स्पिक मैके हैदराबाद विश्वविद्यालय उप-अध्याय ने विरासत 2017 के अंतर्गत 6 से 11 मार्च, 2017 के दौरान विश्वविद्यालय के परिसर में एक 5-दिवसीय कथक कार्यशाला का आयोजन किया. इस कार्यशाला का आयोजन प्रख्यात कथक नृत्यांगना श्रीमती सुष्मिता बेनर्जी ने किया. तबले पर उनका साथ श्री. संजय मुखर्जी ने और हार्मोनियम पर श्री. पार्थो चक्रवर्ती ने दिया.

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कथक प्राचीन भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दस मुख्य शैलियों में से एक माना जाता है. यह नृत्य रूप पौराणिक कथाओं को संगीत, नृत्य, गीत जैसी ज्वलंत अभिव्यक्तियों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने वाली उत्तर भारत की घुमक्कड़ जातियों से उत्पन्न हुआ था. कथक को तीन अलग-अलग स्कूलों या ‘घरानों’ में वर्गीकृत किया गया है. ये हैं – लखनऊ घराना, बनारस घराना और जयपुर घराना. हालांकि यह कार्यशाला लखनऊ घराने की ओर से आयोजित की गई.

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जब उत्तर भारत की महक दक्षिण भारत की मिट्टी को ‘घुंघरुओं’ के द्वारा पवित्र लयबद्ध ध्वनियों के माध्यम से छू रही हो, तो कोई अपने आप को कैसे रोक सकता है. कार्यशाला अपनी लय के साथ हर दिन 6 से 8 बजे तक चली. मुख्य बात यह है कि, प्रतिभागियों के उत्साह के कारण यह कार्यशाला और एक दिन के लिए बढ़ाकर 11 मार्च, 2017 तक चलाई गई.

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कार्यशाला नौसिखिये और पहले से नृत्य में प्रशिक्षित लोगों के लिए दो रूपों में चलाई गई. इस कार्यशाला में नृत्य रूप के आरंभिक मुद्राओं से लेकर नृत्य की हर भंगिमा में पूर्णता आने तक अभ्यास करवाया गया. इस एक सप्ताह की अवधि में प्रतिभागियों को पद लालित्य में ‘तीन ताल’, अभिव्यक्ति या ‘अभिनय’, दो ‘बोल’ या तालबद्ध मुद्राएँ, प्रदर्शन या ‘थाट’ शैली, ‘गुरु वंदना’, ‘कवितांगी’ या ‘ठुमरी’ और गीत गायन आदि का बहुत शिष्टता के साथ अभ्यास करवाया गया. इस कार्यशाला द्वारा हर प्रतिभागी न केवल मीठी यादों को अपने साथ ले जा रहा है, बल्कि परम संतोष को प्राप्त करने के अनेक मार्गों की तलाश में आगे निकल रहा है.