फणीश्वरनाथ रेणु जन्मशताब्दी समारोह  कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में सभी विद्वान अथितियों का स्वागत प्रो. गजेन्द्र पाठक अध्यक्ष, हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा किया गया

उद्घाटन वक्तव्य  माननीय राज्यसभा उप-सभापति हरिवंश जी  ने दिया जिसमें  आपने  कहा कि  मैं साहित्य का विद्यार्थी नही रहा पर मेरे जीवन पर साहित्य का प्रभाव बहुत व्यापक  रहा है, मैंने साहित्य से बहुत कुछ सीखा है । आज़ादी के बाद जिस रचनाकार में आज़ादी के संघर्ष, मूल्य और आदर्श संरक्षित हैं उनमे रेणु जी अग्रिम और अप्रतिम हैं । रेणु  की रचनात्मकता अद्वितीय रही है उनकी रचनाओं में लोक संस्कृति संजोई गयी है जिसमे नेपाली गीत, बिदापत नाच आदि शामिल हैं । रेणु का  साहित्य आंचलिकता से भरा हुआ है जिसमे अंचल की अपनी विशेषता परिलक्षित होती है बोलियों को ही लें तो उसमे न सिर्फ हिंदी बल्कि अंगिका, वज्जिका की तमाम विशिष्टता समाहित है । रेणु जी के संघर्ष, उनके जेल जाने  और उनके  रिपोर्ताज पर काफी कार्य किया जाना चाहिए जिसकी तरफ आपने संकेत भी किया ।

 विषय प्रवर्तन प्रो. सत्यकाम, समकुलपति, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय ने किया, अपने वक्तव्य में प्रो. सत्यकाम जी ने रेणु को एक सांस्कृतिक उपन्यासकार माना और मैला आँचल को शुद्ध भारतीय उपन्यास की संज्ञा प्रदान की । परती परिकथा में एक  आदर्श है , स्वप्न है, विकास की अवधारणा  है ।

 मुख्य अतिथि के भूमिका में उपस्थित प्रो.रामवचन राय पूर्व सदस्य, बिहार विधान परिषद् व पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग, पटना विश्वविद्यालय ने भी अपने सारगर्भित विचार रखे और प्रो. सत्यकाम के व्याख्यान का विस्तार करते हुए बताया कि  लम्बे समय तक रेणु को लेकर हिंदी में भ्रम था कि रेणु सिर्फ आंचलिक लेखक हैं, जबकि ऐसा नही है ।  प्रो. सत्यकाम जी ने वर्तमान में प्रचलित शब्दावली   `लोकल फॉर  वोकल` के सहारे रेणु के साहित्य पर जो  अपना विचार  रखा था ; वह बिलकुल सही है । रेणु आज़ादी के तुरंत बाद ही इस अवधारणा पर  अपने साहित्य में विचार व्यक्त करने लगे थे । रेणु करुणा के रचनाकार हैं । मैला आँचल उपन्यास की कथा परिकल्पना रेणु ने अपने संघर्ष के जीवन में भागलपुर जेल में की  थी ।

 समारोह में विशिष्ट अतिथि के तौर पर हैदराबाद विश्वविद्यालय के  समकुलपति प्रो. बी. राजशेखर भी उपस्थित रहे , आपने  सभी वक्ताओं का  स्वागत किया और हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष  गजेन्द्र पाठक को आयोजन हेतु  विशेष बधाई  दी ।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता इग्नू के कुलपति प्रो. नागेश्वर राव ने की । अपने वक्तव्य में आपने  हिंदी भाषा के प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हुए उसे एकता के  सूत्र में पिरोने वाला बताया साथ ही रेणु के व्यक्तित्व और साहित्य को पाठकों के लिए अनुकरणीय माना और इस  महत्वपूर्ण आयोजन के लिए दोनों संस्थानों को बधाई भी दी ।

