हैदराबाद विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संकाय ने 19 अगस्त, 2016 को डॉ. येल्लाप्रगडा सुब्बा राव स्मारक व्याख्यान का आयोजन किया था. इस अवसर पर वार्षिक व्याख्यान श्रृंखला के भाग के रूप में सीएसआईआर – सेलुलर और आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीएसआईआर-सीसीएमबी) के ग्रुप लीडर तथा सीडीएफडी, हैदराबाद के निदेशक एवं वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. गिरिराज रतन चांडक ने ‘ओबेसिटी – डायबिटीज एसोसिएशन : भारतीयों में अलग क्या है?’ नामक विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया. आपने विशेषकर अग्न्याशय के जटिल विकारों के आनुवंशिक आधारों एवं टाइप 2 मधुमेह तथा मोटापा और इंसुलिन प्रतिरोधों पर अपना शोध-कार्य किया.
इस कार्यक्रम का आरंभ डॉ. येल्लाप्रगडा सुब्बा राव के चित्र को माला पहनाकर किया गया. हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पोदिले अप्पा राव ने इस अवसर पर सभी उपस्थितों का स्वागत किया और मेडिकल साइंसेज संकाय की संकायाध्यक्षा प्रो. गीता के. वेमुगंटी ने डॉ. येल्लाप्रगडा सुब्बा राव जी का परिचय दिया और उनके योगदान के बारे बताया.
इस संदर्भ में डॉ. जी.आर. चांडक ने भारत में मधुमेह की तेजी से बढ़ती व्यापकता के बारे में अपनी चिंता अभिव्यक्त करते हुए कहा कि भारत के बच्चों में कुपोषण के कारण आज भारत मधुमेह की राजधानी बन गया है. यूरोपीय लोगों की तुलना में भारतीयों में बेसल मेटाबोलिक इंडेक्स (बीएमआई) कम है. उनका मानना है कि टाइप 2 मधुमेह की आनुवंशिक संवेदनशीलता मोटापा तथा इंसुलिन प्रतिरोध के रूप में मध्यवर्ती लक्षणों से जुड़ी है, जिसे भारतीयों में अलग ढंग से विनियमित किया जा सकता है. वास्तव में भारतीयों में जीन (TCF7L2, FTO) टाइप 2 मधुमेह के साथ जुड़ा है, लेकिन इसका प्रभाव मोटापे से स्वतंत्र है.
उनका मानना है कि यूरोपीय नवजात बच्चों की तुलना में भारतीय बच्चे अधिक पतले तथा कम वसा और मातृ विटामिन बी 12 की कमी से पैदा होते हैं. इससे उनका कहना है कि मधुमेह को रोकने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों पर और अधिक वैज्ञानिक शोधों की आवश्यकता है.
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अजिता कट्टा ने अतिथि वक्ता का परिचय दिया और कार्यक्रम के अंत में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनीता सी.टी. ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया.