हैदराबाद विश्वविद्यालय ने कॅम्पस कॉन्सर्ट शृंखला के तहत दि. 19 अप्रैल, 2017 को एक नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया, जो कि भारत के विशेष कलाविष्कार शास्त्रीय नृत्य पर आधारित था. विश्वविद्यालय के चार प्रतिभावान छात्रों ने इस सांस्कृतिक संध्या को अविस्मरणीय बना दिया. इनके नाम हैं – भरतनाट्यम शैली से सुश्री अंजू अरविंद एवं सुश्री अबंति बॅनर्जी और कुचिपुड़ी शैली से सुश्री शरण्या मुरली एवं सुश्री प्रियंका के.एस.

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करीब डेढ़ घंटे तक चले इस कार्यक्रम की विशेषता थी भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी नृत्य शैलियों का अद्भुत संगम. उत्तम संगीत समूह के सहयोग से कुल आठ प्रस्तुतियाँ दी गईं, जिनमें विविध एकल एवं युगल प्रस्तुतियाँ शामिल थीं.

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माता सरस्वती की वंदना करते हुए पहली प्रस्तुति ‘नमस्ते वीणा’ की गई जहाँ सुंदर नृत्य के माध्यम से ज्ञान और ताल की देवी सरस्वती का अभिवादन किया गया. भगवान शिव की महिमा का गान करती हुई दूसरी भरतनाट्यम की प्रस्तुति थी ‘कैलाईल वर्णम’, जिसमें कतिपय सुंदर भंगिमाओं के माध्यम से ‘कामदेव दहन’ की कथा प्रदर्शित की गई. इसी नृत्य शैली के माध्यम से ‘कावड़ी चिंदु’ नामक प्रस्तुति में भगवान मुरुगा, कार्तिकेय की स्तुति की गई. कुचिपुड़ी नृत्य ‘तरंगम’ के माध्यम से अगली एकल प्रस्तुति में नृत्यांगना ने श्रीकृष्ण और उनके बचपन के साथी कुजेयला की मनमोहक कहानी सुनाई.

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इसी शृंखला में आगे कृष्ण भगवान की बाललीलाओं और शरारतों का बखान कृचिपुड़ी नृत्य के माध्यम से किया गया. ‘अर्धनारीश्वर’ नामक छठी प्रस्तुति में भगवान शिव के ‘तांडव’ एवं देवी पार्वती के ‘लास्य’ नृत्य का संगम देखा गया, जिसे भरतनाट्यम शैली में प्रस्तुत किया गया. सातवीं समूह प्रस्तुति ‘ऐगिरि नंदिनी’ में ‘शक्ति’ और ‘असुरविनाशिनी’ की स्तुति प्रस्तुत की गई – वह कहानी जब असुरों को युद्ध में हराकर माँ दुर्गा नें बुराई पर अच्छाई की विजय को रेखांकित किया. अंतिम प्रस्तुति भी कुचिपुड़ी शैली की एक मनोहारी समूह प्रस्तुति ‘मुद्दुगरे यशोदा’ थी, जिसमें कृष्ण की लीलाओं एवं राधा के प्रति उनके प्रेम का चित्रण था.

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सभागार में उपस्थित प्रत्येक दर्शक इस पूरे कार्यक्रम को देख अभिभूत था. सांस्कृतिक समन्वयक एवं उर्दू विभाग के संकाय-सद्स्य डॉ. ज़ाहिदुल ह़क द्वारा सभी प्रतिभावान नृत्यांगनाओं के औपचारिक सम्मान के साथ यह सांस्कृतिक संध्या संपन्न हुई, किंतु इसमें कोई दोराय नहीं कि इस विलक्षण कार्यक्रम की स्मृतियाँ देखनेवाले के मनमस्तिष्क पर पूरी रात छाई रहीं.