में मिला। प्रो. गरिमा मॅडम जी ने मुझे एक तरह से हिन्दी में पढ़ाई-लिखाई करने का नया रास्ता बताया और तब से मुझे लगा कि हां मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ छोड़ा है उसे सीखने और पाने के लिए अधिक से अधिक पढ़ाई की जरूरत हैं। वे पढ़ाई–लिखाई के मामले में काफी सख़्त थे जो कार्य उन्होंने कहा है उसको अगर सही ढंग से और सही समय पर नहीं किया तो बहुत डाँटते थे और उसी डाँट के कारण मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ सीखा और बहुत पाया। उनसे केवल शोध और पढ़ाई-लिखाई की बातों का ही ज्ञान नहीं मिला तो अच्छे संस्कार मिले जो मैंने आज तक संजोये हुए हैं। अपने शोध के दौरान ही हैदराबाद विश्वविद्यालय की सहायता से देश-विदेश की यात्रा की। विदेश जाने का मोह था (अमूमन भारतीयों का होता है) पर विदेश जायें तो कैसे ? यह एक बड़ी चुनौती मेरे सामने थी और उसका हल हैदराबाद विश्वविद्यालय ने पूरा किया। शोध के दौरान 2009 में तुर्कीस्तान (Turkey) के एरसीएस विश्वविद्यालय, कायसेरी (Erciyes University Kayseri, Turkey) में ‘भारत में राष्ट्रीय भाषा नीति’ इस विषय पर अपना शोध-आलेख प्रस्तुत करने का सुअवसर हैदराबाद विश्वविद्यालय की आर्थिक सहायता से मिला। मैं यह बताते हुए गर्व का अनुभव करता हूँ कि हिन्दी के छात्र भी विदेश में जाकर अपनी भाषा और संस्कृति के बारे में बात कर सकते हैं। यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि हिन्दी का मतलब केवल सो कॉल्ड लोग भारत तक ही सीमित मानते हैं। पर ऐसा नहीं है हिन्दी भाषा, साहित्य और भारतीय संस्कृति के लिए अनंत अवसर संपूर्ण विश्व में हैं। जब मैं विदेश जाकर आया तब से मेरा विश्वास बढ़ गया और ऐसा महसूस होने लगा कि मैं अब हिन्दी के माध्यम से कहीं पर भी जा सकता हूँ। पीएचडी के दौरान ही अनेक हिन्दी जगत और अन्य विद्वानों को करीब से देखने, सुनने और समझने का अवसर मिला और यह सब मुझे हैदराबाद विश्वविद्यालय की बदौलत ही मिला इसमें दो राय नहीं है। मैं यह विश्वास के साथ कहता हूँ कि हैदराबाद विश्वविद्यालय एक ऐसा वर्ल्ड हब है जहाँ आपको अनेक भाषा, संस्कृति और सूचना प्रौद्योगिकी की जानकरी एक स्थान से मिल सकती हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय में ऐसी खासियत है कि वहाँ जो भी जाता है उसे वह विश्वविद्यालय अपना बना लेता है। शायद ऐसा कोई छात्र, अध्यापक या कर्मचारी हो जो हैदराबाद विश्वविद्यालय को भूल सकता हो। मेरा पीएचडी का विषय प्रारंभिक उपन्यासों पर होने के कारण मुझे विश्वविद्यालय की सहायता से कोलकाता, दिल्ली और वाराणसी जैसे महानगरों में जाने का अवसर मिला। अपने शोध के दौरान शोध के अलावा भी अन्य विषयों की कमोबेश जानकारी भी हैदराबाद विश्वविद्यालय के माध्यम से ही मिली। हैदराबाद विश्वविद्यालय में पाने के लिए बहुत कुछ था खोने के लिए कुछ नहीं था। खैर मुझे अतन्त: फ़रवरी 2012 को पीएचडी उपाधि प्राप्त हुई।
पीएचडी के बाद भी विश्वविद्यालय परियोजना के तहत राजस्थान की माड़ बोली पर कार्य करने का अवसर डॉ. भीम सिंह जी के निर्देशन में मिला। अन्तत: सबसे बडा दु:ख था विश्वविद्यालय से विदा होने का पर एक दिन तो विदा होना ही है चाहे विश्वविद्यालय से हो या इस जीवन से। खैर अगस्त 2013 को हैदराबाद विश्वविद्यालय से विदा हुआ। आज जब अपने बीते हुए पलों के बारे में सोचता हूँ तो अनेक स्मृतियाँ दिमाग में कौंध जाती हैं। जब कभी मुझे हैदराबाद जाना हुआ तो मैं अवश्य हैदराबाद विश्वविद्यालय गया हूँ। हैदराबाद विश्वविद्यालय मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है और उसका मोह मेरे जीवन में हमेशा के लिए रहेगा। इसी कारण मैं जब भी हैदराबाद जाता हूँ तो मेरा मन विश्वविद्यालय की ओर खींचा जाता है और वहाँ जाकर मैं गौरवान्वित महसूस करता हूँ।
आज मैं अपने देश, परिवार और विश्वविद्यालय से काफी दूर हूँ। मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि हिन्दी के सहारे मैं आज बीजिंग विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन में हिन्दी भाषा के शिक्षक के रुप में अस्थायी तौर पर कार्यरत हूँ। मुझे अपने देश, परिवार, अपने गुरुजनों और हैदराबाद विश्वविद्यालय पर गर्व है।
मैं जन संपर्क अधिकारी श्री. आशीष जैकब थॉमस जी का आभारी हूँ उन्होंने मुझे हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रति अपने विचार साझा करने का अवसर प्रदान किया।
बहुत-बहुत धन्यवाद !
संपर्क –
साईनाथ विट्ठल चपले
अतिथि अध्यापक
बीजिंग विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय
बीजिंग – 100089, चीन
मोबाईल – +86- 13552162132
ई- मेल – saichaple@gmail.com