तेलंगाना राज्य के नलगोंडा ज़िले में स्थित रामुला बंडा नामक गाँव में प्रकृति की गोद में मेरा बचपन बीता. बचपन से ही मैंने अपने आस-पास की प्राकृतिक स्थितियों पर गौर किया है. प्रकृति के कारण ही मैंने अनुसंधान को अपना करियर बनाने का निर्णय किया. मेरा मानना है कि प्रकृति के पास अनुसंधान की किसी भी समस्या का समाधान मौजूद होता है, किंतु हम उस पर ध्यान नहीं देते. मैं प्रकृति को अपना पहला गुरु मानता हूँ, जबकि मेरे माता-पिता मेरे लिए देवतुल्य हैं जिन्होंने मुझे जीवन का अर्थ सिखाया. वैसे तो, स्कूल में कई शिक्षकों के मार्गदर्शन में मेरी पढ़ाई हुई, परंतु विश्वविद्‌यालय में आकर विज्ञान की बारिकीयाँ सीखकर ही सही मायने में मेरे वैज्ञानिक करियर की शुरुआत हुई.
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मेरी शिक्षा का आरंभ हमारे गाँव के सरकारी प्राइमरी स्कूल में हुआ. हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए मुझे नलगोंडा जाना पड़ा. अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए मैंने तेलुगु माध्यम से दसवीं की परीक्षा 93% अंकों से उत्तीर्ण की. वैज्ञानिक बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त को प्राप्त करने के लिए मैंने बहुत सोचने के बाद शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेज़ी को अपनाया. विश्व के सभी वैज्ञानिकों ने अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में इसी भाषा को चुना है.

पढ़ाई के साथ-साथ मैंने अन्य गतिविधियों में – निबंध लेखन प्रतियोगिता, स्कूल और जिला स्तर की प्रश्नमंच प्रतियोगिता – भी नियमित रूप से भाग लिया और कई पुरस्कार भी जीते. विश्वविद्‌यालय में आने के बाद मुझे इसका बहुत लाभ हुआ, विशेष रूप से विज्ञान की प्रतियोगिताएँ जीतने के लिए और अनुसंधान इंटर्नशिप और पीएच.डी. आवेदनों के लिए राइट-अप लिखने के लिए.

अंग्रेज़ी और तेलुगु के शब्दकोश और तेलुगु माध्यम की शैक्षिक पुस्तकों का सहारा लेकर मैंने अपनी इंटर (एम.पी.सी.) की पढ़ाई अंग्रेज़ी माध्यम से पूरी की. यह बहुत आसान तो नहीं था, पर वैज्ञानिक बनने की ललक ने मुझसे यह कठिन परिश्रम करवाया और मैंने अपनी भाषा की समस्या को सुलझाया.
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जब अपनी पेशेवर जिंदगी का फैसला करना था, तो मैंने हैदराबाद विश्वविद्‌यालय में अनुसंधान को चुना. मेरे मित्र इंजीनियरिंग कर रहे थे, पर मैंने अपने भविष्य के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान के रास्ते को चुना.

आईआईटी-जेईई रैंक के आधार पर मुझे वर्ष 2009 में DST – INSPIRE छात्रवृत्ति के अंतर्गत हैदराबाद विश्वविद्‌यालय के पाँच वर्षीय इंटिग्रेटेड एम.एससी. पाठ्‌यक्रम में प्रवेश प्राप्त हुआ. मेरे लिए इससे बेहतर भला क्या हो सकता था! ये पाँच वर्ष मेरे जीवन के सबसे अच्छे वर्ष रहे. है.वि.वि. के इंटिग्रेटेड कार्यक्रमों की अंत:विषयक पद्‌धति से मुझे बहुत फायदा हुआ. सभी विषयों को जान लेने के बाद किसी एक विषय को अपने अनुसंधान के लिए चुनने की सुविधा इससे मिलती है. छात्रों को संबंधित विषयों की जानकारी देने के बाद धीरे-धीरे उन्हें विशिष्ट विषय का गहन प्रशिक्षण दिया जाता है. नए छात्रों का आरंभ में थोड़ा सा सहम जाना स्वाभाविक सी बात है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. लेकिन कुछ समय बाद सभी चीजें स्पष्ट होती गईं और मैं लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा. ये पाँच वर्ष मेरे समूचे व्यक्तित्व का आधार हैं.