कार्यक्रम का संचालन व धन्यवाद ज्ञापन डॉ शम्भूनाथ मिश्र , मानविकी विद्यापीठ, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय ने किया , अपने संचालन कौशल से कार्यक्रम में जीवंतता बनाये रखी ।

 

पहला सत्र : उपन्यासकार रेणु

[दिनांक – 03 मार्च 2021, समय  : 02:00PM- 04:00 PM]

हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय और स्वतंत्रता संघर्ष अध्ययन केंद्र, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के संयुक्त आयोजन में प्रथम सत्र के वक्ता के रूप में प्रो. विद्या सिन्हा, अध्यक्ष, हिंदी विभाग किरोड़ीमल महाविद्यालय दिल्ली प्रो.जितेन्द्र श्रीवास्तव, मानविकी विद्यापीठ, इंदिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय सम्मिलित हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो . नित्यानंद तिवारी, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग  दिल्ली विश्वविद्यालय ने की | इस सत्र के कार्यक्रम का संचालन शोध – छात्रा भावना, हैदराबाद विश्वविद्यालय ने किया व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. जे. आत्माराम, हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय के द्वारा  किया गया  ।

रेणु  के उपन्यास  पर वक्तव्य देते हुए विद्या सिन्हा ने रेणु के रचनात्मक व उनके सामाजिक – राजनीतिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए रेणु को अतिक्रमण के कथाकार के रूप में चिन्हित किया और बताया कि रेणु का यह अतिक्रमण न सिर्फ रुढियों एवं विचारों का है, बल्कि साहित्यिक विधाओं- उपन्यास, कहानी, रिपोर्ताज की सीमाओं का भी है । आपने   रेणु की आंचलिक रचनाओं पर लगने वाले क्षेत्रवाद के आरोप को भी ख़ारिज किया ।

इस कार्यक्रम में जितेन्द्र श्रीवास्तव ने उपन्यासकार रेणु पर अरुण कमल की कविता “खोज” का उल्लेख किया । प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि आज़ादी के 20 – 25 वर्षों को समझने के लिए रेणु साहित्य एक महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप में काम  आ सकता है, रेणु के साहित्य में सृजित पात्रों को नये सिरे से देखने की आवश्यकता है । प्रो. श्रीवास्तव ने रेणु के उपन्यास मैला आँचल औए परती परिकथा का जिक्र करते हुए बताया कि इन उपन्यासों में आज़ाद भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार, वितरण की असमानता और टूटती जमींदारी व जमींदारों के शोषण का जिक्र सबसे व्यवस्थित व चुभने वाले अंदाज में हुआ है, जिसे रेणु ने मैला आँचल उपन्यास में लिखा है कि – ` देश की जनता भूखी है, यह  आज़ादी झूठी है ।`

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे  प्रो. नित्यानंद तिवारी ने पूर्व वक्ताओं के विचारों को सराहा । रेणु के साथ अपने सम्बन्धों को याद करते हुए रेणु के राजनैतिक प्रतिबद्धता के संबंध में बताया कि अगर आज रेणु होते तो किसान आन्दोलन में अपनी  बढ़ -चढ़कर भागीदारी दर्ज कराते । रेणु का जीवन क्रांति का जीवन रहा है वे निरंतर गाँव की मिट्टी और गाँव के मनुष्य से प्रेम करते रहे । प्रेमचन्द और रेणु दोनों ग्रामीण जीवन के कथाकार रहे हैं । प्रेमचन्द के यहाँ गाँव अपने वास्तविक यथार्थबोध के साथ उपस्थित होता है, परन्तु रेणु अपने साहित्य में गाँव को पौराणिकता यानि मिथकीय चेतना के साथ चित्रित करते  हैं , जिसे आप मेरीगंज और परानपुर गाँव  की विभिन्न कहानियों के माध्यम से देख सकते हैं  ।

 

 दूसरा सत्र : कथाकार रेणु

[दिनांक 03 मार्च 2021, समय :04:00 PM- 06:00 PM]

