हैदराबाद विश्वविद्यालय संचार विभाग में 15 जुलाई, 2015 को आयोजित एक चर्चा-गोष्ठी कार्यक्रम में नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं कवि डॉ. नील हॉल ने अपनी कविताओं का पाठ किया और छात्रों तथा शिक्षकों के द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब भी दिए.

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डॉ. नील हॉल की कविताओं का अधिकांश भाग अपनी जीवन यात्रा के दौरान महसूस किए गए उत्पीड़न के के दर्द को बयान करता है. आपने अमेरिकी संविधान में दिए प्रावधानों के बावजूद अश्वेत आबादी के समूह के समक्ष उत्पन्न हो रही हताशापूर्ण पीड़ाओं को तथा देश की विडंबना को आक्रोशात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है.

इस चर्चा-गोष्ठी के दौरान उन्होंने अमेरिका में अफ्रीकी अमेरिकियों के तथा भारत में निचली जातियों के उत्पीड़न के बीच की समानताओं को समझाने की कोशिश की. इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि संसाधनों का अंतर-वितरण असमान रूप से किया गया है. इसे मिटाने के लिए और समस्त पीड़ित वर्ग को बुलंद बनाने के लिए अर्थशास्त्र नामक बुनियादी हथियार के साथ अपनी खुद की लड़ाई लड़नी चाहिए. इस संदर्भ में उन्होंने अपने हैदराबाद के आवास के दौरान लिखी तीन कविताओं का पाठ किया, जिसमे एक जाति व्यवस्था पर लिखी गई कविता है तो दूसरी हैदराबाद की विख्यात मसाला चाय पर लिखी गई है.

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डॉ. नील हॉल पिछले पाँच सप्ताह से सामाजिक विकास परिषद, हैदराबाद में स्थानीय कवि जमीला निशात और वोल्गा के साथ अपनी कविताओं के उर्दू और तेलुगू अनुवाद कार्य के ज़रिए ‘Appalling Silence’ (‘भयावह चुप्पी’) नामक त्रिभाषी संकलन के निर्माण में लगे हैं. इससे पूर्व समीक्षकों द्वारा प्रशंसित आपके दो कविता संकलन ‘Nigger for Life’ और ‘Winter’s A-Coming Still’ प्रकाशित हो चुके हैं.