सिंगापुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षुता के मेरे अनुभव
पी. हर्षवर्धन रेड्डी
15 मई, 2013 की सुबह सिंगापुर के नीले आसमान ने मेरा स्वागत किया । रहस्यमयी इमारतों और सुन्दर परिदृश्यों ने मेरा हृदय जीत लिया । मैं कुछ पलों के लिए अतीत में झाँकने लगा । 22 मार्च, 2013 को जब मुझे दुनिया के श्रेष्ट विश्वविद्यालयों में माने जाने वाले सिंगापुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित होनेवाले ग्रीष्माकालीन प्रशिक्षुता कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मेरा चयन हुआ तब मेरी खुशी का ठिकाना न रहा ।
चांगी हवाई अड्डे पर उतरते ही मेरा उत्साह काफ़ी बढ़ गया । मैंने अपनी घड़ी को भारतीय मानक समय से दो घंटे आगे कर लिया था ।
सिंगापुर दौरे के पहले ही दिन मैं उस प्रोफ़ेसर से मिला जिन्होंने मुझे यह सुअवर प्रदान किया था । उन्होंने मुझसे पहला प्रश्न किया था कि — सिंगापुर कैसा है? मेरा उत्तर था, सिंगापुर प्रेरणादायक है ।
अगले दिन उन्होंने मुझे शोध पत्रों की एक गठरी देते हुए कहा कि – अगले सप्ताह इस विषय पर आपको एक प्रस्तुति देनी है । मैंने इस विषय-पर विचार-विमर्श करने के बाद 21 मई, 2013 को अपनी प्रस्तुति पेश की जो मेरे संपूर्ण इंटर्नशिप को साकार करने में सफल रही । मुझे ग्राफीन के गौररेखीय ऑप्टिकल गुणों ……. पर कार्य करने के लिए एक परियोजना सौंपी गई थी, जो मेरे प्रशिक्षुता को सफल बनाने में अत्यंत लाभ प्रद हुई । जौसे-जौसे दिन बीतते गए मेरी परियोजना वौसे-वौसे पूर्ण होती गई । यह परियोजना मूल रूप से शोध समस्या से निपटने के लिए अपनाए जानेवाले सभी सौद्धांतिक, प्रयोगात्मक एवं आभिगणना संबंधी फौलओं का परीक्षण ही थी । जिससे मुझे व्यावहारिक तरीके से सौद्धांतिक अवधारणाओं को समझने में मदद मिली । पर्यप्रेक्षक के समक्ष दी गई प्रस्तुतियाँ और किए गए विचार-विमर्शों ने मेरी समझ में सुधार लाने में लाभप्रद सिद्ध हुर्इं ।
मेरे पर्यवेक्षक प्रोफेसर वी.जी. मेरे जीवन से जुडे प्रभावशाली शिक्षकों में से एक हैं । वे अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं, उन्होंने एक सच्चे मित्र की तरह हमेशा मेरी शंकाओं की निवृत्ति ही नहीं की बल्की हर संदर्भ में वे मेरी अपनी राय भी पूछा करते थे । NUS की तहज़ीब और वहाँ के छात्रों के खुले एवं नए विचारों ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया ।
NUS की विवधता से जुड़ी संस्कृति, वहाँ की सफ़ाई और वहाँ का वातावरण तथा वहाँ के मददगार लोगों ने मेरे मन में श्रद्धा के सुमन खिला दिए ।
ज्यादातर शोधार्थियों में यह गलतफामी फैल गई है कि प्रयोगशालाओं में घंटों बौठकर आंकड़ों को एकत्र करना ही शोध है । पर मैंने अपने प्रशिक्षुता में यह समझ गया हूँ कि – यह कितना गलत है ।
इत्तेफ़ाक की बात यह है कि पिछले वर्ष इसी समय अर्थात् 1 से 6 जुलाई के दौरान मुझे जर्मनी में गठित नोबेल पुरस्कार विजेताओं की बौठक में शामिल होने का सौभाग्य मिला था । जिसमें एलन जे, हीगर और युआन टी.ली. ने व्याख्यान श्रृंखला पेश की थी ।
मेरे लिए सिंगापुर की संस्कृति, भोजन, भाषा और लोग सब कुछ नया था । प्रयोगशालाओं के अतिरिक्त हम सप्ताहांंत में सिंगापुर घूमने निकलते थे । वहाँ हमने लिटिल इंडिया, चाइना टाउन, मरैना बे सैंड्स और सेटोसा द्वीप जौसी जगाएँ घूमी । वहाँ के तौर-तरीके, तहज़ीब याता-यात और कानून को मानने वाले शिष्ट नागरिकों को देखकर मुझे एक आदर्श देश की झाँकी-सा प्रतीत हो रहा था ।
इस सफल इंटर्नशिप के दौरान एशिया में उभरते तीन देशों के यानी चीनी, जापनी और भारतीय शोधार्थियों के साथ मिलकर काम करने के इस अद्भुत अनुभव से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला । नये मित्र, प्रेरक शोध पर्यवेक्षक और एक उम्दा अनुसंधान अनुभव, लोगों के सोंचने के तौर-तरीके यह सब मेरे लिए प्रेरणारुाोत बनकर रह गए । उनकी स्मृूतियों को मैंने अपने केमेरे में बाँधे ले आया पर मैं अब उन सब को भूल नहीं पा रहा हूँ ।