इग्नू (IGNOU) के स्वतंत्रता संघर्ष एवं प्रवासन अध्ययन केंद्र और हैदराबाद विश्विद्यालय के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्त्वाधान में ‘फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ जन्मशताब्दी समारोह’ का आयोजन किया गया । जिसमें वक्ता के रूप में डॉ. रविकांत(इतिहास विभाग, सी. एस. डी. एस, दिल्ली), डॉ. पल्लव (हिन्दी विभाग, हिंदू महाविद्यालय, दिल्ली), डॉ. धनंजय सिंह (हिंदी विभाग, डॉ. एस. आर. के. गवर्मेंट कॉलेज, यानम) सम्मिलित हुए तथा अपने बहुमूल्य विचारों को रखा । कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. गोपेश्वर सिंह(पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने की , कार्यक्रम का संचालन खुशबू (शोधार्थी, हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्विद्यालय) ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. विष्णु सर्वदे (हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) ने किया ।

डॉ.पल्लव ने अपने वक्तव्य का प्रारंभ एक बनी बनाई धारणा को तोड़ते हुए किया । आपने  कहा कि हिन्दी में कोसने और स्यापा करने का चलन है, जिसमें बार- बार यह कहा जाता है– रचनाकारों की उपेक्षा होती है,लेकिन मैं बताना चाहता हूं रेणु के जन्मशताब्दी वर्ष में उन्हें लेकर किए जाने वाले कार्यक्रम इस बात को गलत करार देते हैं । आपने अपने वक्तव्य में रेणु के संबंध में बोलते हुए उन्हें हिंदी का सबसे दुलारा और लाड़ला कथाकार कहा । रेणु की कहानियों के संबंध में  आपने  कहा ‘रेणु की कहानियां आमतौर पर जीवन के उल्लास और आनंद की  कहानियां हैं ।…..रेणु अपने परिवेश की ध्वनियों, गंधों और स्पर्शों को भी गद्य में अंकित करने का हुनर जानते हैं ।’ आपने  अपने वक्तव्य में कहा–‘रचना और राजनीति के संबंध पर भी आलोचना को विचार करना चाहिए ।’ रेणु की कहानी ‘तीसरी कसम’ का विश्लेषण सुंदर शब्दों में किया।

डॉ. रविकांत ने अपने वक्तव्य में पी. पी. टी के माध्यम से रेणु का विश्लेषण किया । आपका  वक्तव्य हिंदी के वक्तव्यों के आम चलन से हटकर, बहुत ही सार्थक और शोधपरक रहा । आपने  कहा –‘रेणु के साहित्य में अभी–भी बहुत कुछ खोजना शेष है । आखिर कालजयी साहित्य की शास्त्रीय परिभाषा भी तो यही है कि नए युग में नित नये अर्थ दें । हम जब भी उनके दर पर जाएं कुछ लेकर लौटें ।’ आपके  वक्तव्य ने  रेणु के साहित्य में शब्दों के तद्भवीकरण की ओर विशेष तौर पर पर ध्यान दिलाया गया।

डॉ. धनंजय ने रेणु की लोकदृष्टि पर खासतौर से बातचीत की जिसमें लोक के त्रि-आयामी रूप को तरजीह दी । रेणु अपनी कहानियों की जड़ कहां खोजते हैं (लोक में) इस और ध्यान दिलाया । आपने कहा–‘हिन्दी कथा साहित्य में लोक का जैसा जुड़ाव रेणु के यहां हैं वैसा और किसी का नहीं…लोक से उनका जुड़ाव इस स्तर का है की उन्होंने अपना उपनाम ‘रेणु’ रख लिया था।’

प्रो. गोपेश्वर सिंह ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में पूर्ववर्ती सभी वक्ताओं के वक्तव्यों की सराहना की तथा सभी वक्ताओं की रेणु को लेकर नवीन दृष्टियों के लिए साधुवाद दिया। ‘सिनेमा और रेणु का क्या संबंध हो सकता है’ डॉ रविकांत के इस चिंतन को विशेषतः रेखांकित किया । डॉ. पल्लव द्वारा संपादित पत्रिका ‘बनासजन’ के रेणु विशेषांक की सराहना की । रेणु की भाषा की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा–‘रेणु के यहां हिन्दी में तद्भव शब्दों की बहार है, वह संस्कृत की हो या अंग्रेजी शब्दों की ।’

