5 जुलाई, 2021 को अर्थशास्त्र संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय ने ‘COVID-19 and Macroeconomic Policies’ पर एक अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया, जिसमें प्रो. लेखा चक्रवर्ती, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी), नई दिल्ली ने व्याख्यान दिया.
प्रो. लेखा चक्रवर्ती ने व्याख्यान देने से पहले अर्थशास्त्र संकाय में पिछले वर्षों से हो रही प्रगति की सराहना की तथा आर्थिक संकुचन के समय में नीतिगत अनिश्चितताएँ कैसे बनी रहती हैं, इस बात को स्पष्ट करते हुए श्रोताओं को व्याख्यान की पृष्ठभूमि की जानकारी दी.
प्रो. लेखा ने राजकोषीय नीति पहलू के बारे में बात की और इस वर्ष के बजट में ओलिविएर ब्लैंचर्ड की ‘विकास दर बनाम ब्याज दर’ नीति का पालन भारत सरकार द्वारा कैसे किया गया है इस पर प्रकाश डालते हुए भाषण दिया. उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बाधाओं की जानकारी भी दी जो भारत सरकार के राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेजों में बाधा डालती हैं और बढ़ते राजकोषीय घाटे के संदर्भ में लक्षित हस्तांतरण और एक बड़े प्रोत्साहन के बीच के अंतर को भी समझाया. उन्होंने कहा कि पूंजीगत संपत्ति बनाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे को (जिस पर गंभीर ध्यान देने की आवश्यकता है) बढ़ाने के लिए सार्वजनिक ऋण का उपयोग करना अधिक विवेकपूर्ण होगा.
मौद्रिक नीति के पहलू पर आगे बढ़ते हुए, प्रो. लेखा ने बताया भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति संचरण तंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए किस तरह रेपो दर कम करने का प्रयास कर रहा है और यह भी कहा कि राजकोषीय पुन: प्रभुत्व का एक दौर उभर रहा है. व्याख्यान का समापन करते हुए, प्रो. लेखा ने कहा कि विनिवेश नीतियों, सार्वजनिक ऋण के उपयोग और केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व हस्तांतरण साथ-साथ बढ़ती असमानता पर भी गंभीर विचार करने की आवश्यकता है.
व्याख्यान को समाप्त करने से पहले छात्रों और श्रोताओं के लिए आयोजित प्रश्न-सत्र में विभिन्न मुद्दों पर सवाल किए गए, जिसमें नीतियों पर सरकार के दृष्टिकोण की माँग को बढ़ाने के लिए नकद हस्तांतरण के साथ-साथ क्या अप्रत्यक्ष कराधान ऋण के वित्तपोषण में सहायक सिद्ध हो सकता है, क्या घाटे की गुणवत्ता मायने रखती है इत्यादि विषय शामिल थे. शोध करने के लिए इच्छुक छात्रों को कुछ दिलचस्प सवाल मिले, जैसे – राजकोषीय मार्ग को फिर से परिभाषित कैसे करें, नकद हस्तांतरण से माँग बढ़ती है या एहतियाती बचत होती है या फिर अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए किस तरह के प्रोत्साहन पैकेज तैयार किए जा सकते हैं इत्यादि. यह दर्शाता है कि व्याख्यान न केवल सफल रहा बल्कि श्रोताओं को कोविड-19 जैसी अनिश्चितताओं के तहत समष्टि आर्थिक नीति बनाने की प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी मिली.
इससे पहले, प्रो. रमण मूर्ति, अध्यक्ष, अर्थशास्त्र संकाय ने वक्ता का स्वागत किया. समन्वयक डॉ. कृष्णा रेड्डी चिट्टेडि ने श्रोताओं को वक्ता का परिचय दिया और जेंडर बजटिंग में उनकी अहम भूमिका पर भी प्रकाश डाला. सुश्री दिव्या अर्चना, एम.ए की छात्रा ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया. इस व्याख्यान में 140 प्रतिभागियों ने भाग लिया.
उपरोक्त व्याख्यान नीचे दिए गए लिंक पर प्राप्त किया जा सकता है –