हैदराबाद विश्वविद्यालय के तुलनात्मक साहित्य केंद्र में 12 फरवरी को आयोजित तीसरे सुजीत मुखर्जी स्मारक व्याख्यान में केंद्र के छात्रों, शिक्षकों और सुजीत मुखर्जी की बेटीरोहिणी मुखर्जी की उपस्थिति में प्रोफेसर सुकांता चौधरी ने आपना व्याख्यान प्रस्तुत किया.
इस कार्यक्रम में तुलनात्मक साहित्य केंद्र की अध्यक्षा प्रो. तुतुन मुखर्जी नेस्वागत भाषण देते हुए सुजीत मुखर्जी के प्रति अपना गहरा सम्मान व्यक्त किया और कहा कि सुजीत मुखर्जी ने तुलनात्मक साहित्य को किस प्रकार पश्चिमी मोड़ से अलगकर भारतीय तुलनात्मक साहित्य की अवधारणा को स्वदेशी रंग में बदला है.
इस अवसर पर अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रमोद कुमार नायर ने अपने और सुजीत मुखर्जी के बीच की यादों को साझा करते हुए बताया कि सुजीत मुखर्जी बहु प्रज्ञा के धनी थे. उन्हें साहित्य शिक्षा-शिक्षण के साथ-साथ पत्रकारिता, खेलकूद और साहित्यिक इतिहास लेखन में भी रुचि थी.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रो. सुकांता चौधरी ने इस अवसर पर ‘My Tagore, Your Tagore: Translation and Textual Identity’ नामक विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए सुजीत मुखर्जी और अपने बीच की यादों को ताज़ा करते हुए सुजीत मुखर्जी के बारे में कहा किउन्होंने हमेशा अपनी कलम के द्वारा हमारे समाज में सांस्कृतिक संवेदनशीलता और सांस्कृतिक चेतना को बढ़ावा देने के लिए एक प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य किया.
इस अवसर पर प्रो. चौधरी ने भारत और यूरोप के ऐतिहासिक एवं समकालीन साहित्य के उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए अनुवाद एवं तुलनात्मक साहित्य से जुड़ी अनेक चुनौतियों एवं जटिलताओं का सामाधान देने का प्रयास किया. आगे उन्होंने बताया कि एक आदर्श दुनिया में अनुवाद की कोई ज़रूरत नहीं परंतु आज हम इससे परे एक निराली दुनिया में रहते हैं, जहाँ आदर्श दुनिया की स्थापना के लिए अनुवाद की जरूरत है. अंत में उन्होंने श्रोताओं द्वारा पूछे गए अनेक सवालों के जवाब दिए.
यह स्मारक व्याख्यान तुलनात्मक साहित्य केंद्र, हैदराबाद विश्वविद्यालयकी ओर से आयोजित किया गया था.