हालाँकि यह सफर बहुत आसान नहीं रहा. पूरी कक्षा में तेलुगु माध्यम से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करनेवाला मैं इकलौता छात्र था. पर मैंने अपनी भाषा संबंधी समस्या पर जीत हासिल करने की ठान ली थी, ताकि मैं एक अच्छा वैज्ञानिक बनने का अपना सपना पूरा कर सकूँ. इस दौरान मुझे अपने दोस्तों, शिक्षकों और सीआईएस की आईटी लैब से जो सहायता मिली, उसका कोई सानी नहीं.

ग्रामीण भागों से आने वाले अन्य छात्रों की तरह मुझे भी गाँव की संस्कृति और शहर के एकदम भिन्न माहौल के साथ ताल-मेल बिठाने में पहले थोड़ी मुश्किल हुई. पर इस परिसर में बिताए हर दिन के साथ मैंने यहाँ की विविधता के साथ एकरूप होना सीख ही लिया.

है.वि.वि. के वर्षों के दौरान मुझे 62वें लिंडो नोबेल लॉरिएट्‌स बैठक, जर्मनी 2012 में DST-DFG-Lindau फैलोशिप द्‌वारा भाग लेने का दुर्लभ मौका मिला. 80 देशों के 592 युवा अनुसंधाताओं (जिनमें से 18 भारत से थे) में से आयोजकों ने राइट-अप के आधार पर 6 का चयन वीडियो डायरिस्ट के रूप में किया. इन 6 भाग्यशाली अनुसंधाताओं में से मैं भी एक था. मुझे सबसे युवा वीडियो डायरिस्ट होने का गौरव भी प्राप्त हुआ. मेरा विषय था – विकासशील देशों में अनुसंधान और विकास की उपलब्धियाँ. बाद में ईज़ी जर्नलिंग पत्रिका ने मुझे 10 श्रेष्ठ सृजनात्मक जर्नल कीपर्स की सूची में नौंवे स्थान पर रखा. नेचर ब्लॉग ने मेरे लेख ‘Science Mentoring: A Lindau Attendee’s Experience’ को प्रकाशित किया.
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इसके अलावा मैंने 2009 में भा.वि.सं, बेंगलुरू में JNCASR & KVPY द्‌वारा आयोजित विज्ञान ज्योति शिविर, आईआईआईटी, इलाहाबाद की दूसरी साइंस काँक्लेव, वर्ष 2010 में HBCSE-TIFR, मुंबई द्‌वारा आयोजित एशियन साइंस कैंप, NCRA-TIFR & IUCAA पुणे द्‌वारा आयोजित रेडियो एस्ट्रोनॉमी विंटर स्कूल और 2012 में KEK (जापान), CERN (यूरोप), आईआईटी-मुंबई, TIFR, VECC, IUAC and SAMEER द्‌वारा संयुक्त रूप से आयोजित स्कूल फॉर एक्सेलरेटर साइंस एंड टेक्नोलॉजी में भाग लिया.
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गर्मी और सर्दी की छुट्‌टियों के दौरान ‘लाइट मटर इंटरेक्शन अत डिफरेंट टाइम स्केल्स (नानो, पकिो एंड फेम्टो सेकंड रेगिमेस)’ विषय पर मैंने प्रो. डी. नारायण राव के मार्गदर्शन में लेज़र लैब में विविध परियोजनाओं पर काम किया है.

मुझे मई-जुलाई, 2013 में प्रो. जी वेई के मार्गदर्शन में नॅशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के विज्ञान संकाय के फिज़िक्स एंड ग्राफीन रीसर्च सेंटर की फेम्टोसेकंड लेज़र स्पेक्ट्रोस्कोपी लैब में काम करने का मौका मिला.
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विश्वविद्‌यालय में पढ़ने के दौरान मैंने कई अन्य गतिविधियों में और समाज-कार्य भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जिससे मुझे जीवन की चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत मिली. मेरा यह मानना है कि विज्ञान का अंतिम लक्ष्य समाज की सेवा करना है.
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वैसे तो यहाँ के सभी शिक्षकों से मुझे बहुत प्रेरणा मिली है, किंतु मेरे जीवन में प्रो. डी. नारायण राव, प्रो. के.पी.एन. मूर्ति, प्रो. वी. कण्णन और प्रो. आर. रामस्वामी बहुत महत्व है.
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है.वि.वि. को ‘मिनी इंडिया’ कहना बिलकुल सही है. कैंपस के जीवन की तो बात ही कुछ और है! यहाँ का माहौल एकदम अद्‌भुत है. इस विश्वविद्‌यालय ने मुझे बहुत कुछ दिया है. यह मेरी शिक्षा और प्रेरणा का स्रोत है. मेरी हर सफलता है.वि.वि. के नाम!

Harshavardhan can be reached via his website or email: harshavardhanreddypinninty@gmail.com