अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के अवसर पर हैदराबाद विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में आं.प्र. उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री. एल. नरसिम्हा रेड्डी ने गुंजाला गोंडी लिपि फ़ॉन्ट का विमोचन किया. इस कार्यक्रम में हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामकृष्ण रामस्वामी,प्रो. जय धीर तिरुमाला राव, श्री एस. श्रीधर मूर्ति, प्रो. वी. कृष्णा हिन्दी विभागाध्यक्ष है.वि., श्रीमती मनोजा और गुंजाला गोंडी लिपि पर कार्यरत समन्वयक तथा अन्य अधिकारी गण और विश्वविद्यालय के छात्र एवं कर्मचारियों ने भाग लिया.
इस अवसर पर श्री नरसिम्हा रेड्डी ने बात करते हुए कहा कि – कोटनाक जंगु, श्री श्रीधर मूर्ति और श्री विनायक राव के अनुसंधानों के फलस्वरूप आज गोंडी लिपि फ़ॉन्ट का विमोचन किया गया. आगे उन्होंने बताया कि –आज गोंडी जैसी अनेक लुप्तप्राय स्थिति में स्थित अनेक भाषाओँ पर अनुसंधान किए जा रहें हैं और यह गर्व की बात है कि, आज इस भाषा की लिपि का फ़ॉन्ट बनाया गया. आगे उन्होंने कहा कि- इस गोंडी जाति के लोगों की तथा उनकी संस्कृति की रक्षा तथा विकास के लिए हमें और सरकार को निरंतर कार्य करना चाहिए.
इस अवसर पर हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामकृष्ण रामस्वामी ने फ़ॉन्ट विकासित करने वाली टीम को बधाई दी साथ में तेलुगू में गुंजाला गोंडी लिपि तथा संस्कृति पर लिखी गई पुस्तक का विमोचन किया.
इस संदर्भ में गोंडी लिपि फ़ॉन्ट के निर्माता श्री एस श्रीधर मूर्ति ने इस फ़ॉन्ट का मुख्य विशेषताओं के साथ एक संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण दिया.
इस अवसर पर हैदराबाद विश्वविद्यालय दलित एवं आदिवासी अध्ययन तथा अनुवाद (सीडीएएसटी) केंद्र के विजिटिंग प्रो. जया धीर तिरुमाल राव ने रिपोर्ट पढ़ी और गुंजाला गांव की पुरातन गोंडी लिपि की खोज का महत्व समझाया. तदुपरांत श्रीमती मनोजा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि- भाषा हमारी पहचान है और हमें अपने आचार-विचारों के साथ-साथ भाषा को भी आनेवाली पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुँचाने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए.
हैदराबाद विश्वविद्यालय दलित एवं आदिवासी अध्ययन तथा अनुवाद (सीडीएएसटी) केंद्र के समन्वयक प्रो. वी. कृष्णा ने स्वागत भाषण दिया तथा डॉ. भीम सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
द्रविड़ शाखा से उपजी गोंडी या गोंड नाम से जानी जाने वाली यह जनजाति के लोग मध्य भारत के मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र (विदर्भ), छत्तीसगढ़, उत्तरी आंध्र प्रदेश (तेलंगाना) और पश्चिमी ओडिशा (माझी या गण समुदाय) के राज्यों में फैले हुए हैं. चार लाख से अधिक आबादी से युक्त यह जाति मध्य भारत की सबसे बड़ी जनजाति मानी जाती है. यह जाति आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल आदि क्षेत्रों में एक नामित अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है.
गोंड या राज गोंड एक ही जनजाति है. वास्तव में राज गोंड नाम व्यापक रूप से 1950 के दशक में इस्तेमाल किया गया था पर गोंड राजाओं के शासनकाल में राजनीतिक कारणों से यह नाम लगभग अप्रचलित-सा हो गया है.
गोंडी भाषा तेलुगू और अन्य द्रविड़ भाषाओं के करीब लगती है पर भारत के कुछ क्षेत्रों में हिन्दी के साथ-साथ आर्य भाषा में भी बोली जाती है पर इस जाति के आधे से अधिक लोग आज भी गोंडी भाषा में ही बोलते हैं.