2 जुलाई, 2015 को हैदराबाद विश्वविद्यालय में फ्रांस के माननीय राजदूत श्री. फ्रासुआ रिशिए ने जलवायु परिवर्तन पर एक विशिष्ट व्याख्यान दिया : जिसमें उन्होंने वैश्विक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किस प्रकार कार्य किया जाए इस विषय पर चर्चा की.

छात्रों, संकाय सदस्यों और दर्शकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि समस्त विश्व को बदलते जलवायु परिवर्तन को समझ कर विकास की ओर अग्रसर होने का यह उचित समय है. आगे उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तनों के दुष्प्रभावों की जाँच कर इससे स्थायी रूप से निपटने के लिए बहु हितधारक भागीदारी और योगदान की आवश्यकता है. आगे उन्होंने भारत की विशेषकर नगालैंड में सूखती नदियों, दक्षिण गुजरात में रेगिस्तान का फैलाव और गुजरात में ही समुद्र जल स्तर का बढ़ना जैसी अनेक घटनाओं का हवाला दिया.

जलवायु परिवर्तन के प्रबंधन के लिए सरकारों के अलावा वैज्ञानिकों, व्यावसायिक समुदायों, नागरिक समाज को और प्रत्येक व्यक्ति को महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है. आज कल नव विनिर्मित इकाइयाँ अपनी ऊर्जा की जरूरतों के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग कर रही हैं, जिससे स्वच्छ प्रौद्योगिकी इकाइयों की संख्या तो बढ़ रही है परंतु इनकी लागत भी बढ़ रही है. अनुसंधान और विकास में लगी संस्थाएँ इस लागत को कम करने की दिशा में निरंतर कार्यरत हैं. इसी दिशा में प्रत्येक नागरिक को भी अपनी जिम्मेदारियों को जानकर ऊर्जा का प्रयोग सहीं ढंग से करना चाहिए.

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फ्रांस के राजदूत ने पर्यावरण को बनाए रखने की दिशा में चल रहे विभिन्न कार्यों का ब्योरा देते हुए बताया कि फ्रांस वर्ष 2016 से प्लास्टिक बैगों के उत्पादन और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध करने की योजना बना रहा है. इसी तरह भारत की आईटीसी होटलें भी अपनी ऊर्जा और पानी का निर्माण प्रकृतिक तौर पर कर पर्यावरण पर शून्य प्रभाव करने की योजना में हैं. गुजरात पिछले 10 वर्षों में सौर ऊर्जा के माध्यम से 16-18% बिजली उत्पादन प्राप्त करने में सक्षम हो गया है.

फ्रांस के राजदूत ने आगे कहा कि – 1970 के दशक में फ्रांस ने ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग आरंभ किया, जिसके फलस्वरूप आज कुल ऊर्जा उत्पादन का 65% भाग इसी का है. इसके विपरीत भारत बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भर है. इसके अलावा भारत के पास दूसरा रास्ता भी नहीं है. आगे उन्होंने बताया कि उच्च विकास दर को हासिल करने के लिए कार्बन उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों के मामले में कम से कम निर्भर होकर हमें कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाले प्रौद्योगिकी संस्थानों के विकास के लिए प्रतिबद्धता से कार्य करना चाहिए. प्रौद्योगिकी के क्षेत्र को और सक्षम बनाने के लिए उनके लिए अत्यावश्यक ऊर्जा को सस्ता और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराएँ.

अपने व्याख्यान के समापन में उन्होंने बताया कि अपनी आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार करने के लिए फ्रांस और भारत मिलकर अनेक विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहें हैं. इस दिशा में महाराष्ट्र में 10,000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा बिजली संयंत्र की स्थापना करना, वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों पर अनुसंधान, शहरी जल प्रबंधन और वितरण, मौसम की निगरानी, उपग्रह प्रक्षेपण आदि शामिल हैं. अंत में उन्होंने बताया कि – समस्त विश्व के प्रत्येक नागरिक को बदलते जलवायु परिवर्तन को समझ कर उसे सक्षम, सुनिश्चित व सुरक्षित बनाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए.

हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी. शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित इस व्याख्यान में विदेशी भाषा अध्ययन केंद्र के प्रो. जे. प्रभाकर राव ने प्रतिष्ठित वक्ता का परिचय दिया और कार्यक्रम के अंत में प्रो. आर. शिव प्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्ताव रखा.