बौद्‌ध अध्ययन केन्द्र, हैदराबाद विश्वविद्यालय  ने  5 दिसंबर,  2013 को सर सी.वी. रामन सभागार में ऑक्सफर्ड विश्वविद्‌यालय के प्रसिद्‌ध बौद्‌ध विद्‌वान,  प्रो. रिचर्ड फ्रांसिस गोम्ब्रिच द्‌वारा ‘बुद्‌ध ने क्या सोचा?’ नामक  शीर्षक से एक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया था.

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अपने व्याख्यान में प्रो. गोम्ब्रिच ने बताया कि – बुद्‌ध अपने नैतिक मूल्यों से युक्त मधुरवाणी द्‌वारा तत्कालीन समाज में व्याप्त धार्मिक कुप्रथाओँ को मिटाकर एक नए समाज की स्थापना करना चाहते थे. आगे उन्होंने कहा कि – बुद्‌ध अपने इन विचारों को कर्म सिद्‌धांत के उदाहरण देकर अपने अनुयायियों को अति सूक्ष्मता के साथ समझाते थे.

आगे प्रो. गोम्ब्रिच ने कर्म के बारे में समझाया. कर्म हमें स्वेच्छा से अपने दायित्व निभाना सिखाता है. अपनी इच्छा से इसे अपनाना भी एक अलग प्रक्रिया है. हम जैसा बोते हैं, वैसा ही पाते हैं. किंतु केवल कर्म ही हमारे सुख-दुख का कारण नहीं होता. इस संदर्भ में उन्होंने Damien Keown की एक उक्ति को दोहराया : ‘एक कृति को बोएँगे तो एक आदत को पाएँगे, एक आदत को बोएँगे तो एक चरित्र को पाएँगे और एक चरित्र को बोएँगे तो अपने भाग्य को पाएँगे’.

प्रो. गोम्ब्रिच ने कहा कि बुद्‌ध ने मनुष्य के केन्द्र से ‘स्व’ को निकालकर ‘कर्म’ को स्थापित किया. इस प्रक्रिया का हमारे परिवेश से भी संबंध होता है. आधुनिक मनोविज्ञान कहता है कि हमारा हर काम दुनिया के साथ जुड़ने का एक प्रयास है और हमें प्रभावित करता है. धारणा और अनुभूति पर बुद्‌ध ने इतनी चर्चा नहीं की लेकिन उन्होंने कर्म के संदर्भ में एक अंतर्दृष्टि को विकसित किया था. अपने अनुभव के साथ उन्होंने हमारी दुनिया को पहचाना. प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्म के लिए स्वयं जिम्मेदार होता है और केवल अपने प्रयासों से ही निर्वाण तक पहुँच सकता है, इस उपदेश का आदर्शवाद से कोई तालमेल नहीं है.

अपने व्याख्यान के अंत में प्रो. गोम्ब्रिच ने कहा कि वे बुद्‌ध के उपदेश के निर्णायक बिंदु के रूप में कर्म के सिद्‌धांत को देखते हैं और उनका समग्र चिंतन इसी के इर्द-गिर्द घूमता है.

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प्रो. रिचर्ड फ्रांसिस गोम्ब्रिच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्‌ध एक भारतविद्‌ और संस्कृत, पाली एवं बौद्‌ध अध्ययन के एक विद्‌वान हैं. वे बौद्‌ध अध्ययन के लिए ऑक्सफर्ड सेंटर के विश्वविद्‌यालय में संस्कृत के प्रोफेसर रह चुके हैं. वे पाली पाठ समाज (1994-2002) के पूर्व अध्यक्ष एवं क्ले संस्कृत पुस्तकालय के प्रधान संपादक एमेरिटस भी थे.

प्रो. गोम्ब्रिच वर्तमान युग में बौद्‌ध धर्म के प्रमुख विद्‌वानों में से एक बन गए हैं. आपके नाम पर कई प्रकाशन भी हैं. उनके उत्कृष्ट काम के चलते उन्हें 1994 में श्रीलंका के राष्ट्रपति द्‌वारा सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया. वे यूरोप और अमेरिका के कई प्रमुख विश्वविद्‌यालयों के विज़िटिंग प्रोफेसर रह चुके हैं.

यह व्याख्यान है.वि.वि. के कुलपति, प्रो रामकृष्ण रामस्वामी, की अध्यक्षता में प्रस्तुत किया गया. प्रो. अमिताभ दास गुप्ता, संकाय अध्यक्ष, मानविकी संकाय ने वक्ता का परिचय दिया. प्रो. के.एस. प्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापित किया.