इंद्रास प्रा.लि., हैदराबाद और एस्पायर-बायोनेस्ट, है.वि.वि. में इंक्यूबेटेड रीजीन इनोवेशन्स मिलकर बड़ी आईटी कंपनी टेक महिंद्रा के साथ काम करेंगे. वे उन एफडीए अनुमोदित औषधियों की पहचान करेंगे जिनका उपयोग कोविड-19 के इलाज में किया जा सकता है. यह सहयोग कृत्रिम इंटेलिजेंस (एआई) और तर्कसंगत कम्प्यूटेशनल दृष्टिकोण का उपयोग करके जैविक और औषधीय विधियों द्वारा मान्य मौजूदा दवाओं की पहचान करेगा.
इस साझा परियोजना का उद्देश्य फेफड़ों के वायुमार्ग की कोशिकाओं में वायरस के प्रवेश को रोकना है. यह विचार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह माना जाता है कि कोविड-19 की उच्च संक्रमण की दर का कारण फेफड़ों की कोशिकाओं में वायरस का चिपके रहना है, जिससे वह आसानी से फेफड़ों में प्रवेश कर जाता है. यदि वाइरस के प्रवेश को रोक दिया जाए, तो यह हानिकारक नहीं रह जाता.
डॉ. उदय सक्सेना और डॉ. सुब्रमण्यम वंगला द्वारा एस्पायर-बायोनेस्ट में सह-स्थापित रीजीन इनोवेशन्स प्रा.लि. नामक जैवतकनीकी स्टार्टअप 3डी बायोप्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर कोविड-19 पर अध्ययन करने के लिए एक मानव संवहनी फेफड़े का मॉडल बनाएगा. इस नई तकनीक का उपयोग मानव अंगों और ऊतकों को बनाने के लिए किया जा रहा है.
टेक महिंद्रा के जीव विज्ञान विभाग के उपाध्यक्ष डॉ. रत्नाकर पालकोडेटि ने कहा कि यह सहयोग पारंपारिक औषधि शोध की तुलना में अधिक तेजी से चिकित्सा पद्धति में बेहतरीन निष्कर्ष लाएगा. इससे अमूल्य बौद्धिक संपदा में भी वृद्धि होगी.
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी टेक महिंद्रा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई वर्षों का अनुभवप्राप्त डॉ. उदय सक्सेना की वैज्ञानिक विशेषज्ञता का लाभ उठाएगा. इसके अलावा, इंद्रास के सिलिको वैज्ञानिक विशेषज्ञता का तर्कसंगत उपयोग करने की भी योजना है, जिससे कोविड-19 के खिलाफ सबसे उपयुक्त दवाओं की पहचान की जा सके. कोविड-19 के दमन के लिए इस परियोजना में टेक महिंद्रा की आंतरिक टीमें भी प्रोटीन-लिगेंड इंटरैक्शन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता विषय पर योगदान करेंगी, जिससे पुन:पोषित दवाओं की पहचान का वैश्विक लक्ष्य प्राप्त किया जा सके.
टेक महिंद्रा के इनोवेशन के ग्लोबल हेड निखिल मल्होत्रा का कहना है कि इस प्रोजेक्ट में कोविड-19 शमन के लिए पुन:पोषित दवाओं की पहचान के वैश्विक लक्ष्य के लिए प्रोटीन-लिगैंड इंटरैक्शन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी शामिल है.
“एस्पायर बायोनेस्ट इंक्यूबेशन केंद्र जो हैदराबाद विश्वविद्यालय और जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के बीआईआरएसी द्वारा संयुक्त रूप से लगभग 20,000 वर्गफीट में स्थापित है. यह 20 से अधिक स्टार्टअप की मेजबानी कर रहा है और उनमें से कुछ कोविड-19 के लिए निदान, टीके और चिकित्सीय अणु विकसित करने में लगे हुए हैं.” एस्पायर बायोनेस्ट इंक्यूबेशन केंद्र के परियोजना समन्वयक प्रो. समन्वयक प्रो. रेड्डन्ना ने बताया.