 

 तीसरा सत्र : शोध आलेख प्रस्तुति

[दिनांक 03 मार्च 2021, समय :07:00 PM- 09:00 PM]

 इग्नू (IGNOU) के स्वतंत्रता संघर्ष एवं प्रवासन अध्ययन केंद्र और हैदराबाद विश्विद्यालय के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्त्वाधान में ‘फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ जन्मशताब्दी समारोह’ का आयोजन किया गया । तीसरे सत्र में शोधार्थियों के द्वारा शोध आलेख प्रस्तुत किया गया ।  भावना (शोधार्थी,हिन्दी विभाग,हैदराबाद विश्विद्यालय )  ने ‘फणीश्वरनाथ रेणु का समय और साहित्य लेखन नामक शोध आलेख पढ़ा जिसमें उन्होंने रेणु के व्यक्तित्व निर्माण के कारकों की पड़ताल उनके सस्मरणों के के माध्यम से की । रेणु का कविता से कैसा संबंध था इस ओर ध्यान दिलाते हुए रेणु को उद्धृत किया –“कविता मेरे लिए समझने, बुझने,और समझाने का नहीं जीने का विषय है । कवि नहीं हो सका यह कसक सदा कलेजे को सालती रहेगी ।   ”  रेणु की विशेषता को बतलाते हुए कहा कि ‘रेणु जिसे साहित्य और समाज के लिए उपयोगी समझते थे उसे सहर्ष स्वीकारा करते थे ।’

 सेतु कुमार वर्मा (शोधार्थी,हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) ने भारत के आदिवासी आंदोलन और मैला आँचल नामक शोध आलेख पढ़ा । जिसमें उन्होंने आदिवासी आंदोलनों को इतिहास में तरजीह देने पर बल दिया । मैला आँचल के अनुच्छेद 39 में संथालों के साथ  स्थानीय लोगों के अमानवीय व्यवहार और  पुलिस प्रशासन की मुख्यधारा के लोगों के प्रति पक्षधरता को उद्धृत किया । आजादी के बाद ही से सरकारों के चरित्र का आदिवासी जीवन शैली पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है इस ओर हमारा ध्यान दिलाया । आलेख का समापन इस विचार के साथ किया कि ‘अगर कोई मूल्य बचा है दुनिया को बचाने के लिए तो वह आदिवासी जीवन शैली है।’

 ब्रजेश सिंह कुशवाहा (शोधार्थी,हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) ने ‘हिंदी में आंचलिक उपन्यासों की परंपरा और फणीश्वरनाथ रेणु नामक लेख पढ़ा जिसमें उन्होने ‘आंचलिक’ शब्द को  परिभाषित करते हुए आंचलिक उपन्यासों की परंपरा में लिखे गए उपन्यासों (शिवपूजन सहाय द्वारा रचित ‘देहाती दुनिया’ से लेकर संजीव की ‘जंगल जहाँ से शुरू होता है ’ तक) की सूची सामान्य विशेषताओं को रेखांकित करते हुए हमारे सामने रखा ।

श्रुति पाण्डेय (शोधार्थी,हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) ने आंचलिक उपन्यासों की परंपरा में मैला आँचल शोध आलेख पढ़ा जिसमें उन्होंने ‘आंचलिक उपन्यास’ को परिभाषित करते हुए शिवप्रसाद सिंह,देवराज उपाध्याय, नंददुलारे बाजपेई, रामदरश मिश्र, नेमीचंद्र जैन सरीखे विद्वानों के मतों से रूबरू करवाया। उन्होंने मैला आँचल उपन्यास का विश्लेषण करते हुए उसमें निहित आंचलिकता के तत्त्वों को हमारे समक्ष रखा ।

