‘शिक्षा का अधिकार’ अधिनियम के क्रियान्वयन में आनेवाली समस्याओँ पर दि 25 फरवरी, 2014 से राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान (एसआईईएमएटी), सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए), यूनिसेफ तथा सेव दि चिल्ड्रेन संस्थानों के सहयोग से हैदराबाद विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग ने दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया.
इस सम्मेलन में आंध्र प्रदेश शिक्षा विभाग के अधिकारी, सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि, राज्य व केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षक तथा विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े विद्वानों ने भाग लिया. सत्र का उद्घाटन आंध्र प्रदेश प्राथमिक शिक्षा एवं सर्व शिक्षा अभियान की प्रमुख सचिव श्रीमती पूनम माला कोंडय्या ने किया. हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामकृष्ण रामस्वामी ने प्रथम सत्र की अध्यक्षता की. मुख्य अतिथि के रूप में आंध्र प्रदेश राज्य राजीव विद्या मिशन परियोजना की निदेशिका श्रीमती. वी. उषा रानी, आईएएस ने भाग लिया.
है.वि.वि. के सामाजिक विज्ञान संकाय की अध्यक्ष प्रो. आलोका पराशर सेन ने स्वागत भाषण दिया.
है.वि.वि., नृविज्ञान विभाग, यूजीसी सैप के सह समन्वयक प्रो. पी वेंकट राव ने इस संदर्भ को संबोधित करते हुए मुख्य भाषण दिया. इस उद्घाटन सत्र में डॉ. एस. सुरेश बाबू, निदेशक (SIEMAT), हैदराबाद, डा. रेणु सिंह, कंट्री निदेशिका, यंग लाइव्स, नई दिल्ली और आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक सेव दि चिल्ड्रेन संस्थानों के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक डॉ. पी. अंजय्या आदि ने भाग लिया.
इस अवसर पर डॉ. बी.आर. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय हैदराबाद के पूर्व कुलपति प्रो. आर.वी.आर. चंद्रशेखर राव ने अपने बीज व्याखान में कहा कि अनिवार्य शिक्षा की अवधारणा 1950 से पूर्व ही राज्य नीति निर्देशक सिद्धांतों में की गई थी पर यह 2009 में अधिनियम के रूप में पारित किया गया. अब हमारा ध्यान इस मौलिक अधिकार के कार्यान्वयन पर होना चाहिए.
इस संदर्भ में श्रीमती पूनम माला कोंडय्या ने बात करते हुए कहा कि – आज कल हमारे देश की पाठशालाओं में छात्रों का नामांकन तो पड़े पैमाने पर हो रहा है पर पारिवारिक तथा घरेलू काम-काज के कारण अधिकांश बच्चे स्कूल छोड़कर घरों में ही रह रहें हैं. यह संख्या अनुसूचित जनजातियों में और अधिक है. अंत में उन्होंने अपनी आकांक्षा अभिव्यक्त करते हुए कहा कि – शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन लाकर नवीन पाठ्यक्रमों तथा नवीनतम पाठ्यप्रणालियों को अपनाकर सीखने की प्रक्रिया को सरल व सुगम बनाना चाहिए.
कार्यक्रम के अंत में है.वि.वि., नृविज्ञान विभाग के प्रो. बी.वी. शर्मा ने बताया कि इस सम्मेलन में प्रस्तुत विषय से संबंधित विभिन्न मुद्दों और विषयों पर लगभग सत्तर से भी अधिक पेपर प्रस्तुत किए जाएँगें.