हैदराबाद विश्वविद्यालय के पूर्व-छात्र एसोसिएशन ने 11 जुलाई, 2020 को हैदराबाद विश्वविद्यालय के पूर्व-छात्र सैयद अकबरुद्दीन के साथ एक संवाद-सत्र आयोजित किया. इस सत्र में विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय प्रो. अप्पा राव पोदिले; चिकित्सा विज्ञान संकाय के अध्यक्ष, है.वि.वि. प्रो. पी. प्रकाश बाबू और पूर्व-छात्र एसोसिएशन के महासचिव शामिल हुए. संकायों के शिक्षकों और छात्रों ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया. सैयद अकबरुद्दीन, 1985 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी हैं, जिन्होंने जनवरी 2016 से अप्रैल 2020 तक यूनायटेड नेशन्स, न्यू यॉर्क में भारत के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में काम किया है. भारत और विदेश में विविध पदों पर काम करने के बाद उन्हें विएन्ना के इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी में पदस्थापित किया गया था. वे 2011 को भारत लौटे.
अकबरुद्दीन वर्ष 2004 से 2005 तक मंत्रालय में विदेश सचिव के कार्यालय में निदेशक के रूप में कार्यरत थे. वे जनवरी 2012 से अप्रैल 2015 तक भारत के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता थे और आपने भारत सरकार, विदेश मंत्रालय के बाह्य प्रचार और लोक कूटनीति प्रभाग के संयुक्त सचिव के रूप में भी कार्य किया है.
अकबरुद्दीन जी ने उस समय की यादों को ताज़ा किया जब वे विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के छात्र हुआ करते थे. उन्होंने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को सीखने और समझने की मेरी ललक को हैदराबाद विश्वविद्यालय में ही प्रोत्साहन मिला. मैं अक्सर राष्ट्रीय मुद्दों के अध्ययन को महत्व देता था, तब मेरे प्रोफेसर ने मुझे बताया कि यदि कोई अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बारे में कुछ अधिक सीखे तो इसका यह मतलब कतई नहीं होता कि वह अपनी जड़ों से कट गया है. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की समझ विकसित करने से आपको अपनी जड़ों के बारे में अधिक स्पष्ट वैश्विक दृष्टिकोण मिलता है.”
अकबरुद्दीन जी से चर्चा करते हुए प्रोफेसर विनोद पावराला, संचार विभाग ने याद किया कि वे स्वयं उनके पिता के छात्र रह चुके हैं और उनसे पूछा कि प्रशिक्षित लोक सेवक के विदेशी राजदूत बनने में और इस पद पर किसी राजनीतिक नियुक्ति में क्या फर्क है. अकबरुद्दीन जी ने इसका जवाब देते हुए कहा, “यदि भारतीय विदेश सेवा के दायरे से बाहर भी यदि कोई प्रतिभा हो, तो हमें उसके प्रयोग से कतराना नहीं चाहिए, क्योंकि भारत की विविधता बहुआयामी है जिसे शायद कोई सीमित दायरा न्याय न दे सके. आज हमारे पास जो प्रतिभा उपलब्ध है, वह निश्चित ही विविधताओं से भरी हुई है और बहुत सक्षम है.”
श्री. अकबरुद्दीन ने संयुक्त राष्ट्र में अपने अनुभव के बारे में भी बताया, “जो लोग संयुक्त राष्ट्र में काम कर चुके हैं, वे जानते हैं कि इस जगह पर हर देश का अपना अलग चरित्र दिखाई देता है. जैसे चीन और भारत अपने अलग दृष्टिकोण और अंदाज में नज़र आते हैं. चीन अक्सर शांत रहता है और सिर्फ अपनी बात करता है, जबकि भारत सदैव सबकी बात करता है.”
डॉ. प्रमोद नायर, अंग्रेजी विभाग, है.वि.वि. द्वारा भारत की विदेश नीति की वर्तमान स्थिति पर सवाल पूछे जाने पर श्री. अकबरुद्दीन जी ने जवाब दिया, “विदेश नीति को कभी भी हल्के में नहीं लिया जा सकता. यह कोई निजी संस्था नहीं बल्कि सरकार का साझा प्रयास है. सदैव गतिमान विदेश नीति पर काम करने के लिए हमें सरकार को अधिक समय और आज़ादी देनी चाहिए. हालांकि, एक देश के रूप में हममें हमेशा ही कुछ बेहतर करने आकांक्षा होनी चाहिए.”
सत्र के समापन पर अकबरुद्दीन जी ने युवाओं को सलाह दी, “हमें अपने मूल्यों पर हमेशा कायम रहना चाहिए, क्योंकि ये मूल्य किसी भी स्थिति में टूटते नहीं हैं. मुश्किल परिस्थिति में भी आपका आंतरिक व्यक्तित्व सदैव जीतता है.”