श्रुति ओझा (शोधार्थी,हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) ने मैला आँचल उपन्यास का शिल्पगत और भाषागत विश्लेषण नामक आलेख प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने मैला आँचल की भाषागत विशेषताओं को रेखांकित करते हुए ‘सफेद मेमने’ और ‘रागदरबारी’ उपन्यास का जिक्र किया।

सत्यभामा (शोधार्थी,हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) ने रेणु के कला साहित्य में लोक कलाएँ एवं कलाकार नामक शोध आलेख प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने कहा कि रेणु बहुत से ऐसे पात्रों को गढ़ते हैं जो कि कलाकार हैं। रसप्रिया का पंचकौड़ी, तीसरी कसम की हीराबाई, ठेस का सिरचन, परती परिकथा की नट्टीन ,तीन बिंदिया का हराधन , भित्ति चित्र की मयूरी आदि पात्र कलाकार हैं । इन कहानियों के अतिरिक्त पहलवान की ढोलक ,नेपथ्य का अभिनेता आदि कहानियों का बहुत ही विश्लेषणात्मक और तुलनात्मक अध्ययन शोधपरक ढँग से प्रस्तुत किया जो रोचक और ज्ञानवर्धक रहा ।

प्रो. श्यामराव राठौड़ (अध्यक्ष, हिंदी विभाग, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद) ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की । उन्होंने प्रस्तुत शोध आलेखों की सराहना की तथा रेणु के लेखन क्षमता को रेखांकित करते हुए कहा कि ‘रेणु के लेखन और विचारों की ताकत है की उन्हें याद किया जा रहा है।’

इस सत्र  का संचालन सुप्रभा महतो(शोधार्थी,हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) ने उम्दा ढंग से किया ।

 

चौथा सत्र: रेणु का समय और समाज

[दिनांक 04 मार्च 2021, समय :10:00 AM- 11:30 AM]

           हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय और स्वतंत्रता संघर्ष एवं प्रवासन अध्ययन केंद्र, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित रेणु जन्मशताब्दी समारोह के दूसरे दिन का आरंभ इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के चौथे सत्र से हुआ । यह सत्र ‘रेणु का समय और समाज’ पर केंद्रित रहा सत्र की अध्यक्षता हिंदी विभाग, रांची विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और आलोचक प्रो. रविभूषण ने की। सत्र में दो वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए । प्रथम वक्ता के रूप में हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह एवं द्वितीय वक्ता के रूप में हिंदी विभाग, सुरेन्द्रनाथ कॉलेज, कोलकाता के डॉ. मृत्युंजय पांडेय उपस्थित रहे ।

प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने ‘मैला आँचल और किसान’ विषय पर अपना वक्तव्य केंद्रित करते हुए मैला आँचल और परती परिकथा को ग्रामीण जीवन का प्रामाणिक दस्तावेज बताया । उन्होंने कहा कि रेणु ऐसे विरले साहित्यकार हैं, जिन्हें उनकी पहली ही कृति से साहित्य जगत में उचित यश प्राप्त हुआ । मैला आंचल के बिदापत नाच प्रसंग के माध्यम से किसानों की पीड़ा के रेणु द्वारा किए गए चित्रण पर उन्होंने प्रकाश डाला । वे स्मृतिभंश के इस दौर में रेणु के पात्रों को पात्र मात्र न कहकर चरित्र कहना उपयुक्त मानते हैं ।

