हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर एम. श्यामराव द्वारा विरचित हिंदी आलोचना की नई पुस्तक ‘मिथक और यथार्थ का अंतःसंबंध’ प्रकाशित हुई है। यह उनकी छठी पुस्तक है। इसके पूर्व आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि मुक्तिबोध की कविता के विशेषज्ञ प्रो. श्यामराम की पांच महत्त्वपूर्ण पुस्तकें यथा ‘मुक्तिबोध: जीवन संघर्ष बनाम काव्य संघर्ष’, ‘मुक्तिबोध के सौंदर्य सिद्धांतों का विवेचन’, ‘मुक्तिबोध: फंतासी और रचना प्रक्रिया’, ‘नई कविता: वस्तु और रूप तथा अन्य निबंध’ और ‘रचना के अंतःसूत्रों की पहचान’ प्रकाशित हो चुकी हैं।

प्रो. श्यामराव हैदराबाद विश्वविद्यालय के ही पूर्व छात्र हैं। आपने इसी विश्वविद्यालय से एम.ए., एम.फिल, और पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है और विगत 24 वर्षों से हिंदी विभाग में अध्यापन कर रहे हैं।

‘मिथक और यथार्थ का अंतःसंबंध’ का प्रकाशन अक्षर पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली द्वारा किया गया है। इस पुस्तक में आधुनिक हिंदी कविता पर 12 आलोचनात्मक निबंध हैं, जिनमें प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा, मुक्तिबोध, अज्ञेय, दिनकर और रघुवीर सहाय की महत्त्वपूर्ण कविताओं पर विचार किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक के दो भाग हैं। पहले भाग में आलोचनात्मक शोध-आलेख हैं और दूसरे भाग में छायावाद के चार आधार स्तंभों की कुछ चुनी हुई कविताओं के साथ-साथ मुक्तिबोध की कविता ‘ब्रह्मराक्षस’, अज्ञेय की ‘असाध्य वीणा’, दिनकर की ‘उर्वशी’ और रघुवीर सहाय की मुहत्त्वपूर्ण कविताओं के अंश दिए गए हैं। यह पुस्तक एम.ए. हिंदी के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी मानी जा रही है। पाठकों की मांग पर इस पुस्तक की हार्ड बाउंड प्रति के अतिरिक्त पेपर बाउंड प्रति भी प्रकाशित की जा रही है।