हैदराबाद विश्वविद्यालय में 2 सितम्बर, 2013 को प्रो.के. विजय राघवन, सचिव, जौव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार ने टमाटर जीनोमिक संसाधन निधान भवन (RTGT) का उद्घाटन किया । इस समारोह में हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति रामकृष्ण रामस्वामी भी उपस्थित थे । टमाटर के कार्यात्मक जीनोमिक्स में अनुसंधान के लिए तथा जीनोमिक संसाधनों को जुटाने हेतु यह RTGR केन्द्र बनाया गया । सात एकड़ ज़मीन में 10,000 वर्गफुट क्षेत्र युक्त एक इमारत बनाई गई है, इसके अतिरिक्त टमाटर के पौधे उगाने हेतु 10 ग्रीन हाउस हैं, जिसमें 6000 वर्ग क्षेत्र युक्त ज़मीन उपलब्ध है ।
अंतर्राष्ट्रीय सोलानेसी जीनोम (एस ओ एल) नामक यह परियोजना वर्ष 2004 में अंतर्राष्ट्रीय वौज्ञानिक मंडली की पहल से आरंभ की गई है । स्वास्थ्य वर्धक एवं पौष्टिक तत्वों से युक्त टमाटरों के प्रजनन के लिए जौव प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली ने 20 करोड़ रूपयों के अनुदान की मंजूरी भी दे दी थी ।
इस कार्यक्रम के बाद प्रो.के.विजय राघवन ने डी.एस.टी. सभागार में भारत को वौज्ञानिक अनुसंधानों में निवेश क्यो करना चाहिए नामक विषय पर एक व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने वौज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में भारत की स्थिति को उजागर करते हुए होमी भाभा, जे.सी. बोस, रामानुजन आदि विश्व प्रसिद्ध भारतीय वौज्ञानिकों का ब्योरा देते हुए श्रोताओं से प्रश्न किया कि — आज भारत में ऐसे वौज्ञानिक प्रश्न किया क्यों उभर कर नही आ रहे हैं ? आज के वौज्ञानिकों की विफलताओं का कारण क्या है ?
आगे उन्होंने छात्रों, शिक्षकों व उपस्थित कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि बदलती दुनिया के साथ हमें भी बदलना चाहिए और युगीन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हमें हमेशा तत्पर रहना चाहिए ।
अंत में उन्होंने एम आई टी के पूर्व अध्यक्ष चाल्र्स वेस्ट की चार प्रमुख बातों का हवाला देते हुए अपना व्याख्यान समाप्त किया ।
वे चार बाते हैं —- 1. किसी भी विश्वविद्यालय के छात्रों एवं अनुसंधानों की गुणवत्ता उस विश्वविद्यालय के (संकाय सदस्यों) शिक्षकों पर निर्भर होती है । 2. विज्ञान की उन्नति केवल खुले वातावरण में ही हो सकती है । 3. प्रतिस्पर्दा ही उच्च शिक्षा में उत्कृष्टता को जन्म देती है और 4. अनुसंधान के लिए अनुदान मिलने पर ही अनुसंधानों में नवाचार आ सकता है ।