डॉ. मृत्युंजय पांडेय ने ‘गांधी, नेहरू और रेणु’ विषय पर केंद्रित अपने वक्तव्य में रेणु के समय के राजनीतिक परिदृश्य और रेणु की राजनीतिक वैचारिकी पर अपना मौलिक चिंतन प्रस्तुत किया । उन्होंने प्रेमचंद के सूरदास और रेणु के मैला आँचल के बाभनदास को गांधी का प्रतिरूप बताया । तुलसी के बजाय कबीर के गांधी पर अधिक प्रभाव की ओर भी उन्होंने संकेत करते हुए मैला आँचल से ‘चरखा हमार नाती’ पंक्ति उद्धृत की । उन्होंने शुद्ध राजनीतिक दृष्टि से रेणु पर अनुसंधान की आवश्यकता की ओर इशारा किया।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. रविभूषण ने दोनों वक्ताओं के शोधपरक विचारों को सराहा एवं रेणु के समय को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। रेणु के राजनीति की ओर झुकाव के दौर को उन्होंने भारतीय राजनीति में ब्रिटिश विरोधी राजनीति के उदय के समय के रूप में उल्लिखित किया । रेणु के समय के सांस्कृतिक दृष्टि से पाठ की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि रेणु का समय भयंकर उथल-पुथल का समय रहा । उन्होंने कहा कि रेणु ने व्यवस्था में अव्यवस्था का विरोध मुखर रूप से न करते हुए संकेत रूप में किया है। समग्रतः रेणु के समय और समाज का सजीव चित्रण उन्होंने किया ।

इस सत्र का कुशल संचालन हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय की शोधार्थी प्रिया कौशिक ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन विभाग की आचार्य प्रो. सी. अन्नपूर्णा ने प्रस्तुत किया ।

 

 पांचवा सत्र : रेणु की वैचारिकी

 [दिनांक 04 मार्च 2021, समय :11:30 AM- 01:30 PM]

हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय और स्वतंत्रता संघर्ष अध्ययन केंद्र, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के संयुक्त आयोजन के  पांचवे सत्र में आमंत्रित वक्ता श्री प्रेम कुमार मणि, पूर्व  सदस्य बिहार बिधान परिषद, वक्ता श्री ज्योतिष जोशी, पूर्व सचिव, हिंदी अकादमी, दिल्ली सम्मिलित हुए । इस सत्र के कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. आनंद  कुमार, पूर्व अध्यक्ष, सी .एस .एस .एस . जवाहर  लाल नेहरु विश्वविद्यालय ने की । इस सत्र के कार्यक्रम का संचालन श्रुति पाण्डेय शोधार्थी हिंदी विभाग हैदराबाद विश्वविद्यालय ने किया  व  धन्यवाद ज्ञापन प्रो. गजेन्द्र पाठक , अध्यक्ष हिंदी विभाग,  हैदराबाद विश्वविद्यालय ने किया । |

प्रेम कुमार मणि ने रेणु के जीवन उनके समय के सामाजिक स्थिति उनके  अध्ययन तथा व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला । आपने बताया की रेणु की वैचारिकी पर समाजवादी विचारधारा का प्रभाव रहा । आपने रेणु उनके मित्र जयशंकर के मध्य सम्वाद का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि रेणु व्यवस्था में खपने वाले व्यक्ति नही अपितु व्यवस्था पर सवाल खड़ा करने वाले व्यक्ति है । साहित्य रचना में राजनैतिक कार्यकर्ताओं की पीड़ा और उसकी उथल- पुथल को अंकित करने की जी क्षमता रेणु में है वह क्षमता अन्य रचनाकारों में दुर्लभ है ।

श्री जोशी जी ने रेणु के साहित्य के सन्दर्भ में कहा कि वे किसी को नायकत्व नही प्रदान करते हैं बल्कि सामूहिक नायकत्व को महत्व देते है । हिंदी में रेणु को दरकिनार करने के प्रति अपना क्षोभ व्यक्त किया और स्वाधीन भारत को समझने के लिए रेणु को महत्वपूर्ण लेखक माना । रेणु साहित्य को नये सिरे से मूल्यांकन पर जोर दिया ।

प्रो. आनंद  कुमार ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उपर्युक्त वक्ताओं के नवीं दृष्टिकोण की सराहना की और रेणु में `चक्रव्यूह में घिरा हुआ रचनाकार` कहा आगे जोड़ते हुए आपने बताया की रेणु को अंचल के लोग आंचलिक स्वीकार नही करते हैं और राष्ट्र के ठेकेदार  राष्ट्र का प्रवक्ता भी मानने को भी तैयार नही हैं ।

