हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 25 एवं 26 मार्च, 2014 को मानविकी संकाय के सभागार में ‘समकालीन हिन्दी सृजन और आलोचना’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया ।
सेमिनीर का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामकृष्ण रामस्वामी ने किया । स्वागत वक्तव्य में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वी कृष्ण ने प्रस्तुत किया । सेमिनार में बीज व्याख्यान देते हुए जनवादी लेखक संघ के उपाध्यक्ष प्रो. चंचल चौहान ने राजेंद्र यादव, शिव कुमार मिश्र, ओम प्रकाश वाल्मीकि, विजयदान देथा और परमानंद श्रीवास्तव के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया । उन्होनें समकालीन सृजन और आलोचना के अंतःसंबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘समकालीन’ के दायरे में वही रचनाकार आता है जो उसके अपने रचनाकाल में सामने आया, इस आधार पर वयोवृद्ध लेखक और एकदम युवा लेखक की समकालीनता में भी अच्छा खासा अंतराल आ जाएगा । आलोचना का सृजन हो या रचना का, दोनों का उन्मेष उनके अपने-अपने समकालीन सामाजिक परिवेश में होने वाले परिवर्तनों से आविष्ट रहता है । सत्र की अध्यक्षता करते हुए मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो. अमिताभ दास गुप्त ने कहा कि समकालीन लेखकों और आलोचकों पर सेमिनार आयोजिन करना न केवल हिन्दी बल्कि भारतीय लिटरेचर को समझने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । सेमिनार का पहला सत्र राजेंद्र यादव को समर्पित था, इस सत्र में डॉ. पंकज पराशर, डॉ. संजीव दूबे, डॉ. एम. आंजनेयुलु, डॉ. मृत्यंजय सिंह, डॉ.अनुपमा ने राजेंद्र यादव के रचनाकर्म से जुड़े विभिन्न पहलुओं का विचार किया । शिवकुमार मिश्र और परमानंद श्रीवास्तव को समर्पित दुसरे सत्र का विषय-प्रवर्तन करते हुए प्रो. श्री प्रकाश शुक्ल ने मार्क्सवाद को यथार्थवाद के उस रूप से जोड़ा जो भाववादी चिंतन के खिलाफ ठहरता है । सत्र के वक्ता के रूप में प्रो. आलोक पांडेय और डॉ. अभिषेक रौषन ने परमानंद श्रीवास्तव और शिवकुमार मिश्र के आलोचना-कर्म पर विस्तार से अपने विचार रखें । तीसरे सत्र विदयदान देथा को समर्पित था, इस सत्र में डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने विजयदान देथा के लेखकीय महत्व के संबंध में कहा कि ‘बिज्जी’ के अवदान को मौलिक न मानना, अल्पप्राण लोगों का कोलाहल है । इस सत्र में डॉ. भीम सिंह, डॉ. जे. आत्माराम ने भी देथा के रचनात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला ।
दूसरे दिन आयोजित सेमिनार का चौथा सत्र ओमप्रकाश वार्मीकि को समर्पित था । प्रो. शशि मुदीराज की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र का विषय प्रवर्तन डॉ. सुशीला टाकभौरे ने किया, इस सत्र में डॉ. वैभव सिंह, डॉ. आशुतोष कुमार, डॉ. जी.वी. रत्नाकर, डॉ. टी.जे. रेखा रानी, डॉ. प्रोमिला ने वाल्मीकि की रचनाओं के संदर्भ में समकालीन आलोचना को रेखांकित किया ।
इस सेमिनार में शोधार्थियों के लिए विशेष सत्र का आयोजन किया गया जिसमें 40 से अधिक शोधार्थियों ने अपने-अपने प्रपत्र प्रस्तुत किये ।
समापन सत्र का मुख्य वक्तव्य प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने प्रस्तुत किया । इस सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. टी. मोहन सिंह और विशेष अतिथि प्रो. धर्मपाल पीहल ने समकालीन साहित्य की दशा-दिशा पर अपने विचार रखे । संगोष्ठी के संयोजन डॉ. गजेन्द्र पाठन ने संगोष्ठी प्रतिवेदन प्रस्तुत किया । इस सत्र की अध्यक्षता हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वी. कृष्ण ने किया । सत्र का संचालय डॉ. जे. आत्माराम ने किया ।
इस अवसर पर विभाग के शिक्षकों द्वारा विरचित/संपादित पुस्तकों – हिंदी के लेखक हरिणाम मीणा के आलेखों का संकलन ‘आदिवासी विमर्श’ (संपादक प्रो. वी. कृष्ण और डॉ. भीम सिंह), ‘साहित्य, पत्रकारिता और संस्कृति’ (संपादक डॉ. आलोक पांडेय) और ‘स्त्री विमर्श : भारतीय नवजीवनकाल’ (प्रो. माणिक्यांबा) – का विमोचन भी किया गया। । इस सेमिनार में बड़ी संख्या में नगर द्वय के विभिन्न विश्वविद्यालों से विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं शिक्षकों ने भाग लिया।