1 जुलाई 2021 को आईसीएएसएम पेरिस, फ्रांस द्वारा ‘Surrogacy and Facets of Death’ विषय पर आयोजित एक वेबिनार में, हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्त्री अध्ययन संकाय में सेवारत सह-प्रोफेसर डॉ. शीला सूर्यनारायणन ने सरोगेट महिलाओं और मृत्यु पर अपने क्षेत्रकार्य से उद्धरण देते हुए वक्तव्य दिया. इस विषय पर बात करते हुए, सरोगेसी के दौरान और बाद में भारत में सरोगेट माताओं के अनुभव पर आधारित कई पहलुओं पर आपने प्रकाश डाला. ‘मौत’ शब्द के साथ सरोगेट माँ की पहला सामना तभी हो जाता है जब उन्हें डॉक्टरों द्वारा स्पष्ट शब्दों में बताया जाता है कि सरोगेसी के दौरान उनकी मृत्यु भी हो सकती है और ऐसी स्थिति में क्लिनिक की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. उस समय उनके दिमाग में बस एक ही बात होती है – इसके लिए मिलनेवाला धन और अपने परिवार के लिए अपने जीवन का बलिदान करने की इच्छा. हाल ही में वर्ष 2019 में, एक 42 वर्षीय सरोगेट माँ, एक विधवा महिला की कई सह-रुग्णताओं के कारण गर्भावस्था के 17 वें सप्ताह में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में मृत्यु हो गई. सरोगेसी की व्यावसायिक प्रकृति, उसकी उम्र और रुग्णता आदि सरोगेट (विनियमन) विधेयक 2016 का स्पष्ट उल्लंघन था.

 

जिन 45 सरोगेट माताओं का साक्षात्कार लिया गया, उनमें से कई ने या तो बिना रिकॉर्ड की हुई मौतों या निकट-मृत्यु स्थितियों को देखा या अनुभव किया था. अनावश्यक अतिरिक्त भ्रूण स्थानांतरण के बाद इन-यूटरो रिडक्टिव गर्भपात ने सरोगेट माताओं के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा कर दी हैं. लगभग सभी सरोगेट माताओं में सरोगेसी के बाद रुग्णता और एचआईवी या कैंसर जैसी कुछ गंभीर बीमारियाँ पाई गईं. रक्तस्राव के कई मामलों में गर्भाशय को निकालना पड़ा. ‘मृत्यु का जोखिम’ एक चिंता का विषय है, अत: महिलाएँ सरोगेसी के लिए किसी अन्य महिला की सिफारिश करने के लिए अपनी अनिच्छा जाहिर करती हैं.

ऐसी ही एक माँ कहती है, “यदि मैं किसी को ले जाऊँ और वह मर जाए, तो उसके बच्चे अनाथ हो जाएँगे. मैं उस अपराध बोध के साथ कैसे जी सकती हूँ? जीवन भर यह मुझे सताएगा. अगर मैं मर जाऊँ तो ठीक है, मेरे पीछे मेरे बच्चों को पैसे मिलेंगे. मैं वह जोखिम अपने लिए ले सकती हूँ. लेकिन मैं अपनी जिम्मेदारी पर किसी अन्य व्यक्ति को जोखिम में नहीं डाल सकती.”

सरोगेट माताओं में से अधिकांश (62%) ने कहा कि वे सरोगेसी के बाद या तो बार-बार या बहुत बार उदासी, घबराहट या अवसाद महसूस करती हैं. यह एक सरोगेट माँ की मृत्यु या निकट-मृत्यु की स्थिति, स्वयं मृत्यु के निकट होने का अनुभव, सरोगेट बच्चों संबंधी जानकारी पाने की इच्छा, अपने बच्चों की परेशानी और गरीबी की गहरी गर्त में लौटने का डर था. सरोगेट माताओं के बीच उच्च मृत्यु दर को देखते हुए, भारत को अपनी सरोगेसी नीति की अधिक सख्ती से समीक्षा करनी चाहिए.

सरोगेसी सरोगेट माताओं के स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में डालती है. लेकिन इस पहलू को व्यवस्थित रूप से नजरअंदाज किया जाता है. इस वेबिनार ने इस छिपी हुई वास्तविकता के और सबूत पेश किए. एना-लुआना स्टोइसिया-डेरम, सामूहिक अनुरोध व्यक्ति (सीओआरपी) के सदस्य और आईसीएएसएम के सह-अध्यक्ष ने सरोगेसी को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के रूप में उजागर किया. यूक्रेन में एक कट्टरपंथी नारीवादी और मानवाधिकार कार्यकर्ता, लोकतंत्र विकास केंद्र (यूक्रेन) की सदस्य, मरिया दिमित्रिएवा ने लॉकडाउन के दौरान यूक्रेन में सरोगेट माताओं से जन्मे असहाय बच्चों के अपने अध्ययन से अपने निष्कर्ष साझा किए.