सत्र के अंत में विभाग के अध्यक्ष प्रो. गजेन्द्र पाठक ने वक्ताओं के प्रति अपने भावनात्मक सम्बन्धों  का उल्लेख करते हुए कृतज्ञता ज्ञापित की  ।

 

छठा सत्र:  रेणु का समय और समाज 

[दिनांक 04 मार्च 2021, समय :2 :30 PM- 04 :00 PM]

हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय और स्वतंत्रता संघर्ष एवं प्रवासन अध्ययन केंद्र, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित रेणु जन्मशताब्दी समारोह का छठा सत्र रेणु का कथेतर गद्यविषय पर केंद्रित रहा । सत्र की अध्यक्षता हिंदी विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व समकुलपति एवं वर्तमान में साहित्य अकादमी के सदस्य प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने की । सत्र में तीन वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रथम वक्ता के रूप में हिंदी विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के आचार्य प्रो. निरंजन सहाय द्वितीय वक्ता के रूप में हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ जे. आत्माराम  एवं  तृतीय वक्ता के रूप में ` संवेद` और `सबलोग` पत्रिकाओं के यशस्वी संपादक श्री किशन कालजयी उपस्थित रहे।

प्रो. निरंजन सहाय ने अपने वक्तव्य में रेणु के रिपोर्ताज पर अपनी बात रखी । उन्होंने रेणु को धरती पुत्र कहते हुए उनके बाल्यकालीन संस्मरणों पर भी दृष्टिपात किया । उन्होंने रेणु के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला । जैसे खंगार सेवक   नाम से रेणु ने एक हस्तलिखित पत्रिका निकाली । उन्होंने बताया कि रेणु ने आजीवन सकारात्मक अर्थों से संपृक्त राजनीति की । रेणु की पत्नी  और उनके आपसी प्रेम संबंधो का भी उन्होंने उल्लेख किया । समग्र रूप में रेणु के बहुआयामी व्यक्तित्व को रेखांकित किया ।

डॉ . जे . आत्माराम ने विचार व्यक्त करते  हुए कहा कि रेणु लोकधर्मी रचनाकार थे। उन्होंने कहा कि रेणु ने स्वतंत्र भारत की सामाजिक विडंबनाओं को अपने रिपोर्ताजों में बयान कर हिंदी रिपोर्ताज साहित्य को नवीन दिशा दी । कोरोना काल में रेणु के महामारी केंद्रित प्रासंगिक रिपोर्ताजों का भी उल्लेख उन्होंने किया। उन्होंने रेणु के रिपोर्ताज साहित्य का शोधपरक विश्लेषण प्रस्तुत किया ।

अपने संक्षिप्त वक्तव्य में श्री किशन कालजयी ने रेणु के साक्षात्कार एवं पत्र साहित्य पर अपनी बात रखी । उन्होंने कहा कि रेणु ने अपने आपको प्रेमचंद से सदैव नीचे माना । उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग के सामाजिक न्याय की पक्षधरता की ओर रेणु ने संकेत किया है ।

 अध्यक्षीय वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने रेणु के गद्य की संगीतात्मकता की ओर इंगित किया। उन्होंने कहा कि रेणु का गद्य इंद्रियों को सक्रिय एवं सुगंधित करने वाला है तथा उनका साहित्य आदमी की खोज का साहित्य है । रेणु के शब्दों में उन्होंने प्रेम और सहानुभूति के महत्व को रेखांकित किया । साथ ही उन्होंने कहा कि रेणु में प्रेम की चेतना विद्यमान है । रेणु जैसे लेखक की हिंदी साहित्य में उपस्थिति को उन्होंने हमारा सौभाग्य बताया ।

इस सत्र का संचालन हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय की शोधार्थी सरस्वती कुमारी ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सह आचार्य डॉ. एम. एन्जलेलू . ने प्रस्तुत किया ।

