हैदराबाद विश्वविद्यालय सामाजिक बहिष्करण एवं समावेश नीति अध्ययन केंद्र (CSSEIP) की ओर से 5 मार्च, 2014 को कुलपति प्रो. रामकृष्ण रामस्वामी जी की अध्यक्षता में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रसिद्ध पुस्तक ‘Battleground Telangana : Chronicle of an Agitation’ के लेखक तथा टाइम्स ऑफ इंडिया (हैदराबाद संस्करण) के रेज़ीड़ेंट संपादक श्री. किंगशुक नाग ने ‘एक संघटित तेलंगाना की ओर’ नामक विषय पर एक व्याख्यान प्रस्तुत किया.
अपने व्याख्यान में श्री. नाग ने बताया कि आंध्र प्रदेश भाषिक आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य है. उस समय अधिकतर तेलुगु भाषी हैदराबाद राज्य के निजाम शासन में और मद्रास प्रेसिडेंसी क्षेत्र में रहते थे. इन दोनों क्षेत्रों को विलय कर आंध्र प्रदेश राज्य बनाया गया था. यह दोनों क्षेत्रों के लोग तेलुगु भाषी तो ज़रूर थे लेकिन वे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अलग थे.
आज़ादी के बाद भारत में प्रभावी शासन के लिए राज्यों को व्यवस्थित रूप से पुनर्वव्यवस्थित करने की आवश्यकता थी परंतु मौजूदा व्यवस्था इसके अनुकूल नहीं थी. देश के हिंदीतर भाषी क्षेत्रों के लिए भाषा तथा संस्कृति के आधार पर राज्यों का विभाजन किया गया था. इसी कारण मद्रास प्रेसिडेंसी क्षेत्र में तमिलनाडु राज्य और तेलुगु भाषी से युक्त आंध्र राज्य का कुछ हिस्सा भी इसमें समाहित था.
आगे श्री. नाग ने कहा कि भाषाई पहचान के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य तेलंगाना है. भारत के 29 वें राज्य के रूप में तेलंगाना का उद्भव हुआ. इसी प्रकार आने वाले कुछ वर्षों में हम नए राज्यों की और अधिक से अधिक माँग देखेंगे. जो नागरिकों के लिए सुशासन और कल्याण योग्य हो सकता है.
गणतंत्र के 60 साल बाद आज भारत गणराज्य एक नया रुख ले रहा है. जिसके फल स्वरूप क्षेत्रीय नेताओं के भागीदारी से जुड़ी राजनीती की एक नई धारा उभर कर आ रही है. इसी वजह से राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय नेताओं की भूमिका बढ़ रही है और अब वे उनके सशक्तीकरण और राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए नए राज्यों की चाह करने लगे हैं.
आगे श्री. नाग ने भारत में चुनावी व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा कि – भारत में आमतौर पर विजयी उम्मीदवार को 30% से अधिक वोट भी नहीं मिलते. इसका अर्थ यह है कि वे बाकी के 70% का प्रतिनिधित्व नहीं करते. इसका मतलब यह निकलता है कि – यह केवल एक अल्पसंख्यक जनादेश है. राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी सत्तारूढ़ पार्टी बहुमत का प्रतिनिधित्व नहीं करती है. आगे उन्होंने ने कहा कि – ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों के प्रतिनिधियों के चुनाव की प्रक्रिया इससे भिन्न और बेहतर है. हालांकि भारत में निरक्षरता के कारण हमें ऐसी योजनाओं को अपनाने के लिए और समय लग सकता है.
श्री. नाग ने चुनावी व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहा कि – लोक कल्याण के लिए चुनावी व्यवस्था में मूलभूत सुधार परमावश्यक है. अक्सर लोग शासन में भ्रष्टाचार होने पर अधिक बल देते हैं, परंतु लोकसभा में केवल 543 सीटें ही क्यों हैं? यह कोई नहीं पूछता. वास्तव में क्या यह संख्या पर्याप्त है? लोकसभा के सीटों की संख्या जनसंख्या के आधार पर निर्धारित की गई थी. पर जब आज आज़ादी इतनी बढ़ गई, तब भी इनकी संख्या में कोई परिवर्तन क्यों नहीं आ रहा? वास्तव में 1971 में ही लोकसभा के सीटों की संख्या को सुनिश्चित करने के लिए एक परिसीमन समिति गठित की गई थी. उस समिति ने 2001 तक लोकसभा सीटों की संख्या को स्थिर रखने के लिए स्वीकार कर लिया. आगे इसी स्थिति को 2001 से 2031 तक बढ़ा दिया गया है. पर यह स्थिति सुशासन में समस्या के नए आयाम पैदा कर रही है. आज जनसंख्या कई गुना बढ़ गई है, जिसके फलस्वरूप प्रतिनिधि और जनसंख्या का अनुपात काफी नीचे चला गया है. इसके अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्र के अनुसार निर्वाचन व्यय में वृद्धि भी की गई है. यह चुनावों में भाग लेने के लिए आगे आनेवाले ईमानदार लोगों को राजनीति से दूर कर सकती है.
तेलंगाना राज्य के पुनर्गठन पर बात करते हुए श्री. नाग ने कहा कि – वास्तव में आंध्रप्रदेश राज्य में अधिकतर निवेश हैदराबाद शहर को केन्द्र में रखकर किया गया था पर आज तेलंगाना के उद्भव के फलस्वरूप आंध्र प्रदेश में नए शहर उभर कर विकास की ओर आगे बढ़ सकेंगे. तेलंगाना शिक्षण संस्थानों तथा अन्य संस्थाओं के कारण और भी बेहतर स्थिति पर पहुँच जाएगा किंतु कृषि-सिंचाई और बिजली की आपूर्ति तेलंगाना में सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय बनी रह सकती है. आगे उन्होंने कहा कि – राजनैतिक सशक्तीकरण के हस्तांतरण के इस अवसर पर सामंती सत्ता के विरुद्ध दलित एवं कमजोर वर्गों को सत्ता में आगे आना चाहिए.
आगे श्री. नाग ने कहा कि – समाज में शांति और सौहार्द की भावना को बनाए रखने के लिए एक बहुसांस्कृतिक आयोग का गठन कर उसमें मुख्यमंत्रियों द्वारा नामित नागरिक समाज तथा विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहिए. अंत में उन्होंने नागरिकों से विनती की है कि – आगामी चुनाओं में अपनी ओर से केवल अच्छे प्रतिनिधियों को ही चुनें, जिससे एक सुनिश्चित सत्ता स्थापित होकर आम लोगों की आकांक्षाएँ पूरी हो सकें.