 

समापन सत्र

 [दिनांक 04 मार्च 2021, समय : 04 :00 PM- 06:00 PM ]

 फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशताब्दी पर हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय एवं स्वतंत्रता संघर्ष एवं प्रवासन अध्ययन केंद्र, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का अंतिम अर्थात समापन सत्र विद्वज्जन के विचारों और दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए सम्पन्न हुआ । इस सत्र की अध्यक्षता राजस्थान विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. नन्दकिशोर पाण्डेय ने की । इस  सत्र में हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय के आचार्य के प्रो. चंदन कुमार  विशिष्ट वक्ता के रूप में  उपस्थित रहे । इग्नू के समकुलपति ने समापन वक्तव्य प्रस्तुत किया । प्रो. चन्दन कुमार ने अपने विशिष्ट वक्तव्य में कहा कि रेणु को लेकर एक वैचारिकी गढ़ी गई है ।   उन्होंने कहा कि रेणु किसी वैचारिकी के कार्यकर्ताओं की पीड़ा को भी व्यक्त करते  हैं । उन्होंने रेणु को देशज प्रज्ञा का  प्रतिनिधि कहा । उन्होंने कहा की रेणु सात्विक मन से सदा वैष्णव बने रहे । समग्र रूप में उन्होंने रेणु के विचारधारा पर केंद्रित बिंदुओं के अध्ययन की आवश्यकता की ओर संकेत किया । अपने समापन वक्तव्य में प्रो . सत्यकाम ने संगोष्ठी की सफलता पर संतुष्टि व्यक्त करते हुए कहा कि रेणु के उपन्यास आंचलिक अवश्य हैं, परंतु उनकी दृष्टि व्यापक और उनका अंचल वैश्विक है । उन्होंने रेणु साहित्य के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक संदर्भों को कोरोना काल के उत्पन्न होने के कारकों से जोड़ते हुए उनके साहित्य की वृद्धिगत होती प्रासंगिकता की ओर संकेत किया । उन्होंने वर्तमान सरकार के आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना के सूत्र को  रेणु साहित्य से जोड़ा ।

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. नन्द किशोर ने कहा कि रेणु की कहानी के पात्र ग्राम के सांस्कृतिक वैभव को लिए चलते हैं । रेणु की कहानियों में नाटकीयता के तत्त्वों की ओर भी उन्होंने संकेत किया ।  रेणु के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण  भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु लालायित तत्कालीन क्रांतिकारी विचारों को उन्होंने रेखांकित किया  ।  सत्र का संचालन मानविकी विद्यापीठ के शम्भुनाथ मिश्र ने किया ।

संगोष्ठी में उपस्थिति हेतु धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य प्रो. आर. एस. सर्राजु ने प्रस्तुत किया।

समापन सत्र के बाद रेणु आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया । इसमें  रेणु की ‘ठेस’ कहानी की नाट्य प्रस्तुति की गई । नाटक का निर्देशन आदित्य निर्मलकर ने किया, संगीत कबीर राजोरिया ने दिया एवं प्रकाश संयोजन रतनलाल ने किया । इस सुंदर नाटक की प्रस्तुति में अनुपम तिवारी, रैना जैन, मेघा जैन, संस्कार साहू, सत्यभामा, कबीर राजोरिया और खुशी विश्वकर्मा ने अभिनय किया ।

प्रातिवेदन-प्रस्तुतकर्ता :

विनीत कुमार पाण्डेय [शोध छात्र, हैदराबाद विश्वविद्यालय] मो. न. – 9453415584

चिराग राजा [ शोध छात्र, हैदराबाद विश्वविद्यालय] मो. न.- 8019196538

गुलाब सिंह [ शोध छात्र, हैदराबाद विश्वविद्यालय] मो. न.- 7838568434

 

National Seminar Video Link:  https://www.youtube.com/channel/UC-KMHQ6KMNsxja06pbn85Ig